जम्मू के पहाड़ी इलाकों में जमीन धंसने से 3,000 लोग घर छोड़ने को मजबूर
जोहेब माधव
- 16 Sep 2025, 08:15 PM
- Updated: 08:15 PM
(अनिल भट्ट)
तंगर (जम्मू-कश्मीर), 16 सितंबर (भाषा) जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल और शिवालिक पर्वतमाला में रहने वाले लोगों ने यह मानकर अपने सपनों का घर बनाया था कि पहाड़ उन्हें आश्रय देंगे, लेकिन अब वे अपने गांव छोड़ने को मजबूर हैं जो भारी बारिश के कारण भूमि धंसने की वजह से "डूबने" लगे हैं।
रामबन, रियासी, जम्मू और पुंछ के 11 गांव पांच सितंबर से उत्तराखंड के जोशीमठ जैसे संकट का सामना कर रहे हैं, जहां घरों में दरारें आ गई हैं, खेत तबाह हो रहे हैं और परिवार भय व अनिश्चितता के कारण अपने पुश्तैनी घरों को छोड़ रहे हैं।
अधिकारियों ने बताया कि इन गांवों में 3,000 से अधिक लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं।
रामबन जिले के सवलाकोट जलविद्युत परियोजना के पास तंगर गांव में जमीन धंसने से 22 से 25 घर और एक सरकारी हाई स्कूल क्षतिग्रस्त हो गया है, जबकि चार किलोमीटर के क्षेत्र में 140 और घर खतरे में हैं।
तंगर के निवासी रवि कुमार ने कहा, "यह हमारे लिए एक बड़ा झटका है। पहले तो हम अगस्त के अंत में भारी बारिश के कारण बादल फटने, अचानक बाढ़ और भूस्खलन के खतरे की वजह से डर और दहशत में जी रहे थे। इसके बाद हमारे घरों में अचानक दरारें पड़ गईं और बाद में अधिकांश घरों को नुकसान पहुंचा।”
रवि का परिवार अब घर गिरने के डर से तंबू में रह रहा है।
उन्होंने कहा कि उनके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है। रवि ने कहा, "सर्दियां आ रही हैं, और पूरा इलाका असुरक्षित है। जमीन धंसती जा रही है और दरारें रोज बढ़ती जा रही हैं, जिससे गांव मिट सकता है।"
इसी तरह 1 जनवरी, 2024 को अपने नए मकान में प्रवेश करने वाले अनिल कुमार ने कहा कि वे गांव छोड़कर किसी सुरक्षित जगह पर जा रहे हैं क्योंकि उनका घर कई दरारों के कारण असुरक्षित हो गया है।
उन्होंने कहा, "वर्षों की मेहनत के बाद यह घर बनाया था। अब सपनों का घर खो गया है। दरारें चौड़ी होने के कारण यह कभी भी गिर सकता है।”
गांव के एक इंजीनियर सुनील कुमार ने कहा कि जोशीमठ में पहली बार देखी गई यह आपदा अब तंगर समेत कई गांवों को प्रभावित कर रही है, जहां ज़मीन धंस रही है, दरारें पड़ रही हैं और नुकसान हो रहा है।
रामबन के विधायक अर्जुन सिंह राजू, उपायुक्त इलियास खान और अन्य अधिकारियों ने शनिवार को नुकसान का आकलन करने के लिए घटनास्थल का दौरा किया।
खान ने कहा कि एक बड़ा इलाका "धंस रहा है", कई मकानों में दरारें पड़ गई हैं।
उन्होंने कहा, "स्कूल बंद हैं, और विस्थापित निवासियों को एनएचपीसी के क्वार्टरों में रखा गया है। स्थिति पर कड़ी नज़र रखी जा रही है।"
एक अन्य निवासी बानो बेगम ने स्थिति को भयावह बताते हुए कहा, "हम कभी अपने घरों और जमीन से अपने परिवारों का पेट भरते थे, लेकिन अब सब कुछ खत्म हो गया है।"
उन्होंने कहा, "करीब 100 मकान और 1,000 कनाल ज़मीन प्रभावित हुई है, और एक बारहमासी झरना गायब हो गया है, जिससे संभवतः यह आपदा आई है।"
एक स्थानीय मजदूर यासिर ने कहा, "हम सड़कों पर रहते हैं, डर के साये में काम करते हुए अपने बच्चों को पालते हैं। हमें अपने गांव के पुनर्निर्माण के लिए पुनर्वास और सुरक्षित जमीन की जरूरत है।
रविवार को इलाके का दौरा करने वाले मंत्री जावेद राणा ने कहा, "सरकार ने अस्थायी बस्तियां बनाने, तत्काल राहत देने और उनके लिए स्थायी पुनर्वास का प्रस्ताव देने का आदेश दिया है।"
अधिकारी जमीन धंसने का कारण जानने के लिए भूवैज्ञानिक और खनन विशेषज्ञों से सलाह ले रहे हैं।
अधिकारियों ने बताया कि विशेषज्ञों की एक टीम जल्द ही घटनास्थल का निरीक्षण करेगी।
जमीन धंसने के कारण इलाके की कई सड़कें धंस गई हैं, जिसकी वजह से संपर्क टूट गया है। इससे खेतों को भी नुकसान पहुंचा है।
भाषा जोहेब