सरकार को ट्रंप के ‘टैरिफ टेररिज्म’ के आगे नहीं झुकना चाहिए : माकपा
हक हक दिलीप
- 16 Sep 2025, 08:10 PM
- Updated: 08:10 PM
नयी दिल्ली, 16 सितंबर (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने मंगलवार को कहा कि केंद्र सरकार को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ‘‘टैरिफ टेररिज्म’’ (शुल्क संबंधी आतंक) के सामने नहीं झुकना चाहिए।
वामपंथी पार्टी ने अपनी केंद्रीय समिति की दो दिवसीय बैठक के बाद यह भी कहा कि वह सितंबर के अंतिम सप्ताह में टैरिफ़ के मुद्दे पर एक व्यापक अभियान चलाएगी, जिसमें भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के अमेरिका के सामने ‘‘आत्मसमर्पण’’ को उजागर किया जाएगा।
माकपा केंद्रीय समिति की बैठक बीते 13-15 सितंबर को यहां हरिकिशन सिंह सुरजीत भवन में संपन्न हुई।
केंद्रीय समिति की बैठक के बाद माकपा ने एक बयान में कहा, ‘‘भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की आर्थिक नीतियां देश को लगातार संकट की ओर धकेल रही हैं। लोग बढ़ती कीमतों, स्थिर वेतन और बढ़ती असमानताओं से जूझ रहे हैं। अमेरिका द्वारा ‘टैरिफ’ लगाए जाने के बाद बेरोजगारी और बढ़ रही है।’’
उसने दावा किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का ‘टैरिफ टेररिज्म’ से भारत के कृषि, मत्स्य पालन, एमएसएमई और विशेष रूप से कपड़ा उद्योग पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है।
उसका कहना है कि केंद्र सरकार को अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुकना चाहिए तथा किसानों, श्रमिकों और छोटे एवं मध्यम उद्यमियों के हितों के साथ खड़ा होना चाहिए।
माकपा ने यह भी कहा, ‘‘देश भर में व्यापक गतिविधियों के माध्यम से ‘फ़लस्तीन एकजुटता अभियान’ चलाया जाएगा। भाजपा सरकार की इज़राइल समर्थक नीति को उजागर करने के लिए सभी राज्यों की राजधानियों में विभिन्न राजनीतिक दलों, संगठनों, कलाकारों और व्यक्तियों की भागीदारी वाली बड़ी जनसभाएं आयोजित की जाएंगी।’’
उसने जीएसटी दर संशोधनों का उल्लेख करते हुए कहा कि गरीबों और आम लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर कर में कमी एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस कटौती का लाभ कॉरपोरेट समूहों के बजाय उपभोक्ताओं तक पहुंचे।
माकपा ने यह दावा भी किया कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के परिणामस्वरूप कई नागरिकों को उनके संविधान प्रदत्त मताधिकार से वंचित होना पड़ा है।
वामपंथी दल ने संविधान के 130वें संशोधन से संबंधित विधेयक को लेकर दावा किया कि वर्तमान सरकार की ‘नव-फासीवादी प्रवृत्तियों’ को देखते हुए ऐसे प्रावधानों का इस्तेमाल विपक्ष के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों के खिलाफ हथियार के रूप में किया जाना तय है।
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