अदालत ने मतदाता सूची में सोनिया का नाम शामिल करने में जालसाजी का आरोप लगाने वाली याचिका खारिज की
नोमान सुरेश
- 11 Sep 2025, 09:01 PM
- Updated: 09:01 PM
नयी दिल्ली, 11 सितंबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी के खिलाफ जांच संबंधी उस याचिका को बृहस्पतिवार को खारिज कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 1983 में भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से तीन साल पहले ही उनका नाम मतदाता सूची में शामिल था।
अदालत ने कहा कि नागरिकता का मामला पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार में आता है।
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट वैभव चौरसिया ने कहा कि इस तरह का तरीका, मूलतः कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसमें एक दीवानी या साधारण विवाद को आपराधिकता की आड़ में पेश किया जाता है, और वह भी केवल एक ऐसा क्षेत्राधिकार बनाने के लिए, जहां कोई क्षेत्राधिकार है ही नहीं।
अदालत ने कहा कि यह शिकायत इस उद्देश्य से तैयार की गई है कि आरोपों के सहारे अदालत को अधिकार-क्षेत्र प्रदान किया जाए, जबकि वे आरोप कानूनी रूप से अस्थिर, अपूर्ण और इस मंच की अधिकार-सीमा से बाहर हैं।
इसने कहा, ‘‘इस तरह की चालबाजी कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है, जिसे यह अदालत बर्दाश्त नहीं कर सकती।’’
यह शिकायत ‘सेंट्रल दिल्ली कोर्ट बार एसोसिएशिन ऑफ राउज एवेन्यू कोर्ट्स’ के उपाध्यक्ष अधिवक्ता विकास त्रिपाठी द्वारा दायर की गई थी।
त्रिपाठी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पवन नारंग ने आरोप लगाया कि जनवरी 1980 में सोनिया गांधी का नाम नयी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता के रूप में जोड़ा गया था, जबकि वह भारतीय नागरिक नहीं थीं।
उन्होंने दावा किया कि ‘‘कुछ जालसाजी’’ की गई है तथा लोक प्राधिकरण को ‘‘धोखा’’ दिया गया है।
अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता ने आपराधिक कानून की कार्यवाही शुरू करने की कोशिश की, जिसके लिए अदालत को बताया गया कि उसके पास अधिकार-क्षेत्र है, जबकि वास्तव में कानून के अनुसार अदालत के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कथनों की जांच से पता चलता है कि इस मंच के समक्ष अधिकार क्षेत्र का दावा करने के लिए धोखाधड़ी और जालसाजी के अपराधों से संबंधित प्रावधानों को लागू करने का प्रयास किया गया है। हालांकि, कथित अपराधों के लिए आवश्यक मूलभूत तत्वों का स्पष्ट रूप से अभाव है।’’
अदालत ने कहा कि सिर्फ़ खोखले दावे, जिनके साथ धोखाधड़ी या जालसाज़ी के कानूनी तत्वों को साबित करने के लिए आवश्यक विशेष विवरण न हों, उन्हें कानूनी रूप से टिकाऊ आरोप के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता।
यह दलील केवल मतदाता सूची के एक अंश पर आधारित थी, जो 1980 की "अप्रमाणित मतदाता सूची के कथित अंश की फोटोकॉपी" थी।
अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि उसे नागरिकता से संबंधित प्रश्नों पर निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, जो केन्द्र के विशेष संवैधानिक और वैधानिक अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
आदेश में कहा गया है, ‘‘इसी प्रकार, किसी व्यक्ति को मतदाता सूची में शामिल करने या बाहर करने की पात्रता और आईपीसी/बीएनएस के तहत अपराध सहित चुनावी अपराधों का निर्धारण करने का अधिकार जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 और संबद्ध अधिनियमों के तहत पूरी तरह से भारत निर्वाचन आयोग के पास है।’’
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस अदालत द्वारा ऐसी जांच शुरू करने का कोई भी प्रयास, सक्षम संवैधानिक प्राधिकारियों को स्पष्ट रूप से सौंपे गए क्षेत्रों में अनुचित अतिक्रमण होगा और यह संविधान के अनुच्छेद 329 (चुनावी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर रोक) का उल्लंघन होगा।’’
अदालत ने कहा कि निजी शिकायत को भारत निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार के लिए विशेष रूप से निर्धारित क्षेत्र पर अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
आदेश में कहा गया है, ‘‘जो कुछ प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता, उसे अप्रत्यक्ष रूप से भी नहीं किया जा सकता। केवल भारतीय न्याय संहिता के तहत कुछ अपराध जोड़ देने से, और उसे संज्ञेय अपराध का रूप देने से, इस अदालत द्वारा संवैधानिक पदाधिकारियों के कामकाज में हस्तक्षेप करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता।’’
यह याचिका भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 175(4) (मजिस्ट्रेट को जांच का आदेश देने की शक्ति) के तहत दायर की गई थी, जिसमें पुलिस को इस आरोप की जांच करने के निर्देश देने की मांग की गई थी कि सोनिया 1983 में भारतीय नागरिक बनीं, लेकिन उनका नाम 1980 की मतदाता सूची में था।
नारंग ने कहा, ‘‘मेरा इतना सा अनुरोध है कि पुलिस को उचित धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए।’’
नारंग ने चार सितंबर को कहा था कि सोनिया गांधी का नाम 1980 में नयी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र की मतदाता सूची में शामिल था, जिसे 1982 में हटा दिया गया था और 1983 में भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के बाद फिर से दर्ज किया गया।
नारंग ने कहा कि 1980 में निवास का प्रमाण संभवतः राशन कार्ड और पासपोर्ट था।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर वह नागरिक थीं, तो 1982 में उनका नाम क्यों हटाया गया? उस समय निर्वाचन आयोग ने दो नाम हटाए थे, एक संजय गांधी का, जिनकी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, और दूसरा सोनिया गांधी का।’’
नारंग ने कहा कि आयोग को जरूर कुछ गड़बड़ लगी होगी जिसके कारण उनका नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया।
भाषा
नोमान