न्यायाधिकरणों के गैर-न्यायिक सदस्य सरकार के खिलाफ आदेश पारित करने से कतराते हैं : सीजेआई
प्रशांत माधव
- 20 Sep 2025, 06:02 PM
- Updated: 06:02 PM
नयी दिल्ली, 20 सितंबर (भाषा) भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई ने शनिवार को कहा कि न्यायाधिकरणों के कुछ गैर-न्यायिक सदस्य, जो आमतौर पर पूर्व नौकरशाह होते हैं, सरकार के खिलाफ कोई भी आदेश पारित करने के खिलाफ हैं और उन्होंने ऐसे सदस्यों से इस बारे में विचार करने का आग्रह किया।
केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण 2025 के 10वें अखिल भारतीय सम्मेलन को यहां संबोधित करते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह की उपस्थिति में न्यायाधिकरणों और देश की न्याय वितरण प्रणाली से जुड़े विभिन्न मुद्दों को उठाया।
प्रधान न्यायाधीश गवई ने कहा कि प्रशासनिक न्यायाधिकरण न्यायालयों से भिन्न हैं क्योंकि वे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच एक विशिष्ट स्थान रखते हैं तथा उनके कई सदस्य प्रशासनिक सेवाओं से आते हैं जबकि अन्य न्यायपालिका से आते हैं।
उन्होंने कहा कि यह विविधता एक ताकत है क्योंकि यह न्यायिक कौशल और प्रशासनिक अनुभव को एक साथ लाती है, लेकिन यह आवश्यक है कि सदस्यों को लगातार प्रशिक्षित किया जाए और पात्रता तथा आचरण के समान मानकों का पालन कराया जाए।
सीजेआई ने कहा, “न्यायिक सदस्यों को लोक प्रशासन की बारीकियों से परिचित होने से लाभ होगा, जबकि प्रशासनिक सदस्यों को कानूनी तर्क-वितर्क का प्रशिक्षण आवश्यक होगा। मेरी बात को अन्यथा न लें क्योंकि आजकल आपको पता ही नहीं होता कि आप क्या कह रहे हैं और सोशल मीडिया पर क्या आ रहा है।”
उन्होंने कहा, “लेकिन एक न्यायाधीश के तौर पर, मैंने व्यक्तिगत रूप से देखा है कि कुछ प्रशासनिक सदस्य - प्रशासन से आने वाले कुछ न्यायाधीश... यह नहीं भूलते कि वे प्रशासन से आते हैं और... सरकार के खिलाफ कोई भी आदेश पारित करने के खिलाफ हैं। इसलिए मुझे लगता है कि उन्हें इस पर विचार करना चाहिए...,।”
उन्होंने कहा कि न्यायिक शिक्षाविदों द्वारा आयोजित नियमित कार्यशालाएं, सम्मेलन और प्रशिक्षण कार्यक्रम इस संबंध में अमूल्य साबित हो सकते हैं और न्यायाधिकरण के सदस्यों की प्रभावशीलता को काफी बढ़ा सकते हैं।
सीजेआई गवई ने कहा, “इसके अलावा, यदि स्पष्ट पात्रता मानदंडों के साथ एक समान नियुक्ति प्रक्रिया लागू की जाती है, तो इससे मनमानी के सभी प्रश्न समाप्त हो जाएंगे और नागरिकों का न्यायाधिकरण में विश्वास मजबूत होगा।”
उन्होंने न्यायाधिकरणों के निर्णयों के विरुद्ध अपीलों की बहुलता की ओर भी ध्यान दिलाया, जिस मुद्दे को मेघवाल ने भी अपने संबोधन में उठाया, क्योंकि ऐसे मामलों में जहां केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) और उच्च न्यायालयों के निष्कर्ष एक जैसे होते हैं, उनमें भी उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की जाती है।
उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नौकरशाह कोई भी जोखिम लेने से डरते हैं और सारा दोष अदालतों पर डालना चाहते हैं।
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