वर्ष 1952-70 के बीच संसद से पारित हुए 14 निजी विधेयक : पुस्तक
धीरज दिलीप
- 18 May 2025, 07:01 PM
- Updated: 07:01 PM
(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, 18 मई (भाषा)भारतीय संसदीय लोकतंत्र के प्रथम दो दशक निजी विधेयकों के लिए ‘स्वर्णिम काल’ थे। मंत्री या सरकार का हिस्सा नहीं रहने वाले संसद के सदस्यों द्वारा पेश किये गए 14 निजी विधेयक 1952 से 1970 के बीच पारित किये गये।
राज्यसभा के एक वरिष्ठ अधिकारी द्वारा लिखी गई नयी किताब के एक अध्याय में उल्लेख किया गया है कि इस अवधि में न केवल 14 निजी विधेयक (पीएमबी) कानून बने, बल्कि 2014 तक संसद में चर्चा किए गए कुल निजी विधेयकों में से लगभग आधे इसी अवधि में चर्चा के लिए पेश किये गए।
राज्यसभा में संयुक्त सचिव राघव पी दास की नयी किताब ‘‘ डेमोक्रेटिक कंटेस्टेशन एंड लेजिस्टेटिव प्रोसेस’’ में कानून निर्माण के संदर्भ में कार्यपालिका-विधायिका के संबंधों पर विचार किया गया है।
स्वतंत्रता के बाद से केवल 14 निजी विधेयकों के कानून बनने पर प्रकाश डालते हुए राज्यसभा के वरिष्ठ अधिकारी ने एक अध्याय में रेखांकित किया कि तत्कालीन सरकार ने, पूर्ण बहुमत होने के बावजूद, भारत के संसदीय लोकतंत्र के प्रारंभिक वर्षों में इस माध्यम को महत्व दिया। आखिरी निजी सदस्य विधेयक को 1970 संसद से पारित किया गया था।
प्रथम चार लोकसभाओं (1952-70) और बारहवीं से पंद्रहवीं लोकसभा (1998-2014) के दौरान दोनों सदनों में विचार किए गए निजी विधेयकों की संख्या के बीच तुलना करते हुए, दास ने कहा कि प्रथम चार लोकसभाएं निजी सदस्यों की विधायी पहल के दृष्टिकोण से ‘जीवंत’ थीं।
लोकसभा में 1952-70 के दौरान 239 निजी विधेयकों पर विचार किया गया, जो प्रथम लोकसभा के आरंभ से लेकर पंद्रहवीं लोकसभा के अंत तक विचार किये गये कुल 460 विधेयकों का 52 प्रतिशत है।
इसके विपरीत, 1998 से 2014 के बीच केवल 44 ऐसे विधेयकों पर विचार किया गया।
वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी किताब में लिखा है कि निजी विधेयकों के संदर्भ में ‘स्वर्णिम काल’ काफी हद तक प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के साथ मेल खाता है, जिसे अक्सर ‘‘भारत के संसदीय लोकतंत्र का स्वर्णिम काल’’ कहा जाता है।
दास ने किताब में लिखा है, ‘‘संसद में प्रचंड बहुमत होने के बावजूद, नेहरू ने विपक्ष के साथ विश्वास और परामर्श का माहौल बनाने का प्रयास किया। उन्होंने संसद में छोटे गैर-कांग्रेसी दलों के नेताओं के साथ ऐसा व्यवहार किया, जैसे कि वे वास्तविक विपक्षी नेता हों, ताकि भारत में संसदीय लोकतंत्र की परपंराएं बनाई जा सकें।’’
उन्होंने कहा कि 1952-70 के दौरान, उत्तरोत्तर कांग्रेस सरकारों ने संसदीय समय उपलब्ध कराकर इन निजी विधेयकों पर विचार करने के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाईं।
