सोशल मीडिया पर पोषण संबंधी गलत जानकारी से भोजन-आधारित लत में होता है इजाफा
द कन्वरसेशन रवि कांत नेत्रपाल
- 14 Sep 2025, 06:13 PM
- Updated: 06:13 PM
(पाब्लो एरोना कार्डोजा और दैवा नीलसन, मैकगिल विश्वविद्यालय)
मॉन्ट्रियल, 14 सितंबर (द कन्वरसेशन) चाहे आप किसी पार्टी में हों, पारिवारिक समारोह में हों या फिर काम पर हों, संभावना है कि आपने किसी को यह कहते सुना होगा: ‘‘मैं डाइट पर हूं। यह अद्भुत है!’’ या हो सकता है कि आपने ही यह बात कही हो। बहरहाल, इसमें कोई हैरानी की बात नहीं है।
आहार संबंधी रुझान उतने ही पुराने हैं जितने कि 1930 के दशक के ग्रेपफ्रूट आहार। लेकिन आज के सोशल मीडिया की दुनिया में, अनगिनत ऑनलाइन वेलनेस हैक्स, फैड डाइट और पोषण संबंधी गलत जानकारियां पहले से कहीं ज़्यादा तेजी से फैल रही हैं।
ऐसा क्यों है? कई कारणों से झटपट बनने वाले आहार आसानी से लोकप्रिय हो जाते हैं। हमारा आहार बेहद निजी होता है और कुछ लोगों के लिए, यह एक तरह का समर्पण का भाव जगाता है, मानो किसी धर्म का हो।
भोजन विकल्पों का विज्ञान---
खाने-पीने की चीजों का चुनाव करना बहुत मुश्किल होता है। जब हम सुपरमार्केट जाते हैं, तो हम अपनी टोकरी में क्या डालते हैं, यह कई कारकों से प्रभावित होता है।
कुछ कारक जैविक होते हैं, जैसे उच्च कैलोरी वाले खाद्य पदार्थों को पसंद करने की हमारे मस्तिष्क की प्रवृत्ति। कुछ सांस्कृतिक कारक होते हैं, जैसे वे मुख्य खाद्य पदार्थ जिन्हें हम बचपन से खाते आए हैं। और कुछ बुनियादी व्यावसायिक रणनीतियां हैं, जैसे कि जिस दुकान से हम खरीदारी करते हैं, वह कुछ उत्पादों को हमारी आंखों के स्तर पर रखकर हमारी पसंद को प्रभावित करती है।
हालांकि, पोषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य वैज्ञानिक इस बात पर काफी हद तक सहमत हैं कि जब खाने की प्रवृत्ति की बात आती है, तो भोजन का माहौल महत्वपूर्ण होता है।
भोजन करने का माहौल उन जटिल प्रणालियों को संदर्भित करता है जो यह निर्धारित करती हैं कि हमें किस प्रकार के खाद्य पदार्थों तक पहुंच प्राप्त है।
इसका एक भौतिक घटक भी है, जैसे हमारे आस-पड़ोस या कार्यस्थल के आस-पास की किराना दुकानें, लेकिन इसमें विपणन जैसे अन्य महत्वपूर्ण और अत्यधिक प्रभावी कारक भी शामिल हैं।
इसका एक भौतिक घटक है, जैसे कि हमारे पड़ोस या कार्यस्थल के आसपास की किराने की दुकानें, लेकिन इसमें विपणन जैसे अन्य महत्वपूर्ण और अत्यधिक प्रभावी कारक भी शामिल हैं।
हमारे 2023 के मेटा-विश्लेषण में, हमने पाया कि खाने के विज्ञापनों के संपर्क में आने से मस्तिष्क के वे क्षेत्र सक्रिय हो गए जो खाने के व्यवहार से जुड़े थे। जब लोगों को, चाहे उनकी उम्र कुछ भी हो, खाने के विज्ञापन दिखाए गए, तो उन्होंने बाद में ज़्यादा खाना खाया।
यह साक्ष्य, व्यापक शोध के साथ इस बात पर प्रकाश डालता है कि हमारा पर्यावरण इस बात को कितनी दृढ़ता से प्रभावित करता है कि हम क्या खाते हैं, और कितना खाते हैं।
इससे एक महत्वपूर्ण सवाल भी उठता है : यदि पारंपरिक मीडिया और विपणन हमारे खान-पान के व्यवहार को आकार दे सकते हैं, तो आज की हमारी सूचना-महामारी से प्रेरित डिजिटल वास्तविकता में उनका प्रभाव कितना अधिक प्रबल है?
गलत सूचना की समस्या---
टिकटॉक, इंस्टाग्राम वगैरह पर स्वास्थ्य संबंधी गलत जानकारी कोई नयी बात नहीं है। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान, जब ज़्यादा समय घर पर ही बिताया गया, तो गलत दावों को शेयर करने का एक बेहतरीन तरीका सामने आया। और पोषण जगत भी इसका अपवाद नहीं रहा।
सोशल मीडिया पर अनगिनत हस्तियां पोषण संबंधी ऐसी ‘सलाह’ फैलाती हैं जिनसे बचना चाहिए।
दो उदाहरण जो सोशल मीडिया पर लगातार बने हुए हैं, वे हैं मांसाहारी आहार - जो पूरी तरह से पशु उत्पादों पर आधारित है - और बीज तेल विरोधी आंदोलन, जो कई आहार-संबंधी बीमारियों के लिए बीज तेलों को दोषी ठहराता है।
ये विवादास्पद और पूरी तरह से खारिज की गई सिफारिशें इतनी प्रभावशाली हो गई हैं कि अमेरिकी स्वास्थ्य सचिव ने भी इनका समर्थन किया है।
वर्ष 2022 के एक अध्ययन में ऑनलाइन पोषण सामग्री पर 60 से अधिक लेखों की समीक्षा की गई, और लगभग आधे में निष्कर्ष निकला कि सूचना की गुणवत्ता कम थी।
तथापि, शायद अधिक उल्लेखनीय पहलू यह है कि इन बहसों के दौरान लोग उत्साहपूर्ण और प्रायः संघर्षपूर्ण तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं।
भोजन और पोषण पर चर्चा करते समय लोग इतना जुनून क्यों दिखाते हैं-यहां तक कि आदिवासीपन भी? हम जो खाते हैं और अपने भोजन के बारे में हमारी जो मान्यताएं हैं, वे बहुत गहरे रूप से हमसे जुड़ी होती हैं। इतनी गहरी कि वे हमारी पहचान का हिस्सा बन सकती हैं।
भोजन और व्यक्तिगत पहचान---
भोजन हमारी पहचान से जटिल रूप से जुड़ा हुआ है। यह एक सामाजिक-सांस्कृतिक शक्ति के रूप में कार्य करता है जो हमारी खुद को देखने की क्षमता को आकार देता है।
लेकिन कुछ विशेषताएं जो षड्यंत्र सिद्धांतों में विश्वास करने के साथ मेल खाती हैं, जैसे अंतर्ज्ञान पर बहुत अधिक भरोसा करना और विरोधी होना, कुछ लोगों को गलत सूचना के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील बना सकती हैं।
द कन्वरसेशन रवि कांत