जम्मू-कश्मीर में शांति के लिए कई प्रधानमंत्रियों, उद्योगपतियों के साथ काम किया: यासीन मलिक
नेत्रपाल माधव
- 19 Sep 2025, 08:22 PM
- Updated: 08:22 PM
नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक ने दावा किया है कि उसने सरकार द्वारा अनुमोदित ‘‘बैकचैनल’’ (पर्दे के पीछे चलने वाली गतिविधियां) तंत्र में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में लगभग तीन दशक तक जम्मू-कश्मीर में शांति को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग प्रधानमंत्रियों, खुफिया प्रमुखों और यहां तक कि उद्योगपतियों के साथ काम किया है।
दिल्ली उच्च न्यायालय में प्रस्तुत 85 पृष्ठों के हलफनामे में प्रतिबंधित जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख मलिक ने अपने बारे में विवरण साझा किया है - जिसमें उसके स्कूल के दिनों से लेकर आतंकवादियों के साथ संबंध और राजनीतिक नेताओं के साथ मुलाकातों की बात शामिल है।
यह हलफनामा राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) द्वारा विदेशी धन प्राप्त करने तथा आतंकवादी समूहों के साथ संबंध बनाए रखने के मामले में मलिक की आजीवन कारावास की सजा को बढ़ाकर मृत्युदंड में तब्दील करने का अनुरोध किए जाने के बाद प्रस्तुत किया गया।
साल 2019 से तिहाड़ जेल में बंद मलिक ने हलफनामे में मलिक ने दावा किया कि सरकार वार्ता के इतिहास को ‘‘मिटाने’’ का प्रयास कर रहा है।
उसने कहा, ‘‘राजनीति में बलि का बकरा बनना कोई नयी बात नहीं है, यह एक तरह से ‘न्यू नॉर्मल (नये दौर में सामान्य स्थिति)’ वाली बात है, लेकिन बलि का बकरा बनना ऐसी बात है जो नैतिकता की हद से भी आगे जाती है, बशर्ते राजनीति में कोई नैतिकता होती हो।’’
मलिक ने दावा किया कि 1994 में उसकी रिहाई और एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा के बाद कि उसके खिलाफ लंबित सभी 32 मामलों में जमानत प्रदान की जाएगी और किसी भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया जाएगा, संबंधित वादे का सभी प्रधानमंत्रियों, यहां तक कि वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी अपने पहले कार्यकाल के दौरान इसका सम्मान किया था।
उसने 2000-2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा घोषित रमजान संघर्षविराम के बारे में भी बात की, जिसकी कड़ी आलोचना हुई थी।
मलिक ने हलफनामे में दावा किया, ‘‘सात दिन बाद, एक पत्रकार ने हमें अपने घर बुलाया जहाँ कांग्रेस नेता डॉ. मनमोहन सिंह और नजमा हेपतुल्ला भी मौजूद थीं। हमने वाजपेयी की संघर्षविराम पहल पर तीन घंटे तक चर्चा की। बैठक के अंत में, डॉ. मनमोहन सिंह ने मुझसे पूछा, आप हमसे क्या उम्मीद करते हैं।’’
उसने कहा, ‘‘हमने जवाब दिया कि विपक्ष के रूप में, हम वाजपेयी के संघर्षविराम के लिए आपका समर्थन चाहते हैं, और 24 घंटे के बाद ही, कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल ने वाजपेयी से मुलाकात की तथा संघर्षविराम के लिए समर्थन दिया।’’
मलिक ने कहा कि इसके बाद उसने भाकपा और माकपा के अलावा दो पूर्व प्रधानमंत्रियों - वी पी सिंह और आई के गुजराल से मुलाकात की ताकि वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई शांति पहल के लिए सभी विपक्षी दलों को एक साथ लाया जा सके।
