बिना किसी भय या पक्षपात के कानून का शासन लागू करना न्यायालयों का कर्तव्य: न्यायमूर्ति नागरत्ना
देवेंद्र माधव
- 06 Sep 2025, 05:40 PM
- Updated: 05:40 PM
नयी दिल्ली, छह सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बी वी नागरत्ना ने शनिवार को कहा कि यदि कानून के शासन को लोकतंत्र के सार के रूप में संरक्षित रखना है, तो अदालतों का कर्तव्य है कि वे इसे बिना किसी भय या पक्षपात के लागू करें।
यहां राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के 12वें दीक्षांत समारोह में न्यायमूर्ति नागरत्ना ने इस बात पर जोर दिया कि कानून केवल नियमों के बारे में नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने के संबंध में है कि प्रत्येक व्यक्ति - धन, स्थिति, जाति, लिंग या आस्था की परवाह किए बिना - कानून के समक्ष एक समान विषय के रूप में माना जाए।
उन्होंने कहा कि कानूनी पेशा बदलाव का एक माध्यम है, विशेष रूप से भारतीय समाज में ‘‘जहां गहरी असमानताएं बनी हुई हैं’’।
उन्होंने कहा, ‘‘एक लोकतंत्र में, जहां कानून का शासन उसका सार है, उसे संरक्षित और लागू किया जाना चाहिए, विशेष रूप से न्यायालयों द्वारा। यदि कानून के शासन को लोकतंत्र के सार के रूप में संरक्षित किया जाना है, तो न्यायालयों का यह कर्तव्य है कि वे उसे बिना किसी भय या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के लागू करें।’’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘कानून का शासन सुशासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, क्योंकि भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो अन्य बातों के अलावा, एक स्वतंत्र बार के समर्थन और सहायता के कारण कायम है।’’
उन्होंने कहा कि संविधान को उसकी पूरी उदारता और अच्छे इरादों के साथ लागू करने की जिम्मेदारी केवल सत्ता के गलियारों में बैठे लोगों की ही नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी प्रत्येक वकील की है, जिसे संविधान का समर्थक होना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘अक्सर, कानून को एक ऐसे किले के रूप में देखा जाता है जिस तक केवल ताकतवर लोग ही पहुंच सकते हैं। लेकिन आपके हाथों में, इसे एक सेतु बनना होगा - अधिकारों और उपायों के बीच, संविधान और नागरिकों के बीच, न्याय और जनता के बीच एक सेतु।’’
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, ‘‘याद रखें, कानून सभी का है, लेकिन हर कोई इसका उपयोग नहीं कर सकता। आप वह अंतर पैदा कर सकते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि इस पहुंच से वंचित न रहा जाए।’’
युवा विधि छात्रों को सलाह देते हुए न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि संविधान के संरक्षक के रूप में भारत की सही दिशा में प्रगति तभी सुनिश्चित हो सकती है जब वकील वाणिज्य की स्थिति को सुगम बनाएं, समुदाय में विश्वास निर्माण को सक्षम बनाएं और संवैधानिक मूल्यों को आत्मसात करते हुए नागरिक ढांचे के निर्माण में अपनी उचित भूमिका निभाएं।
भाषा
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