साइरस की कथित गतिविधियों पर कोई टिप्पणी नहीं करने की टाटा की नीति कारगर रही : जीवनी लेखक
धीरज अविनाश
- 06 Nov 2024, 05:19 PM
- Updated: 05:19 PM
नयी दिल्ली, छह नवंबर (भाषा) टाटा समूह को तोड़ने की साइरस मिस्री की कथित कोशिश संबंधी आशंकाओं के बारे में पूछे जाने पर रतन टाटा की ‘कोई टिप्पणी नहीं’वाला बयान अन्य किसी वक्तव्य से अधिक प्रभावी साबित हुआ था। यह दावा दिवंगत उद्योगपति की जीवनी लिखने वाले थॉमस मैथ्यू ने किया है।
टाटा समूह के कुछ दिग्गजों को आशंका थी कि साइरस मिस्री समूह को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
मैथ्यू ने ‘पीटीआई वीडियो’ को दिए साक्षात्कार में बताया कि टाटा ने 2012 में अपने उत्तराधिकारी के रूप में दिवंगत मिस्त्री का पूर्ण समर्थन किया था, जबकि मनोनीत चेयरमैन मिस्री के साथ ‘समानांतर संचालन’ कर रहे टाटा ने पहले वर्ष के अंत में उनकी उपयुक्तता पर पुनर्विचार किया था। उन्होंने बताया कि 2016 में टाटा संस के चेयरमैन के रूप में मिस्री को हटाने का फैसला ‘‘आचार और नैतिक मुद्दे’’ के साथ-साथ उनके प्रदर्शन के कारण हुआ था।
रतन टाटा की जीवनी ‘रतन टाटा ए लाइफ’ में टाटा समूह के कुछ दिग्गजों के हवाले से कहा गया है कि उन्हें आशंका थी कि मिस्त्री नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक के कारोबार वाले समूह को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने यह आशंका चेयरमैन के रूप में मिस्त्री की कार्यशैली और शाप्रूजी पालोनजी (एसपी) समूह द्वारा टाटा संस में शेयरों के अधिग्रहण के पिछले रिकॉर्ड के आधार पर जताई थी।
इस मुद्दे के बारे में पूछे जाने पर पूर्व नौकरशाह ने कहा, ‘‘इस बारे में दो विचारधाराएं हैं। टाटा समूह के कुछ दिग्गजों का कहना है कि जिस तरह से एसपी समूह ने टाटा संस के शेयर प्राप्त किये, वह अच्छा संकेत नहीं था।’’
मैथ्यू ने टाटा समूह के दिग्गजों के हवाले से बताया, ‘‘जिस तरह से उन्होंने (एसपी समूह ने) शेयर एकत्रित किए, उससे जेआरडी नाराज थे, इसे हल्के ढंग से कहें तो, और वह बहुत, बहुत असहज थे... (एक) गुप्त तरीके से, एसपी समूह ने, जैसा कि वे कहते हैं, कमजोर पारिवारिक सदस्यों की कमजोरियों का फायदा उठाते हुए शेयर हासिल किए।’’
किताब के मुताबिक एसपी समूह ने टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ाकर लगभग 18 प्रतिशत कर ली थी और कंपनी के शेयर खरीद लिए थे, जो जेआरडी ने अपने भाई-बहनों को दे दिए थे।
मैथ्यू लंबे समय से टाटा के साथ जुड़े थे। वह 1995 में जब तत्कालीन उद्योग मंत्री के सचिव थे तब उनक संपर्क टाटा से हुआ। लेखक ने कहा, ‘‘अब दूसरा सहायक विमर्श यह है कि जब टाटा, टाटा संस के चेयरमैन थे, तब टाटा संस के कई निदेशक टाटा की बड़ी कंपनियों के भी निदेशक थे। लगभग 15-20 निदेशक पद ऐसे थे, जिनमें ये लोग टाटा ट्रस्ट, टाटा संस और टाटा कंपनियों के बीच की कड़ी थे।
उन्होंने कहा, ‘‘यह (टाटा संस के निदेशकों को अन्य टाटा कंपनियों में बोर्ड सदस्य के रूप में रखने की प्रथा) साइरस मिस्त्री के समय में काफी हद तक अनुपस्थित थी। वास्तव में, दो लोगों को छोड़कर, वे लगभग विशेष रूप से सबसे बड़ी (टाटा) कंपनियों (के बोर्ड) में थे। इसलिए उन्होंने कहा कि प्रमुख कंपनियों (बोर्ड) से टाटा समूह के दिग्गजों को बाहर रखना भी अच्छा संकेत नहीं था।’’
टाटा समूह के दिग्गजों के हवाले से मैथ्यू ने कहा,‘‘उनका कहना था कि (टाटा समूह को तोड़ने का) की कोशिश अभी नहीं की गई है लेकिन यह मकसद हो सकता है।’’
जब उनसे पूछा गया कि क्या टाटा को भी अन्य दिग्गजों जैसी ही आशंकाएं थीं, उन्होंने कहा, ‘‘टाटा बहुत ही मितभाषी व्यक्ति थे, वे बहुत ही दयालु व्यक्ति थे। वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करते। लेकिन मेरे लिए, उनकी टिप्पणी न करना किसी टिप्पणी से भी अधिक प्रभावी है... मैंने कहा, ‘‘सर, क्या आपको लगता है कि यह सच है? कोई टिप्पणी नहीं (टाटा ने जवाब दिया)’। मुझे लगता है कि यह उनके द्वारा कोई बयान देने से भी अधिक प्रभावशाली है।’’
अपने सौतेले भाई नोएल टाटा के साथ रतन टाटा के संबंधों और उनके उत्तराधिकारी के रूप में नोएल को न चुने जाने के बारे में पूछे जाने पर मैथ्यू ने कहा, ‘‘ टाटा वास्तव में नोएल को बहुत पसंद करते थे, जहां तक मैं समझता हूं, उन्हें सचमुच लगता था कि उनके (नोएल के) पास इस (टाटा) जैसे समूह को चलाने का अनुभव नहीं है, लेकिन वह जानते थे कि वह बहुत ही योग्य व्यक्ति हैं।’’
भाषा धीरज