माकपा ने वक्फ कानून पर उच्चतम न्यायालय के आंशिक रोक का स्वागत किया
संतोष माधव
- 15 Sep 2025, 04:43 PM
- Updated: 04:43 PM
नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने वाले उच्चतम न्यायालय के आदेश का स्वागत किया, जिसने इस साल की शुरुआत में देशव्यापी विरोध और बहस को जन्म दिया था।
माकपा महासचिव एम ए बेबी ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘माननीय उच्चतम न्यायालय ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों पर रोक लगा दी है, जिसमें वह प्रावधान भी शामिल है जिसके अनुसार किसी विवादित संपत्ति को तब तक वक्फ नहीं माना जाएगा जब तक कि कार्यपालिका जांच के बाद इसकी अनुमति ना दे।’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘माकपा आंशिक रूप से रोक लगाने का स्वागत करती है।’’
उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वक्फ कानून के कई प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगा दी, जिसमें यह प्रावधान भी शामिल है कि केवल पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाले लोग ही किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में समर्पित कर सकते हैं, लेकिन न्यायालय ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज की पीठ ने वक्फ संपत्तियों की स्थिति का निर्णय करने के लिए कलेक्टर को दी गई शक्तियों पर भी रोक लगा दी और वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम भागीदारी के विवादास्पद मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 20 में से चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए और राज्य वक्फ बोर्डों में 11 में से तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होने चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण हस्तक्षेपों में से एक धारा 3सी के संबंध में आया, जो वक्फ संपत्तियों की स्थिति निर्धारित करने के लिए नामित सरकारी अधिकारियों को शक्तियां प्रदान करती है। पीठ ने कानून की धारा 3सी(2) के एक प्रावधान पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि किसी संपत्ति को तब तक वक्फ नहीं माना जाएगा जब तक कि किसी सरकारी अधिकारी की रिपोर्ट में अतिक्रमण नहीं होने की पुष्टि न हो जाए।
इसने धारा 3सी(3) के संचालन पर भी रोक लगा दी, जो अधिकारी को किसी संपत्ति को सरकारी भूमि घोषित करने और राजस्व रिकॉर्ड में बदलाव करने का अधिकार देती थी।
आदेश ने धारा 3सी(4) पर रोक लगा दी जिसके तहत राज्य सरकार को वक्फ बोर्ड को अधिकारी के निष्कर्षों के आधार पर अपने रिकॉर्ड को सही करने का निर्देश देना आवश्यक था।
पीठ ने कहा, ‘‘कलेक्टर को अधिकार निर्धारित करने की अनुमति देना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के खिलाफ है, कार्यपालिका को नागरिकों के अधिकार निर्धारित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’
भाषा संतोष