उन्होंने लिखा है, ‘‘स्पष्टतः, तत्कालीन सरकार ने सांसदों को विधायी प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित किया तथा दोनों सदनों में उनके पारित होने को सुनिश्चित किया। प्रधानमंत्री नेहरू ने निजी सदस्य विधेयक (पीएमबी) प्रणाली को मजबूत बनाने में व्यक्तिगत रुचि ली तथा चर्चा के दौरान स्वयं उपलब्ध रहे तथा कई बार बहस का जवाब भी दिया।’’
उन्होंने नेहरू द्वारा भारतीय मवेशी संरक्षण विधेयक, 1952, जिसे लोकसभा में सेठ गोविंद दास (कांग्रेस) ने प्रस्तुत किया था; पशु क्रूरता निवारण विधेयक, 1953, जिसे राज्यसभा में रुक्मिणी देवी अरुंडेल (निर्दलीय) ने प्रस्तुत किया था; तथा भारतीय धर्मान्तरित (विनियमन और पंजीकरण) विधेयक, 1954, जिसे लोकसभा में जेठालाल हरिकृष्ण जोशी (कांग्रेस) ने प्रस्तुत किया था, पर चर्चा के दौरान हिस्सा लेने का उल्लेख किया है।
हालांकि, अब तक 14 निजी सदस्य विधेयकों ने सरकार के सक्रिय समर्थन से कानून का रूप लिया है, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी ने पुस्तक में लिखा है, ‘‘1970 के बाद से निजी सदस्य विधेयक प्रक्रिया का महत्व घट गया है और तब से अब तक कोई भी निजी विधेयक पारित होकर कानून नहीं बन सका है।’’
संसद में पारित होकर कानून बनने वाले 14 निजी विधेयकों में से पांच को पहले राज्यसभा में पेश किया गया था, जबकि नौ को पहले लोकसभा में पेश किया गया था।
कानून का रूप लेने वाले इन 14 निजी विधेयकों में से दो को लोकसभा के निर्दलीय सदस्यों ने पेश किया था, जबकि शेष को उस वक्त केंद्र में सत्तारूढ़ रही कांग्रेस पार्टी के सदस्यों ने पेश किया था।
विपक्ष के किसी भी सदस्य द्वारा प्रस्तुत एक भी निजी विधेयक अब तक कानून नहीं बन सका है।
कानून के रूप में अधिनियमित कुछ निजी सदस्य विधेयक हैं - संसद की कार्यवाही (प्रकाशन संरक्षण) विधेयक, 1956, जिसे 1956 में कांग्रेस के फिरोज गांधी ने प्रस्तुत किया था; प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष (राष्ट्रीय महत्व की घोषणा) विधेयक, 1954, जिसे कांग्रेस के बलवंत सिंह मेहता ने प्रस्तुत किया था; महिला और बाल संस्थान (लाइसेंसिंग) विधेयक, 1954, जिसे स्वतंत्र सांसद राजमाता कमलेन्दु मति शाह ने प्रस्तुत किया था; और उच्चतम न्यायालय के अपीलीय (आपराधिक) क्षेत्राधिकार का विस्तार विधेयक, 1968, जिसे निर्दलीय सांसद आनंद नारायण मुल्ला ने प्रस्तुत किया था।
पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि कानून का रूप लेने वाला पहला निजी सदस्य विधेयक मुस्लिम वक्फ विधेयक, 1952 था, जिसे कांग्रेस के सैयद मोहम्मद अहमद ने पेश किया था।
इस पर लोकसभा में चर्चा हुई थी और इसे प्रवर समिति को भेज दिया गया था, अंततः 21 मई 1954 को यह कानून बन गया।
थिंक टैंक पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, सोलहवीं लोकसभा में कुल 999 निजी विधेयक पेश किए गए। हालांकि, कुल 50 घंटों में 10 से भी कम विधेयकों पर चर्चा की गई।
सत्रहवीं लोक सभा में 729 निजी सदस्य विधेयक (पीएमबी) पेश किये गये, लेकिन लोकसभा में केवल दो पर ही चर्चा हुई। इसी अवधि के दौरान, राज्यसभा में 705 ऐसे विधेयक पेश किये गये तथा 14 पर चर्चा हुई।
भाषा धीरज