दिल्ली उच्च न्यायालय ने लद्दाख के जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की नजरबंदी से जुड़ी याचिका बंद की
प्रशांत पवनेश
- 04 Oct 2024, 06:25 PM
- Updated: 06:25 PM
नयी दिल्ली, चार अक्टूबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सोनम वांगचुक को इस सप्ताह के शुरू में पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने के संबंध में एक वकील की कार्यवाही को बंद कर दिया और कहा कि जलवायु कार्यकर्ता, जिन्हें अब रिहा कर दिया गया है, अपनी शिकायतें स्वयं उठा सकते हैं।
मुख्य न्यायाधीश मनमोहन की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा, “उन्हें अपने अधिकारों के वास्ते आंदोलन करने के लिए (किसी दूसरे व्यक्ति की) जरूरत नहीं है। वे चाहें तो अपने अधिकारों के लिए आंदोलन कर सकते हैं... इस मामले में जनहित याचिका नहीं हो सकती... वे अपने तरीके से आंदोलन करेंगे। वे (वांगचुक और उनके साथी) जो भी करना चाहेंगे, करेंगे।”
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि वांगचुक को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किए बिना दिल्ली पुलिस ने गैरकानूनी तरीके से लगभग तीन दिनों तक हिरासत में रखा।
भूषण ने बृहस्पतिवार को दावा किया था कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के दावे के बावजूद वांगचुक “पूरी तरह से स्वतंत्र” नहीं हैं। उन्होंने (मेहता ने) पीठ को बताया कि “आज सुबह तक” उनकी आवाजाही पर “कोई प्रतिबंध” नहीं था।
मेहता ने कहा कि “कभी कोई बाधा नहीं थी” तथा तथ्यात्मक रूप से गलत बयान दिए जा रहे थे।
हालांकि, भूषण ने तर्क दिया कि दिल्ली पुलिस के सभा और विरोध प्रदर्शन पर रोक लगाने के आदेश से उत्पन्न मुद्दे अब भी मौजूद हैं, क्योंकि इसे लापरवाही से पारित किया गया था और बाद में कार्यकर्ता और उनके समूह को शहर में प्रवेश करने से रोकने के इरादे से अदालत की सुनवाई से पहले इसे वापस ले लिया गया था।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा, “यदि वह स्वतंत्र हैं, तो इसे यहीं छोड़ दीजिए। आज सुबह यूट्यूब पर मैंने कल रात एक टीवी पत्रकार के साथ उनका साक्षात्कार देखा।”
पीठ में न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि वह निषेधाज्ञा पारित करने के मुद्दे पर “बेहतर मामले में” विचार करेगी और भूषण के इस बयान को रिकार्ड में ले लिया कि वह याचिका वापस लेना चाहते हैं।
वांगचुक सहित लद्दाख के लगभग 120 लोगों को सोमवार रात पुलिस ने दिल्ली सीमा पर कथित तौर पर हिरासत में ले लिया, जब वे लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय राजधानी की ओर मार्च कर रहे थे।
छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के "स्वायत्त जिलों और स्वायत्त क्षेत्रों" के रूप में प्रशासन से संबंधित है।
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