संबलपुर की 160 साल पुरानी मिठाई की दुकान को 'सरसातिया' के लिए जीआई दर्जे की उम्मीद
राजेश राजेश अजय
- 03 Sep 2025, 07:56 PM
- Updated: 07:56 PM
संबलपुर, तीन सितंबर (भाषा) ओडिशा के संबलपुर में 160 साल पुरानी मिठाई की एक दुकान, 'गंजेर' वृक्ष से निकले चिपचिपे राल से बनी एक दुर्लभ मिठाई ‘सरसतिया’ के लिए भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिये जाने की मांग कर रही है, जिसके बारे में दुकान के मालिक प्रभु लाल का दावा है कि यह देश में और कहीं उपलब्ध नहीं हैं।
65 वर्षीय प्रभु लाल, जिसे स्थानीय स्तर पर मिनचू काका के नाम से जाना जाता है, वर्ष 1866 में अपने दादा बेनी माधव द्वारा स्थापित इस विरासत व्यवसाय को चलाने वाली तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। गंजेर वृक्ष के राल, कच्चे चावल पाउडर और चीनी से तैयार यह अद्वितीय मिठाई एक विशिष्ट कुरकुरी बनावट के साथ विषम आकार के वर्मिसी में तली हुई है।
प्रभु लाल ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘सरकार को इसके लिए जीआई दर्जा देना चाहिए क्योंकि आपको इस दुकान को छोड़कर कहीं भी यह मिठाई नहीं मिलेगी।’’ प्रभु लाल को अपने पारंपरिक शिल्प के लिए 8-9 पुरस्कार मिले हैं और कई वर्षों से जीआई दर्जे की मांग कर रहे हैं।
प्रभु लाल का व्यवसाय अपनी साधरण शुरुआत के बाद अब काफी विकसित हो चला है। प्रभु लाल के बचपन के दौरान जिस मिठाई को चार आने में बेचा जाता था, वह अब कच्चे माल की लागत के कारण 12 रुपये प्रति टुकड़ा मिलता है। प्रमुख शहरों और अंतरराष्ट्रीय बाजारों से बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए दैनिक उत्पादन 1,000 टुकड़ों तक बढ़ाया गया है।
इस अद्भुत मिठाई के बाजार पहुंच में हुए विस्तार पर प्रकाश डालते हुए प्रभु लाल कहते हैं, ‘‘हमारे पास दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और दुबई से एडवांस के बुकिंग आर्डर हैं।’’
तैयारी प्रक्रिया मेहनत से भरी है और इस मिठाई को बनाने का एक पारंपरिक तौर-तरीका है। परिवार के सदस्य शाम तक लौटते हुए, गंजेर वृक्ष के राल (चिपचिपे पदार्थ को) इकट्ठा करने के लिए सुबह 5 बजे रेंगली से परे जंगलों में काफी मेहनत करते हैं। इसका रस निकालने के लिए तनों को साफ किया जाता है और 12-15 घंटे के लिए भिगोया जाता है, जिसे बाद में रस को चावल के आटे और चीनी के साथ मिलाया जाता है।
परिवार ने जानबूझकर नुस्खा पर विशिष्टता बनाए रखी है, बाहरी लोगों के साथ ज्ञान साझा करने से इनकार कर दिया है। प्रभु लाल बताते हैं, ‘‘हम दूसरों को नहीं सिखाना चाहते हैं क्योंकि जितना इसे किसी दूसरों द्वारा तैयार किया जायेगा, इसका स्वाद और इसकी मांग प्रभावित होगी। इससे सरसतिया का नाम खराब हो जाएगा।’’
यह सुरक्षात्मक दृष्टिकोण, भारत के कारीगर खाद्य क्षेत्र में पारंपरिक ज्ञान संरक्षण के बारे में व्यापक चिंताओं को दर्शाता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में संदर्भित गंजेर वृक्ष के राल का उपयोग, मिठाई के लिए औषधीय गुणों को भी जोड़ता है, इसे एक खाने वाले और एक स्वास्थ्य अनुकूल उत्पाद दोनों के रूप स्थापित करता है।
जीआई दर्जे की मांग ने राजनीतिक ध्यान आकर्षित किया है। संबलपुर के सांसद और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा है कि वह मांग पर गौर करेंगे।
भाषा राजेश राजेश