महिला आईएफएस अधिकारी के शीलभंग से संबंधित मामले में केरल के पूर्व मंत्री बरी
नोमान अविनाश
- 15 Sep 2025, 10:28 PM
- Updated: 10:28 PM
कोच्चि, 15 सितंबर (भाषा) केरल उच्च न्यायालय ने 1999 में कोझिकोड में भारतीय वन सेवा (आईएफएस) की एक महिला अधिकारी का शील भंग करने से जुड़े मामले में पूर्व वन मंत्री नीललोहितदासन नादर को सोमवार को बरी कर दिया। अदालत का यह फैसला 25 से अधिक वर्षों तक चली कानूनी लड़ाई के बाद आया।
उन्हें न्यायमूर्ति कौसर एडापगाथ की एकल पीठ ने बरी किया।
पुल्लुविला निवासी नादर का संबंध जनता दल और जनता दल (सेक्युलर) से रहा है। वह वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) सरकारों में मंत्री के तौर पर विभिन्न विभाग संभाल चुके हैं। 1999 से 2000 तक उन्होंने वन और परिवहन मंत्री के रूप में कार्य किया। वह 1980 से 1984 तक लोकसभा सदस्य भी रहे। आरोप लगने के बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
आरोप था कि 27 फरवरी 1999 को कोझिकोड स्थित सरकारी अतिथि गृह में उनसे मिलने गई अधिकारी के साथ उन्होंने यौन संबंध बनाने पर जोर दिया था।
कोझिकोड की एक स्थानीय अदालत ने 2002 में उन्हें एक साल के साधारण कारावास की सज़ा सुनाई थी।
साल 2005 में अपील दायर करने पर कोझिकोड सत्र अदालत ने सज़ा घटाकर तीन महीने का साधारण कारावास कर दिया था। बाद में नादर ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने गौर किया कि प्राथमिकी दर्ज होने में दो साल से अधिक की देरी हुई थी, क्योंकि पुलिस महानिदेशक को अधिकारी ने 25 मार्च 2001 को शिकायत दी और उसके आधार पर नौ मई 2001 को मामला दर्ज हुआ।
पीड़िता का कहना था कि मंत्री उनके ही विभाग के प्रमुख थे, इस कारण वह शिकायत करने से डर रही थीं और फरवरी 2000 में मंत्री के इस्तीफा देने के बाद ही आगे बढ़ने का निर्णय लिया।
अदालत ने कहा, ‘‘उनका यह स्पष्टीकरण कि तीन मई 2000 को बयान देने के बाद भी वह भय और दबाव में थीं, बहुत अस्पष्ट है और कोई भी सामग्री इसका समर्थन नहीं करती है। इसलिए कोई उचित कारण नहीं था कि इतनी पढ़ी-लिखी और उच्च पदस्थ अधिकारी कम से कम घटना के तुरंत बाद शिकायत न करें।’’
अदालत ने आदेश दिया, ‘‘...किसी भी स्थिति में यह ऐसा मामला है जिसमें याचिकाकर्ता को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए था। उपरोक्त सभी कारणों से निचली अदालत और अपीलीय अदालत द्वारा दर्ज दोषसिद्धि और सज़ा को निरस्त किया जाता है। याचिकाकर्ता को आरोपित अपराध का दोषी नहीं पाया जाता और उसे बरी किया जाता है।’’
भाषा नोमान