दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में साइबर अपराध के जरिए ढाई साल में 30 करोड़ रुपये की ठगी
सुमित अविनाश
- 11 Sep 2025, 06:04 PM
- Updated: 06:04 PM
(सौम्या शुक्ला)
नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) साइबर अपराध की तेजी से बढ़ती घटनाओं के बीच बीते ढाई वर्षों में दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के लोग करीब 30 करोड़ रुपये की ठगी का शिकार बन चुके हैं। इसमें सबसे अधिक मामले ऑनलाइन ट्रेडिंग घोटालों और फर्जी नौकरी के प्रस्ताव से जुडे हैं। 18 से 44 वर्ष के युवा अक्सर इसका शिकार बन जाते हैं।
पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि इस धोखाधड़ी को देश के कई बड़े साइबर अपराध केंद्र बढ़ावा दे रहे हैं। इनमें भरतपुर और मथुरा सहित मेवात क्षेत्र ‘सेक्सटॉर्शन’ और फर्जी होटल बुकिंग घोटालों का गढ़ है। वहीं झारखंड के जामताड़ा और देवघर जिले - केवाईसी और क्रेडिट कार्ड से जुड़ी ठगी के लिए कुख्यात हैं। इसके अलावा राजस्थान के जोधपुर, बाड़मेर के साथ-साथ गुजरात, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्से नकली बैंक खाते (म्यूल अकाउंट) मुहैया कराते हैं, जिनका इस्तेमाल ठगी के पैसों को छिपाने के लिए किया जाता है।
साइबर अपराध के बढ़ते मामलों के बीच, दक्षिण-पश्चिम दिल्ली की साइबर पुलिस ने इस साल चार सितंबर तक कुल 90 मामले दर्ज किए हैं। इन धोखाधड़ी में लोगों को 5.07 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है। पुलिस ने 56 मामलों को सुलझाते हुए 147 आरोपियों को गिरफ्तार किया है और उनसे 2.27 करोड़ रुपये से अधिक की राशि बरामद की है। इनमें से 42 मामले इसी साल के हैं जबकि कुछ मामले 2021 और 2022 के भी हैं जिन्हें सुलझाया जा चुका है।
दिल्ली में साइबर अपराध की बढ़ती प्रवृत्ति पिछले कुछ सालों से साफ देखी जा सकती है। साल-दर-साल बढ़ते मामलों और नुकसान के आंकड़े दिखाते हैं कि स्थिति कितनी गंभीर है। 2024 में पुलिस ने 112 मामले दर्ज किए, जिनमें से 57 सुलझाए गए। उस साल पीड़ितों को कुल 15.8 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ जबकि पुलिस केवल 4.83 करोड़ रुपये की ही वसूली कर पाई। वहीं 2023 में 100 मामले दर्ज हुए और 42 सुलझाए गए। इस दौरान 9.05 करोड़ रुपये का बड़ा नुकसान हुआ जबकि सिर्फ 36 लाख रुपये की ही वसूली हो सकी। इस बीच अच्छी बात यह है कि साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी लगातार बढ़ रही है। 2024 में 185 लोगों को गिरफ्तार किया गया जबकि 2023 में यह संख्या 105 थी।
पुलिस के मुताबिक, इस साल दर्ज 90 मामलों में सबसे अधिक 25 ऑनलाइन ट्रेडिंग घोटाले के हैं। नकली नौकरी से जुड़ी धोखाधड़ी के 12 मामले सामने आए। इसके अलावा डेबिट-क्रेडिट कार्ड या ‘सिम स्वैप’ धोखाधड़ी के नौ, ‘डिजिटल अरेस्ट’ के सात, ‘साइबरबुलिंग’ और बिजली बिल से जुड़ी धोखाधड़ी के छह-छह मामले भी दर्ज हुए हैं।
दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के पुलिस उपायुक्त अमित गोयल के अनुसार, 18 से 44 वर्ष के युवा सबसे ज्यादा जोखिम में हैं क्योंकि ये अक्सर निवेश धोखाधड़ी, सोशल मीडिया आदि घोटालों का शिकार होते हैं।
उपायुक्त अमित गोयल ने यह भी बताया कि 12 से 17 साल के किशोर ‘साइबरबुलिंग’ (किसी व्यक्ति को इंटरनेट या सोशल मीडिया पर परेशान करना, धमकाना) और ‘सेक्सटॉर्शन’ (आपत्तिजनक तस्वीरें या वीडियो के आधार पर किसी को धमकी देना) का शिकार हो रहे हैं लेकिन सामाजिक बदनामी के डर से ऐसे ज्यादातर मामलों की रिपोर्ट नहीं हो पाती।
महिलाओं को नकली सोशल मीडिया प्रोफाइल, छेड़छाड़ वाली तस्वीरों और घर से काम करने के फर्जी प्रस्तावों के जरिए निशाना बनाया जाता है। वहीं वरिष्ठ नागरिक ‘डिजिटल अरेस्ट’ घोटालों का शिकार होते हैं, जिसमें ठग पुलिस या प्रवर्तन अधिकारी बनकर धमकी देते हैं और पैसे वसूलते हैं। इसके अलावा, बिजली बिल से जुड़ी धोखाधड़ी भी काफ़ी आम है।
अधिकारियों के अनुसार, साइबर अपराधी लोगों को ठगने के लिए कई तरीके अपनाते हैं। इनमें नकली नौकरी के ऑफर, खतरनाक मोबाइल ऐप सबसे आम हैं। वहीं ‘सेक्सटॉर्शन’ में अपराधी सोशल मीडिया या डेटिंग ऐप पर शिकार को फंसाते हैं। वीडियो कॉल के दौरान उनका आपत्तिजनक वीडियो बना लिया जाता है और फिर उसे वायरल करने की धमकी देकर उनसे पैसे वसूले जाते हैं।
आर्थिक साइबर अपराधों में (हैकिंग को छोड़कर) ठगी के लिए बार-बार नकली सिम कार्ड और ‘म्यूल’ बैंक खातों का इस्तेमाल होता है।
अधिकारी ने बताया, "ठगा गया पैसा ‘यूपीआई’ या ‘आईएमपीएस’ के जरिए अक्सर बेरोजगार युवाओं, छात्रों, कामगारों या हैक किए गए खातों में ट्रांसफर होता है।" उन्होंने यह भी कहा कि इन 'म्यूल' खातों का इस्तेमाल करने वाले लोग अपने खातों के इस्तेमाल के लिए 5 से 10 प्रतिशत का कमीशन लेते हैं।
धोखाधड़ी से हासिल किए गए पैसे को नकद निकाला जाता है या फिर भारतीय उपभोक्ता-से-उपभोक्ता विनिमय (पीयर-टू-पीयर एक्सचेंज) के माध्यम से ‘यूएसडीटी’ जैसी क्रिप्टोकरेंसी में बदल दिया जाता है।
दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में साइबर पुलिस 10 विशेष टीमों के साथ काम करती है, जिनमें से हर एक का नेतृत्व एक उप-निरीक्षक करता है। जांच में तकनीकी सहायता के लिए ‘ओपन सोर्स इंटेलिजेंस’, ‘आईपी एड्रेस ट्रैकिंग’ और उन्नत वित्तीय धोखाधड़ी विश्लेषण जैसे उपकरणों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।
उपायुक्त ने कहा, “धोखेबाज लगातार नयी-नयी तरकीबें अपना रहे हैं। जब तक कानून की पकड़ बने, तब तक जागरूकता ही साइबर अपराध के खिलाफ सबसे मजबूत कवच है।”
भाषा सुमित