सरकार संचालित भिक्षुक आश्रय गृह विवेकाधीन परमार्थ कार्य नहीं : न्यायालय
सुभाष नरेश
- 14 Sep 2025, 06:47 PM
- Updated: 06:47 PM
नयी दिल्ली, 14 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सरकार द्वारा रखरखाव किये जाने वाले भिक्षुक आश्रय गृह कोई विवेकाधीन परमार्थ कार्य नहीं है और इसके प्रबंधन में संवैधानिक नैतिकता के मूल्य प्रतिबिंबित होने चाहिए। शीर्ष अदालत ने ऐसे केंद्रों में गरिमापूर्ण जीवन को बनाए रखने के लिए कई निर्देश भी जारी किए।
न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने क्षेत्र में भिक्षुक आश्रय गृहों में सुधारों को संस्थागत रूप देना होगा ताकि समाज के इस सबसे कमजोर वर्ग के लिए गरिमापूर्ण जीवन की संवैधानिक गारंटी सार्थक रूप से सुरक्षित हो सके।
शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे आश्रय गृहों में मानवीय स्थिति सुनिश्चित करने में विफलता न केवल कुप्रशासन है, बल्कि यह गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अधिकार का संवैधानिक हनन है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस न्यायिक अभिव्यक्ति से इसमें कोई संदेह नहीं रह जाता कि निर्धन व्यक्तियों के प्रति सरकार की जिम्मेदारी सकारात्मक और अपरिवर्तनीय है। इस प्रकार, सरकार द्वारा संचालित भिक्षुक गृह एक संवैधानिक ट्रस्ट है, न कि कोई विवेकाधीन परमार्थ कार्य। इसके प्रबंधन में संवैधानिक नैतिकता के मूल्य -- स्वतंत्रता, निजता और गरिमापूर्ण जीवन सुनिश्चित करना -- प्रतिबिंबित होने चाहिए।’’
न्यायालय ने निर्देश दिया कि भिक्षुक गृह में रखे जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्रवेश के 24 घंटे के भीतर एक चिकित्सा अधिकारी द्वारा अनिवार्य रूप से मेडिकल जांच करवानी होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘सभी भिक्षुक गृहों में एक निर्दिष्ट चिकित्सा दल द्वारा मासिक स्वास्थ्य जांच की जाए। सभी भिक्षुक गृहों में एक रोग निगरानी और पूर्व चेतावनी प्रणाली स्थापित की जाए, जिसमें संचारी और जलजनित रोगों की रोकथाम, बीमारियों का पता लगाने और नियंत्रण के लिए विशेष प्रोटोकॉल हों।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘सभी राज्य सरकारें/केंद्र शासित प्रदेश भिक्षुक गृहों में न्यूनतम स्वच्छता और सफाई मानकों को तैयार करें, अधिसूचित करें और सख्ती से लागू करें, जिसमें अनिवार्य रूप से पेयजल की निरंतर पहुंच, उचित जल निकासी प्रणाली के साथ चालू हालत में शौचालय और नियमित कीट नियंत्रण और मच्छर प्रजनन की रोकथाम के प्रबंधन उपाय शामिल होंगे।’’
ये निर्देश उत्तरी दिल्ली जिले के लामपुर स्थित एक भिक्षुक गृह में हुई घटना से उपजे मामले में दिए गए, जहां पेयजल और खाना पकाने के पानी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के संदूषण के कारण वहां रहने वालों में हैजा और आंत्रशोथ की बीमारी फैल गई थी।
शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि सभी राज्य सरकारें/केंद्र शासित प्रदेश अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक भिक्षुक गृह का हर दो साल में कम से कम एक बार स्वतंत्र तृतीय-पक्ष अवसंरचना ऑडिट कराएं।
न्यायालय ने कहा कि प्रत्येक भिक्षुक गृह में स्वीकृत क्षमता से अधिक लोग नहीं होने चाहिए, ताकि भीड़भाड़ और संक्रामक रोगों के प्रसार को रोका जा सके।
पीठ ने कहा, ‘‘मानव गरिमा के अनुरूप सुरक्षित आवास और खुले स्थानों तक पहुंच के लिए पर्याप्त प्रावधान किए जाएं। प्रत्येक भिक्षुक गृह को, वहां रहने वालों को दिए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता और पोषण संबंधी मानकों की नियमित जांच के लिए एक आहार विशेषज्ञ की नियुक्ति करनी होगी या किसी संबद्ध सरकारी अस्पताल से उसे नियुक्त करना होगा। पोषण संबंधी पर्याप्तता सुनिश्चित करते हुए मानकीकृत आहार प्रोटोकॉल तैयार किए जाएं।’’
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