लॉस एंजिलिस ओलंपिक में कांस्य पदक चूकना मेरी हार नहीं, भारतीय खेलों का निर्णायक पल था : पी टी उषा
मोना पंत
- 12 Sep 2025, 12:53 PM
- Updated: 12:53 PM
नयी दिल्ली, 12 सितंबर (भाषा) लॉस एंजिलिस ओलंपिक में मामूली अंतर से कांस्य पदक से चूकी उड़नपरी पी टी उषा ने शुक्रवार को कहा कि इसे वह अपनी हार नहीं बल्कि भारतीय खेलों के लिये निर्णायक पल मानती है जिसने यह साबित किया कि भारत की एक महिला दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को चुनौती दे सकती है ।
उषा लॉस एंजिलिस ओलंपिक में महिलाओं की 400 मीटर बाधा दौड़ में सेकंड के सौवें हिस्से से कांस्य पदक से चूक गई थी ।
भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष ने यहां ‘स्पोर्ट्सस्टार: प्लेकॉम बिजनेस समिट 2025’ में अपने कैरियर को याद करते हुए कहा ,‘’ केरल के एक छोटे से गांव पायोली में पली बढी एक ऐसी लड़की थी जिसे खेलना पसंद था । उस समय कोई स्टेडियम, अच्छे जूते , वैज्ञानिक ट्रेनिंग कार्यक्रम नहीं होता था । मैं खुरदुरे मैदानों पर नंगे पैर भी दौड़ी हूं क्योंकि मुझे इससे खुशी मिलती थी ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ मेरा वह सपना मुझे वैश्विक मंच तक ले गया और 1984 लॉस एंजिलिस ओलंपिक मेरे कैरियर के सबसे यादगार पलों में से रहा । मैने भारत का परचम लहराने के लिये सालों मेहनत की थी । मैं 400 मीटर बाधा दौड़ में पदक से सेकंड के सौवें हिस्से से चूक गई । कई लोगों को यह मेरी हार लगती होगी लेकिन मेरे लिये यह भारतीय खेलों का निर्णायक पल था ।’’
‘पायोली एक्सप्रेस’ के नाम से मशहूर उषा ने कहा ,‘‘इसने साबित किया कि भारत की एक महिला दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को चुनौती दे सकती है ।इससे देश के हर युवा खिलाड़ी को संदेश मिला कि अगर बड़े सपने देखे और मेहनत करें तो कुछ भी असंभव नहीं है और यही खेलों की ताकत है।’’
उषा ने कहा ,‘‘भारतीय खेलों में ऐसे कई पल आये ।हॉकी के मैदान पर ध्यानचंद का जादू, मिल्खा सिंह की दौड़, क्रिकेटरों का देश को एकजुट करना, बैडमिंटन, मुककेबाजी, कुश्ती और निशानेबाजी में कामयाबी । लेकिन हम सिर्फ इतिहास के दम पर आगे नहीं बढ सकते । भविष्य के लिये जमीनी स्तर पर प्रतिभाओं का विकास जरूरी है । दूर दराज के किसी गांव में नंगे पैर दौड़ते बच्चे या घर के अहाते में कबड्डी खेलते बच्चों को तलाशकर तराशने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा कि लक्ष्य क्रिकेट या कुछ खेलों में ही नहीं बल्कि हर खेल में भारत को सफल बनाना होना चाहिये ।
उन्होंने कहा ,‘‘ हमारा मिशन भारत को सिर्फ क्रिकेट या चुनिंदा खेलों में ही नहीं बल्कि एथलेटिक्स, तैराकी, जिम्नास्टिक, साइकिलिंग और ऐसे कई खेलों में आगे बढाना होना चाहिये । डेटा विश्लेषण, बायो मैकेनिक्स, रिकवरी प्रक्रिया, खुराक इन सभी से चैम्पियन बनते हैं और हमें इन्हें हर खिलाड़ी तक पहुंचाना होगा ।’
उषा ने कहा कि भारत को महान खेल देश बनाने के लिये सफलता व्यापक और निरंतर रहनी जरूरी है जिसका आधार ऐसा मजबूत तंत्र हो जो हर खेल की प्रतिभाओं को तराशता हो ।
उन्होंने यह भी कहा कि इस मिशन के लिये सोच में बदलाव भी जरूरी है और खेलों को जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा ।
उन्होंने कहा ,‘‘ हर स्कूल में बच्चों को खेलने के लिये जगह और समय दिया जाये । माता पिता खेल को कैरियर के मौके के रूप में देखें । ऐसा होने पर पदक खुद ब खुद मिलने लगेंगे । उतार चढाव से भरे मेरे सफर ने मुझे पदक ही नहीं बल्कि अनुशासन, आत्मविश्वास और बड़े सपने देखने का हौसला दिया और मैं चाहती हूं कि हर युवा भारतीय खिलाड़ी भी इसका अनुभव करे ।’’
भाषा मोना