सिविल न्यायाधीश की भर्ती पर रोक संबंधी मप्र उच्च न्यायालय के आदेश पर शीर्ष अदालत का स्थगनादेश
सुरेश दिलीप
- 23 Sep 2024, 10:22 PM
- Updated: 10:22 PM
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें तीन साल की प्रैक्टिस की अनिवार्य आवश्यकता के बिना सिविल न्यायाधीश के पद पर भर्ती प्रतिबंधित कर दी गयी थी।
‘मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) नियम, 1994’ को 23 जून, 2023 को संशोधित किया गया था, जिसके जरिये राज्य में दीवानी न्यायाधीश प्रवेश-स्तर की परीक्षा में बैठने की पात्रता के लिए तीन साल के वकालत के अनुभव को अनिवार्य बनाया गया था।
उच्च न्यायालय ने संशोधित नियमों को बरकरार रखा, लेकिन चयनित नहीं हुए दो उम्मीदवारों की उन दलीलों के बाद मुकदमेबाजी का एक और दौर शुरू हो गया, जिसमें कहा गया है कि यदि संशोधित नियम लागू किए जाते हैं तो वे पात्र होंगे। इसके साथ ही उन्होंने ‘कट-ऑफ’ की समीक्षा करने का अनुरोध भी किया।
उच्च न्यायालय ने भर्ती पर रोक लगाते हुए प्रारंभिक परीक्षा में सफल उन उम्मीदवारों को बाहर करने का निर्देश दिया था, जो संशोधित भर्ती नियमों के तहत पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी की पीठ ने सोमवार को उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया और उनसे जवाब तलब किया।
अश्विनी कुमार दुबे के माध्यम से दायर अपनी अपील में, उच्च न्यायालय ने कहा कि खंडपीठ इस बात को समझने में विफल रही कि एक सुविचारित निर्णय की समीक्षा करने की शक्ति बहुत सीमित है और समीक्षा केवल तभी की जा सकती है, जब रिकॉर्ड में कोई गलती और त्रुटि स्पष्ट दिख रही हो।
संशोधित भर्ती नियमों के तहत पात्र विधि स्नातकों से आवेदन आमंत्रित करते हुए 17 नवंबर 2023 को एक विज्ञापन जारी किया गया था।
हालांकि, संशोधित भर्ती नियमों को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने अंतरिम आदेश द्वारा सभी विधि स्नातकों को प्रारंभिक परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी।
भाषा सुरेश