कानून पर रोक केवल दुर्लभ, असाधारण मामलों में ही लगाई जानी चाहिए : उच्चतम न्यायालय
सुभाष दिलीप
- 15 Sep 2025, 08:26 PM
- Updated: 08:26 PM
नयी दिल्ली, 15 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि कानूनों पर रोक केवल उन ‘‘दुर्लभ और असाधारण’’ मामलों में लगाई जानी चाहिए, जिनमें प्रावधान ‘‘स्पष्ट रूप से असंवैधानिक, मनमाना और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करने वाले हों।’’
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने 128 पन्नों के अपने उस फैसले में यह टिप्पणी की, जिसमें वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर रोक लगा दी गई।
रोक लगाये गए प्रावधानों में यह प्रावधान भी शामिल है कि केवल वे लोग ही किसी संपत्ति को वक्फ के रूप में दे सकते हैं, जो पिछले पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन कर रहे हों। इन प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी गई है, जब तक कि शीर्ष अदालत संशोधित वक्फ कानून की वैधता पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेती।
शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाते हुए, लंबे समय से स्थापित इस सिद्धांत को दोहराया कि संसदीय अधिनियमों में संवैधानिकता की प्रबल पूर्व धारणा होती है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘अब यह कानून का एक स्थायी सिद्धांत बन गया है कि अदालतों को किसी कानून के प्रावधानों पर अंतरिम राहत के रूप में रोक लगाने में अत्यंत सावधानी बरतनी चाहिए। इस प्रकार की अंतरिम राहत केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही दी जा सकती है, जब पक्षकार यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने की स्थिति में हों कि या तो कानून बनाने वाली विधायिका के पास इसे बनाने की शक्ति नहीं थी, या फिर वह प्रावधान संविधान के भाग-3 में उल्लेखित किसी प्रावधान या संवैधानिक सिद्धांतों का स्पष्ट रूप से उल्लंघन करता है, या वह स्पष्ट रूप से मनमाना है।’’
पीठ ने चरणजीत लाल चौधरी बनाम भारत संघ मामले में, 1950 में दिये गए संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया और कहा कि ‘‘किसी भी अधिनियम की संवैधानिक वैधता के पक्ष में हमेशा एक पूर्व धारणा होती है और चुनौती देने वाले व्यक्ति पर यह भार होता है कि वह यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करे कि संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक स्थापित सिद्धांत है कि यह माना जाना चाहिए कि विधायिका अपने लोगों की आवश्यकताओं को समझती है ताकि उसके कानून उन समस्याओं का समाधान करने के प्रति लक्षित हों, जो अनुभव से स्पष्ट हुई हैं...।’’
एक अन्य फैसले का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि किसी अधिनियम की संवैधानिकता पर विचार करते समय, उसकी वास्तविक प्रकृति और स्वरूप, वह क्षेत्र जिसमें वह कार्य करना चाहती है तथा उसका उद्देश्य, इन सब पर विचार करना आवश्यक है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी कानून को यूं ही असंवैधानिक नहीं घोषित किया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘ऐसा करते समय, न्यायालय को बिना किसी संदेह के यह मान लेना चाहिए कि संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन इतना स्पष्ट था कि चुनौती दिया गया विधायी प्रावधान टिक नहीं सकता।’’
न्यायालय ने कहा कि संवैधानिक प्रावधानों के घोर उल्लंघन के अलावा, संसद या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाये गए कानून को अवैध घोषित नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘यह भी माना गया है कि किसी कानून को असंवैधानिक घोषित करने के लिए, न्यायालय को इस निष्कर्ष पर पहुंचना होगा कि संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन इतना स्पष्ट है कि इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता है।’’
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