यूएनएससी विस्तार पर अधिकतर सदस्यों के विचार समाहित करने में अधूरा संधि : भारत
वैभव माधव
- 08 Oct 2024, 10:27 PM
- Updated: 10:27 PM
संयुक्त राष्ट्र, आठ अक्टूबर (भाषा) भारत ने कहा है कि दुनिया के नेताओं द्वारा पिछले महीने यहां आम-सहमति से अपनायी गयी ‘भविष्य की संधि’ संयुक्त राष्ट्र के अधिकतर सदस्य देशों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को समाहित करने में ‘‘अधूरा रहा है’’, जिसमें सुरक्षा परिषद के विस्तार और एक निश्चित समय सीमा के भीतर सुधार पर पाठ-आधारित वार्ता शुरू करने का आह्वान किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र ने सितंबर में महासभा के उच्चस्तरीय सत्र के दौरान ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ की मेजबानी की जहां दुनिया के नेताओं ने ‘भविष्य की संधि’ को आम-सहमति से अपनाया।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजदूत पी हरीश ने ‘संयुक्त राष्ट्र प्रणाली को मजबूत करने’ पर संयुक्त राष्ट्र महासभा के 79वें सत्र को संबोधित किया।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत एक “अधिक महत्वाकांक्षी” अध्याय पांच देखना पसंद करता जिसमें “वैश्विक शासन में परिवर्तन” संबंधी समझौते के अध्याय का उल्लेख है और जिसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार को लेकर भाषा शामिल है।’’
हरीश ने कहा कि दिल्ली का सतत रूप से मानना है कि ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ के लिए अंतर-सरकारी वार्ता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों और विस्तार से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान नहीं दिया जा सका।
उन्होंने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र के अधिकतर सदस्य देशों द्वारा व्यक्त किए गए विचारों को स्पष्ट रूप से शामिल किया गया जाता- विशेष रूप से स्थायी और अस्थायी दोनों श्रेणियों में यूएनएससी के विस्तार और एक निश्चित समय सीमा के भीतर पाठ-आधारित वार्ता शुरू करने के संबंध में। इस पहलू पर, समझौता निश्चित रूप से अधूरा लगता है।’’
समझौते में सुरक्षा परिषद को विस्तारित करने की आवश्यकता पर चर्चा की गई है ताकि यह संयुक्त राष्ट्र की वर्तमान सदस्यता का अधिक प्रतिनिधित्व कर सके तथा समकालीन विश्व की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित कर सके।
हरीश ने ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन का जिक्र किया जहां उन्होंने कहा था कि सुधार प्रासंगिकता की कुंजी है।
भारत ने दोहराया है कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में सुधार की भाषा में प्रगति हुई है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं में विकासशील देशों की भागीदारी को सुदृढ़ बनाने तथा ऋण संबंधी कमजोरियों का तत्काल और प्रभावी समाधान करने के लिए और अधिक कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
भाषा वैभव