उच्च न्यायालय ने किशोरी के साथ प्रेम संबंध को लेकर युवक के खिलाफ पॉक्सो मामला बंद किया
सुभाष माधव
- 23 Sep 2024, 05:50 PM
- Updated: 05:50 PM
नयी दिल्ली, 23 सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 19 वर्षीय युवक और एक किशोरी के बीच प्रेम संबंध से उत्पन्न ‘पॉक्सो’ मामले में आपराधिक कार्यवाही बंद कर दी और कहा है कि यदि प्राथमिकी रद्द नहीं की गई तो तीन व्यक्तियों - वे दोनों और उनके नवजात शिशु - का जीवन बर्बाद हो जाएगा।
अदालत ने कहा कि वह ‘‘असाधारण परिस्थितियों’’ के मद्देनजर ‘‘मानवीय आधार’’ पर आदेश पारित कर रही है, क्योंकि उसने पाया कि याचिकाकर्ता युवक और मामले में 17 वर्षीय पीड़िता पड़ोसी थे और उन्होंने अपनी मर्जी से अगस्त 2023 में शादी की थी।
पुलिस को इस मामले की सूचना उस वक्त दी गई, जब किशोरी अपनी गर्भावस्था के अंतिम चरण में एक अस्पताल गई और चूंकि वह नाबालिग थी, इसलिए वहां के अधिकारियों ने पुलिस को सूचित किया तथा भारतीय दंड संहिता और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत कथित अपराध के लिए एक प्राथमिकी दर्ज की गई।
किशोरी ने अगस्त में एक बच्चे को जन्म दिया और याचिकाकर्ता को सितंबर में गिरफ्तार कर लिया गया।
न्यायमूर्ति अनीश दयाल ने हाल में दिए एक फैसले में कहा, ‘‘इन तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, इस अदालत का यह मानना है कि कि पीड़िता अपने नवजात बच्चे के साथ अपने माता-पिता के साथ रह रही है, याचिकाकर्ता वयस्क है; यदि प्राथमिकी को रद्द नहीं किया जाता है, तो यह बच्चे पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा, जिसे अपने माता-पिता से संरक्षण और देखभाल की आवश्यकता है। ऐसा नहीं होने पर यह तीन व्यक्तियों -- युवक एवं किशोरी और नवजात शिशु के जीवन को बर्बाद कर देगा।’’
अदालत ने आदेश दिया, इस तरह याचिका स्वीकार की जाती है। परिणामस्वरूप, भारतीय दंड संहिता की धारा 363/366/376/506 और पॉक्सो अधिनियम की धारा छह के तहत दर्ज प्राथमिकी तथा उनसे उपजी कार्यवाही रद्द की जाती है।
याचिकाकर्ता ने अदालत में कहा कि दोनों पक्ष (युवक और किशोरी) एक-दूसरे को बचपन से जानते थे और उनके बीच सहमति से यौन संबंध थे, जिसके परिणामस्वरूप शादी के बाद किशोरी गर्भवती हो गई।
पुलिस ने इस आधार पर मामला रद्द करने पर आपत्ति जताई कि चूंकि लड़की नाबालिग है, इसलिए वह कानूनी तौर पर सहमति देने में सक्षम नहीं है।
आदेश में अदालत ने कहा कि उसने किशोरी और उसके माता-पिता के साथ व्यापक बातचीत की, जो इस रिश्ते के बारे में जानते थे।
इसने जिक्र किया कि किशोरी ने खुद कहा है कि उसके और याचिकाकर्ता के बीच ‘‘प्रेम संबंध’’ थे और बच्चा उनका है और उसने अस्पताल द्वारा मामले की सूचना दिये जाने के बाद प्रसव पीड़ा से पहले पुलिस को बयान दिया था।
आदेश में यह भी कहा गया है कि किशोरी की कानूनी अभिभावक होने के नाते, उसकी मॉं ने भी कहा कि उसे प्राथमिकी रद्द करने पर कोई आपत्ति नहीं है और अदालत के समक्ष एक ‘‘समझौता विलेख’’ भी प्रस्तुत किया गया।
भाषा सुभाष