न्यायालय ने खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को असंवैधानिक बताकर निरस्त किया
जोहेब नरेश
- 03 Oct 2024, 07:07 PM
- Updated: 07:07 PM
नयी दिल्ली, तीन अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को “असंवैधानिक” करार देते हुए निरस्त कर दिया और कहा कि पंजाब के 16 निजी विश्वविद्यालयों को छोड़कर खालसा विश्वविद्यालय को इस कानून के दायरे में लाया गया।
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि खालसा विश्वविद्यालय को कानून के दायरे में लाने का कोई उचित कारण नहीं बताया गया।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक नवंबर 2017 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। उच्च न्यायालय ने 17 जुलाई 2017 को लागू किए गए अधिनियम को रद्द करने की याचिका खारिज कर दी थी।
पीठ ने कहा कि पंजाब ने पंजाब निजी विश्वविद्यालय नीति, 2010 बनाई थी और सात नवंबर 2016 को राज्य की विधानसभा ने खालसा विश्वविद्याल अधिनियम, 2016 को मंजूरी दी।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 30 मई, 2017 को राज्य सरकार ने 2016 अधिनियम को निरस्त करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था। पीठ ने कहा कि 2017 अधिनियम को जुलाई 2017 में राज्यपाल की मंजूरी मिली थी।
पीठ ने 2017 अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों को लेकर दिए गए हलफनामे का उल्लेख किया जिसमें कहा गया था, "खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अध्यादेश, 2017 का उद्देश्य खालसा कॉलेज, अमृतसर के विरासती दर्जे की रक्षा करते हुए खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 को निरस्त करना था।"
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि इस बारे में कोई साक्ष्य पेश नहीं किया गया कि ऐसी कौन सी अनिवार्य व आकस्मिक स्थिति थी, जिसकी वजह से खालसा विश्वविद्यालय को प्रभावित करने वाला कानून बनाने की जरूरत पड़ी।
पीठ ने कहा,, "इसलिए, हमने पाया है कि विवादित अधिनियम के कारण राज्य के 16 निजी विश्वविद्यालयों और खालसा विश्वविद्यालय को अलग कर दिया और खालसा विश्वविद्यालय के लिए अन्य निजी विश्वविद्यालयों के साथ भेदभाव करने के लिए कोई उचित कारण नहीं बताया गया। इसलिए विवादित अधिनियम भेदभावपूर्ण है और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।"
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि 2017 अधिनियम के उद्देश्यों और कारणों के बारे में बस यह बताया गया है कि खालसा कॉलेज समय के साथ खालसा विरासत का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बन गया है और 2016 में स्थापित विश्वविद्यालय इसके दर्जे और प्राचीन गौरव को नुकसान पहुंचा सकता है।
पीठ ने कहा कि यह ध्यान देने योग्य बात है कि 1892 में स्थापित खालसा कॉलेज खालसा विश्वविद्यालय का हिस्सा नहीं है।
पीठ ने कहा, "इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि जिस आधार पर खालसा कॉलेज के चरित्र और प्राचीन गौरव को खालसा विश्वविद्यालय से नुकसान पहुंचने का दावा किया गया है, वह आधार ही अस्तित्वहीन है।”
पीठ ने कहा कि अस्तित्वहीन आधार पर पारित 2017 का अधिनियम "स्पष्ट रूप से मनमानी" को बढ़ावा देगा, लिहाजा यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
पीठ ने कहा, "खालसा विश्वविद्यालय (निरसन) अधिनियम, 2017 को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द किया जाता है। इसके साथ ही यह निर्देश भी जारी किया जाता है कि खालसा विश्वविद्यालय अधिनियम, 2016 प्रभावी माना जाएगा और 29 मई, 2017 को जो यथास्थिति थी, वही बहाल की जाए।"
भाषा जोहेब