मस्तिष्काघात के जोखिम को दोगुना कर देता है वायु प्रदूषण : विशेषज्ञ
                        
                            
                                
                                नरेश
                                
                                    - 29 Oct 2025, 07:56 PM
- Updated: 07:56 PM
 
                            
                         
                        
                     
                    
                        नयी दिल्ली, 28 अक्टूबर (भाषा) गहराते प्रदूषण संकट के बीच स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण और इससे जुड़े कारक मस्तिष्काघात (स्ट्रोक) के जोखिम को दोगुना तक कर सकते हैं। 
	 उनका कहना है कि प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को बेहतर वायु गुणवत्ता वाले क्षेत्रों के निवासियों की तुलना में बार-बार स्ट्रोक की आशंका 25 फीसदी अधिक होती है।
	 इंडियन स्ट्रोक एसोसिएशन के अनुसार देश में मस्तिष्काघात के प्रतिवर्ष 18 लाख नए मामले सामने आ रहे हैं और प्रत्येक 20 सेकेंड में एक व्यक्ति इसका शिकार हो रहा है। 
	 राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रमुख डॉक्टर अजय चौधरी ने ‘भाषा’ से बातचीत में कहा, ''वायु प्रदूषण स्ट्रोक के खतरे को दोगुना करता है। दिल्ली व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के शहरों में, जहां वायु प्रदूषण के कारण पीएम 2.5 का स्तर अक्सर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित अधिकतम सीमा से कई गुना अधिक होता है, वहां ऐसे में उच्च रक्तचाप, मधुमेह या पहले से हृदय रोग से पीड़ित लोगों में स्ट्रोक का जोखिम और अधिक हो जाता है।'' 
	 उन्होंने कहा, '' जब हम प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं तो उसमें मौजूद सूक्ष्म कण जैसे पीएम 2.5 हमारे फेफेड़ों के जरिये रक्त में प्रवेश कर जाते हैं। इन सूक्ष्म कणों के कारण रक्त वाहिकाएं प्रभावित होती हैं और ये सिकुड़ने लगती हैं जिससे रक्त में थक्का बनने की आशंका बढ़ जाती है जो स्ट्रोक का कारण बनता है।''
	 'लांसेट न्यूरोलॉजी' जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार तीन दशक (1990 से 2021) के बीच भारत में स्ट्रोक के मामलों में 51 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 1990 में जहां देश में 650,000 मामले सामने आए थे वहीं वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 12.5 लाख था। 
	विशेषज्ञों ने कहा कि मस्तिष्काघात (स्ट्रोक) से 72 से 96 घंटे के बीच आमतौर पर शरीर इसका संकेत देकर सावधान करता है, लेकिन जागरुकता के अभाव में सामान्यतः लोग इन पूर्व संकेतों को अनदेखा करते हैं और यह स्थिति मरीज को लकवे से मौत की ओर ले जाती है। 
	 डॉक्टर चौधरी का कहना था,‘‘ स्ट्रोक से 72 से 96 घंटे पहले आमतौर पर शरीर इसके संकेत देता है। ये पूर्व संकेत बेहद मामूली होते हैं। जैसे अचानक आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, दाहिना हाथ अचानक सुन्न पड़ जाना या पैर में झनझनाहट होना और कुछ समय बाद स्थिति सामान्य हो जाना।’’
	 उन्होंने बताया कि स्ट्रोक होने पर अचानक से बोलते हुए व्यक्ति को शब्द सूझना बंद हो जाता है तथा वह बातचीत में लड़खड़ाने लगता है। उन्होंने कहा कि जागरुकता के अभाव में ये सब व्यक्ति को इतना सहज लगता है कि वह न तो इन पर ध्यान देता है और न ही इन्हें लेकर किसी से चर्चा करना जरूरी समझता है।
	डॉक्टर चौधरी ने कहा कि इसके बाद ही वास्तविक स्ट्रोक आता है जो इस बात पर निर्भर करता है कि मस्तिष्क का कौन सा हिस्सा प्रभावित हुआ है और उसी के अनुरूप व्यक्ति में इसके दुष्प्रभाव सामने आते हैं। 
	न्यूरोसर्जरी विभाग प्रमुख ने कहा,‘‘ मस्तिष्क के दाहिने हिस्से में सामने की ओर का 'ब्रॉका' क्षेत्र हमारी वाणी को नियंत्रित करता है और यहां रक्त प्रवाह बाधित होने पर व्यक्ति को बोलने में दिक्कत आती है।’’
	लोकनायक जय प्रकाश (एलएनजेपी) अस्पताल के न्यूरोसर्जरी विभाग के प्रमुख डॉक्टर पीएन पांडेय ने बताया, ‘‘ मस्तिष्काघात भी हृदयाघात के जितना ही खतरनाक है और इससे होने वाली मौतों व व्यक्ति में अपंगता का आकंड़ा भी बड़ा है लेकिन हृदय संबंधी रोगों को लेकर जागरुकता के मुकाबले लोग स्ट्रोक और इसके लक्षणों को लेकर सावधान नहीं हैं।’’ 
	डॉक्टर पांडेय ने कहा कि अनियमित उच्च रक्तचाप वाले लोगों में स्ट्रोक का सबसे अधिक जोखिम होता है।
	 उन्होंने कहा, ''मस्तिष्क को सेहतमंद रखने के लिए व्यायाम और खान-पान का ध्यान रखना जरूरी है।''
	 मॉडल टाउन स्थित यथार्थ अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. रजत चोपड़ा ने स्ट्रोक के लिए नींद में आने वाले खर्राटों को भी एक खतरनाक स्थिति बताते हुए कहा कि स्लीप एपनिया (नींद में सांस रुकने की समस्या) स्ट्रोक के जोखिम को दो से चार गुना तक बढ़ा देती है।
	डॉ. चोपड़ा ने कहा, “स्लीप एपनिया के कारण रक्तचाप बढ़ता है, दिल की धड़कनें असामान्य होती हैं और शरीर में सूजन की समस्या बढ़ जाती है। ये सभी बातें मिलकर दिमाग की रक्त वाहिकाओं पर दबाव डालती हैं, जिससे स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।''
  	 उन्होंने कहा कि स्ट्रोक के बाद के पहले चार घंटे मरीज के लिए ‘गोल्डन आवर’ होते है जिसमें थक्के को दवा के जरिये घोला जा सकता है या उसे ऑपरेशन के जरिये हटाया जा सकता है। 
भाषा पवनेश पवनेश नरेश
नरेश