जघन्य अपराधों में शीघ्र सुनवाई जरूरी, अपराधी व्यवस्था का दुरुपयोग करने की कोशिश करते हैं: न्यायालय
सुरेश अविनाश
- 04 Sep 2025, 10:18 PM
- Updated: 10:18 PM
नयी दिल्ली, चार सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने जघन्य अपराधों की शीघ्र सुनवाई के लिए समर्पित एनआईए अदालतों की आवश्यकता पर बृहस्पतिवार को बल दिया और कहा कि ‘‘दुर्दांत अपराधी न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने’’ का प्रयास करते हैं और अदालतों को जमानत देने के लिए "मजबूर" करते हैं।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने यह टिप्पणी अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी द्वारा यह कहे जाने के बाद की कि केंद्र समर्पित एनआईए अदालतें स्थापित करने के लिए राज्यों के साथ परामर्श कर रहा है।
भाटी ने कहा, ‘‘इस संबंध में जल्द ही निर्णय लिया जाएगा।’’
पीठ ने भाटी से कहा कि जघन्य अपराधों में मुकदमों का समयबद्ध तरीके से पूरा होना समाज के हित में है और यह दुर्दांत अपराधियों को हतोत्साहित करता है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह आपके लिए प्रोत्साहन का एक अवसर है... कभी-कभी ये दुर्दांत अपराधी पूरी न्याय व्यवस्था पर कब्जा जमा लेते हैं और मुकदमे को पूरा नहीं होने देते, जिसके परिणामस्वरूप अदालतें देरी के आधार पर उन्हें जमानत देने के लिए मजबूर हो जाती हैं।’’
एएसजी ने कहा कि राज्यों को इस बात पर सहमत होना होगा कि ऐसी अदालतें स्थापित करने का अधिकार उनके पास है।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा कि केंद्र को केवल आवश्यक बजट आवंटन करने और उच्च न्यायालयों की सहमति की आवश्यकता है, जबकि राज्य सरकारों की भूमिका पर बाद में विचार किया जा सकता है।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 14 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दी।
शीर्ष अदालत ने 18 जुलाई को विशेष कानूनों से संबंधित मामलों के लिए अदालतें स्थापित नहीं करने को लेकर केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की खिंचाई की थी, क्योंकि अदालतें अभियुक्तों को जमानत देने के लिए मजबूर होंगी।
न्यायालय ने कहा कि यदि प्राधिकारी एनआईए अधिनियम और अन्य विशेष कानूनों के तहत त्वरित सुनवाई के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे वाली अदालतें स्थापित करने में विफल रहते हैं, तो अदालत को अनिवार्य रूप से अभियुक्तों को ज़मानत पर रिहा करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, क्योंकि समयबद्ध तरीके से मुकदमे को पूरा करने के लिए कोई प्रभावी तंत्र नहीं है।
न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालतों के रूप में नामित करना उच्च न्यायालय को उनका नाम बदलने के लिए "मजबूर" करने के समान है।
शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली के नक्सल समर्थक कैलाश रामचंदानी की जमानत याचिका पर यह आदेश पारित किया। वर्ष 2019 में एक आईईडी विस्फोट में राज्य पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया टीम के 15 पुलिसकर्मियों के मारे जाने के बाद रामचंदानी पर मामला दर्ज किया गया था।
शीर्ष अदालत ने 17 मार्च के अपने पिछले आदेश को वापस ले लिया, जिसमें मुकदमे की सुनवाई में अत्यधिक देरी के आधार पर उनकी ज़मानत याचिका खारिज कर दी गई थी।
अदालत ने कहा कि अगर केंद्र और राज्य सरकारें एनआईए मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत स्थापित करने में विफल रहती हैं, तो उनकी राहत याचिका पर विचार किया जाएगा।
भाषा सुरेश