मुद्रास्फीति के आंकड़े वास्तविक स्थिति बयां नहीं करते, व्यय सर्वेक्षण संशोधन जरूरी: अर्थशास्त्री
रमण अजय
- 18 May 2025, 01:35 PM
- Updated: 01:35 PM
(राधा रमण मिश्रा)
नयी दिल्ली,18 मई (भाषा) अर्थशास्त्रियों का कहना है कि खुदरा मुद्रास्फीति के मौजूदा आंकड़े महंगाई की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाते और कीमत वृद्धि की सही तस्वीर प्राप्त करने के लिए मौजूदा 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण में जल्द-से-जल्द संशोधन करने की जरूरत है।
उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सब्जियों, फलों एवं दालों की कीमतों में नरमी आने से अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति की दर घटकर लगभग छह साल के निचले स्तर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन परिवार के शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मदों में बढ़ते खर्च को देखते हुए यह माना जा रहा है कि यह आंकड़ा महंगाई की स्थिति का सही बयां नहीं करता।
जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रो. एन आर भानुमूर्ति ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘यह माना जा रहा है कि खुदरा उपभोक्ताओं की खपत वस्तुओं की संरचना में बदलाव हुआ है। ऐसे में इसे जीवनयापन की लागत को दर्शाने के लिए भारांश और वस्तुओं में बदलाव की जरूरत है। अभी हम 2011-12 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण का इस्तेमाल कर रहे हैं और इसे जल्द-से-जल्द संशोधित करने की जरूरत है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसी उम्मीद है कि नये सर्वेक्षण में 2011-12 के मुकाबले खाद्य वस्तुओं का भारांश कम हो सकता है। इसी तरह कुछ नई वस्तुएं भी हैं जो औसत उपभोक्ताओं की खपत में शामिल हो सकती हैं।’’
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसेर डॉ. अरुण कुमार ने कहा, ‘‘हम वर्तमान में जो सूचकांक (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक) लेकर चल रहे हैं, वह न तो गरीब को और न ही अमीर को प्रतिबिंबित करता है...उपभोग प्रतिरूप बदलता रहता है। जैसे तीस साल पहले मोबाइल नहीं था। पर अब सबके हाथ में है और अब इस मद में खर्च बढ़ा है। लोग अब होटल, रेस्तरां में बाहर ज्यादा खाने लगे हैं...। स्कूल फीस, स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ा है। इसीलिए खपत प्रतिरूप बदल रहा है और उसका भारांश भी बढ़ रहा है। इसमें समय-समय पर संशोधन होना चाहिए था। लेकिन अबतक नहीं हुआ है ’’
उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के तहत यह पता लगाया जाता है कि परिवार किस प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं पर खर्च करते हैं। इससे खपत प्रतिरूप को समझने में मदद मिलती है। वर्तमान में 2011-12 के सर्वेक्षण के आधार पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का आकलन किया जाता है। यह सर्वेक्षण हर पांच साल में होता है। परिवारों के खपत व्यय पर पिछला सर्वेक्षण 2022-23 और 2023-24 (अगस्त-जुलाई) में किया गया और इसके आधार पर सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के लिए आधार वर्ष मौजूदा 2012 से संशोधित कर 2024 करने पर काम कर रहा है। ऐसी संभावना है कि फरवरी, 2026 से 2022-23 के उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण के आधार पर सीपीआई आंकड़े जारी किये जाएंगे।
एक सवाल के जवाब में भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘महंगाई दर 3.16 प्रतिशत पर आ गई है, लेकिन इसका मतलब है कि कीमतों में पिछले साल के मुकाबले 3.16 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, न कि कीमतों में गिरावट।’’
कुमार ने भी कहा, ‘‘दो चीजें हैं। पहला मुद्रास्फीति और दूसरा कीमत। मुद्रास्फीति दर कम होने का मतलब यह नहीं है कि कीमतें कम हो रही हैं। इसका मतलब है कि कीमत बढ़ने की दर कम हुई है। मुद्रास्फीति दर तीन प्रतिशत (3.16 प्रतिशत) होने का का मतलब है कि पहले छह प्रतिशत से दाम बढ़ रहे थे, अब तीन प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं... दाम अब भी बढ़ रहे हैं, यानी घर के बजट पर असर पड़ना जारी है। आमदनी भी उतनी बढ़े तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा। अत: यह देखना पड़ता है कि किस-किस तबके पर क्या असर हुआ है।’’
कुमार ने कहा, ‘‘ मुद्रास्फीति की दर सबके लिए एक नहीं है। यह निर्भर करता है कि आपकी खपत का स्तर क्या है। जो उद्योगपति हैं, कारोबारी हैं, उन्हें महंगाई से लाभ होता है क्योंकि उनका मुनाफा बढ़ता है। लेकिन आम लोगों को नुकसान होता है। इसका कारण मध्यम वर्ग, औद्योगिक श्रमिक या किसान अथवा कृषि श्रमिकों की खपत वाली वस्तुओं का प्रतिरूप अलग-अलग होता है। गरीब लोगों के लिए खाने के सामान का महत्व ज्यादा है। अमीर खाद्य वस्तुओं पर कम खर्च है।’’
उल्लेखनीय है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में खाद्य वस्तुओं और पेय पदार्थों की हिस्सेदारी 45.86 प्रतिशत है। जबकि विविध श्रेणी के अंतर्गत आने वाले घरेलू उत्पादों और सेवाओं, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि मदों की हिस्सेदारी 28.32 प्रतिशत है।
कुमार ने कहा, ‘‘शिक्षा और स्वास्थ्य का भारांश बिल्कुल बढ़ाने की जरूरत है। सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी अब बढ़ी है। नये सर्वेक्षण से सही स्थिति का पता चलता है। सेवा क्षेत्र का हिस्सा अर्थव्यवस्था में 55 से 60 प्रतिशत पर है। खुदरा सूचकांक में इसकी हिस्सेदारी लगभग 26 प्रतिशत है। जितना होना चाहिए, उससे कम है। इसकी हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है...।’’
खुदरा और थोक मुद्रास्फीति में अंतर से जुड़े सवाल के जवाब में भानुमूर्ति ने कहा, ‘‘थोक मूल्य सूचकांक के अनुमान अधिक महत्वपूर्ण हैं। फिलहाल सीपीआई आंकड़ों के साथ इसकी तुलना नहीं हो पाती है। तार्किक रूप से खासकर अगर आपूर्ति में बदलाव के कारण थोक कीमतों में बदलाव होता है, खुदरा बाजार की कीमतों में बदलाव होना चाहिए। हालांकि, मौजूदा अनुमानों में कोई संबंध नहीं है। इन दोनों अनुमानों को सुसंगत बनाने की तत्काल आवश्यकता है।’’
भाषा रमण