आपत्तिजनक व्हाट्सएप संदेशों के लिए स्थानीय नेता के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करने से अदालत का इनकार
पारुल वैभव
- 29 Oct 2024, 07:44 PM
- Updated: 07:44 PM
मुंबई, 29 अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने एक व्हाट्सएप ग्रुप पर “बेहद आपत्तिजनक” संदेश भेजने के आरोप में एक स्थानीय नेता के खिलाफ 2020 में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने से यह करते हुए इनकार कर दिया कि आरोपी को पता था कि इस संदेश से धार्मिक भावनाएं आहत होंगी।
न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने 16 अक्टूबर को पारित आदेश में कहा कि संदेश “बेहद आपत्तिजनक और धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले थे।”
पीठ ने बाल महाराज उर्फ संतोष दत्तात्रेय कोली की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने मई 2020 में धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने, किसी धर्म का जानबूझकर एवं दुर्भावनापूर्ण तरीके से अपमान करने और आपराधिक धमकी देने के आरोप में कोल्हापुर के इचलकरंजी पुलिस थाने में उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था।
मामले में शिकायतकर्ता ने कोली पर उस व्हाट्सएप ग्रुप पर आपत्तिजनक संदेश भेजने का आरोप लगाया था, जिससे विभिन्न जाति और धर्म के 182 लोग जुड़े हुए थे।
शुरुआत में कोली ने दावा किया था कि शिकायतकर्ता मामले को रद्द करने के लिए तैयार हो गया है, लेकिन बाद में उन्होंने पीठ को सूचित किया कि उसने इस बाबत सहमति नहीं जताई है।
पीठ ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता की सहमति भी होती, तो भी मामला रद्द नहीं किया जा सकता था, क्योंकि अपराध समाज के खिलाफ था।
पीठ ने कहा, “इन संदेशों को पढ़ने मात्र से पता चलता है कि इनसे किसी धर्म विशेष के सदस्यों की धार्मिक भावनाएं आहत होंगी। हम इन संदेशों को बेहद आपत्तिजनक पाते हैं। ये धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं।”
उसने कहा कि ये संदेश दो धार्मिक समुदाय के सदस्यों के बीच दुश्मनी, नफरत और दुर्भावना को बढ़ावा देने में सक्षम हैं।
कोली ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि उन्होंने जो संदेश साझा किए थे, उन्हें अकेले संदेश के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता, क्योंकि उन्होंने ग्रुप में भेजे गए अन्य संदेशों का जवाब भर दिया था। उन्होंने दावा किया कि इन संदेशों से उनका धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई इरादा नहीं था।
भाषा पारुल