अलगाववादी नेता ने यह भी कहा कि भाजपा सरकार के शासनकाल में ही उसे पहला पासपोर्ट मिला था, जिस पर उसने अमेरिका और ब्रिटेन की यात्रा की थी।
उसने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अपनी बैठकों के बारे में बात की, जो वाजपेयी की शांति प्रक्रिया को और मजबूत करना चाहते थे, लेकिन उन्हें भाजपा से कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा।
मलिक ने कहा कि इसके चलते उसने वाजपेयी को पत्र लिखा, जो उस समय विपक्ष के नेता थे। इस पत्र में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि ‘‘आप (वाजपेयी) वर्तमान शांति प्रक्रिया के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं और भारत तथा पाकिस्तान में सरकार द्वारा अब भी उपलब्ध सभी अवसरों का श्रेय आपको ही जाता है...।’’
उसने यह भी कहा कि खूंखार आतंकवादी और लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के साथ उसकी मुलाकात तत्कालीन केंद्र सरकार के कहने पर हुई थी, जो जम्मू-कश्मीर में शांति प्रक्रिया को मजबूत करने की इच्छुक थी।
मलिक ने दावा किया, ‘‘मैंने निचली अदालत के न्यायाधीश को बताया था कि यदि मेरे इरादे बुरे होते, तो मैं कभी भी कानूनी तौर पर पाकिस्तान की यात्रा नहीं करता और अंतरराष्ट्रीय प्रेस की मौजूदगी में मंच पर पाकिस्तान के आतंकवादी नेताओं से नहीं मिलता।’’
उसने आतंकवाद के वित्तपोषण में अपनी भूमिका से भी इनकार किया और दावा किया कि एनआईए इस संबंध में कोई सबूत पेश नहीं कर सकी।
मलिक ने दावा किया कि वह अकेला नहीं था, बल्कि कश्मीर में ‘‘शांति मार्ग’’ को जीवित रखने के लिए सरकार द्वारा ही उसे प्रोत्साहित और तैनात किया गया था। उसने उद्योगपति धीरूभाई अंबानी के साथ फोन कॉल, खुफिया ब्यूरो (आईबी) के निदेशकों के साथ गुप्त बैठक और गृह मंत्री तथा अन्य शीर्ष अधिकारियों के साथ रात्रिभोज सहित कई उच्चस्तरीय बैठकों और संचार का जिक्र किया।
मलिक के अनुसार, यह रिश्ता 1990 के दशक की शुरुआत में शुरू हुआ, जब उसे तत्कालीन गृह मंत्री राजेश पायलट और आईबी अधिकारियों से मिलने के लिए जेल से दिल्ली के एक बंगले में ले जाया गया था। उसने दावा किया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के सीधे निर्देश पर अधिकारियों ने उससे हथियार छोड़ने का आग्रह किया था।
मलिक ने कहा कि इस बैठक के बाद उसे 1994 में रिहा कर दिया गया, जिसके बाद उसने एकतरफा संघर्षविराम की घोषणा की और ‘‘शांतिपूर्ण, लोकतांत्रिक संघर्ष’’ जारी रखने का संकल्प लिया।
उसने दावा किया कि 25 वर्षों तक कई प्रधानमंत्रियों ने संघर्षविराम का सम्मान किया, जिनमें नरसिंह राव, वाजपेयी, गुजराल, मनमोहन सिंह और यहां तक कि नरेन्द्र मोदी का पहला कार्यकाल भी शामिल है।
हालाँकि, उसने दावा किया कि 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के साथ ही यह दीर्घकालिक व्यवस्था बिखर गई।
उसके हलफनामे में कहा गया है, ‘‘हज़ारों राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं, शिक्षकों, वकीलों और पत्रकारों को डराया-धमकाया गया तथा गिरफ्तारियाँ की गईं। पुराने मामले फिर से खोले गए, 31 साल बाद आरोप तय किए गए।’’
मलिक ने अपनी किस्मत को एक भाग्यवादी स्वीकृति दी। उसने कहा, ‘‘मैं समझता हूँ कि तराजू का पलड़ा मेरे पक्ष में नहीं झुका है..., मैं इसे अपनी किस्मत का अंतिम पड़ाव मानकर खुशी-खुशी स्वीकार करूँगा।’’
भाषा
नेत्रपाल