जनसंख्या वृद्धि और इसमें कमी अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की स्थिरता से जुड़ा
सुरेश
- 15 May 2025, 06:01 PM
- Updated: 06:01 PM
(फाइल बदलते हुए)
(केन जी. ड्रोइलार्ड, क्लाउडियो एन. वेरानी और मार्सेलो अर्बेक्स, विंडसर यूनिवर्सिटी, कनाडा)
ओंटारियो, 15 मई (द कन्वरसेशन) पिछले 200 साल से हमें अनियंत्रित जनसंख्या वृद्धि और इसके परिणामस्वरूप होने वाली पर्यावरण अस्थिरता के बारे में चेतावनी दी जा रही है। दूसरी ओर, आज कुछ देशों में घटती जनसंख्या के साथ-साथ बुज़ुर्गों की संख्या में वृद्धि हो रही है, जिससे आर्थिक अस्थिरता पैदा हो रही है।
जनसंख्या संकट के ये दो पहलू- तेज वृद्धि और गिरावट- विश्व के विभिन्न भागों में घटित हो रहे हैं, तथा इनका पर्यावरण और अर्थव्यवस्थाओं पर वैश्विक प्रभाव पड़ रहा है।
आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता प्राप्त करने के बारे में चर्चा करते समय जनसंख्या परिवर्तन, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण को ध्यान में रखना होगा, क्योंकि ये अवधारणाएं आपस में बारीकी से जुड़ी हुई हैं।
जनसंख्या में तीव्र वृद्धि एवं उसमें गिरावट पर्यावरणीय एवं आर्थिक अस्थिरता दोनों से संबंधित हैं; कुछ देश प्रतिक्रियावादी विकल्प अपनाते हैं, जो पर्यावरण की तुलना में अल्पकालिक घरेलू आर्थिक प्रगति को प्राथमिकता देते हैं।
तीव्र जनसंख्या वृद्धि का संकट
अंग्रेज अर्थशास्त्री थॉमस माल्थस ने 1798 में जनसंख्या विस्फोट की चेतावनी दी थी, उनका आकलन था कि कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी के मुकाबले जनसंख्या वृद्धि की दर अधिक हो जाएगी। माल्थस के विचारों को 1960 के दशक में जनसंख्या वृद्धि के चरम पर प्रकाशित अमेरिकी वैज्ञानिक पॉल आर. एहर्लिच की किताब ने दोबारा चर्चा में ला दिया। दोनों ने भविष्यवाणी की कि जनसंख्या विस्फोट से संसाधनों की कमी होगी और पर्यावरण को नुकसान बढ़ेगा।
माल्थस की तरह, एर्लिच की भी आलोचना एक ऐसे संकट को गढ़ने के लिए की गई ‘‘जो कभी हुआ ही नहीं’’ क्योंकि मानवीय सूझबूझ, जो जनसंख्या का एक उपोत्पाद है, पर्यावरणविदों के सबसे बुरे डर पर काबू पा लेती है। यह प्रतिवाद तकनीकी प्रगति पर निर्भर करता है जो पर्यावरणीय प्रभावों को कम करते हुए संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग करता है।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण कृषि क्षेत्र में आई दक्षता है, जो निरंतर बढ़ती हुई दुनिया की आबादी को भोजन उपलब्ध करा रही है। एहर्लिच की संचयी पर्यावरणीय क्षति की भविष्यवाणियां जलवायु परिवर्तन की बढ़ती तीव्रता और प्रजातियों की हानि से सबसे अच्छी तरह स्पष्ट होती हैं, क्योंकि वैश्विक जनसंख्या में वृद्धि जारी है, हालांकि वर्तमान वृद्धि दर 1960 के दशक की तुलना में धीमी है।
एकीकृत विकास सिद्धांत बताता है कि दीर्घकाल में अर्थव्यवस्थाएं कैसे बदलती हैं। यह धीमी तकनीकी प्रगति, कम आय वृद्धि और उच्च जनसंख्या वृद्धि की अवधि से शुरू होता है। समय के साथ, ये स्थितियां आधुनिक विकास के चरण का मार्ग प्रशस्त करती हैं, जहां प्रौद्योगिकी में तेजी से सुधार होता है, आय में लगातार वृद्धि होती है और जनसंख्या वृद्धि धीमी हो जाती है, क्योंकि समाज स्थिर जनसंख्या आकार की ओर जनसांख्यिकीय संक्रमण से गुजरता है।
तकनीकी प्रगति लंबे समय में राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं में सकारात्मक योगदान देती है। हालांकि, हरित प्रौद्योगिकी को जल्दी अपनाना अक्सर वित्त और सरकारी प्रोत्साहन पर निर्भर करता है, जिसकी वजह से अल्पकालिक आर्थिक बोझ पड़ सकता है। फिर भी, जब हरित प्रौद्योगिकी का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है और जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने के साथ जोड़ा जाता है, तो इससे राष्ट्रीय पर्यावरणीय क्षति में कमी आती है, जो संयुक्त रूप से पर्यावरणीय और आर्थिक स्थिरता का मार्ग प्रशस्त करता है।
जनसंख्या में गिरावट का संकट
घटती आबादी के कारण ‘इंवर्टेड’ (उलटे) आयु पिरामिड बनते हैं, जिसमें बुजुर्ग लोगों की संख्या ज्यादा होती है। यह बदलती जनसांख्यिकी आर्थिक अस्थिरता का कारण बनती है। यह स्थिति तकनीकी प्रगति और सामाजिक सुरक्षा को भी बाधित करती है।
जनसंख्या में गिरावट एकीकृत विकास सिद्धांत द्वारा वर्णित लाभ के विरुद्ध काम करती है। वर्तमान में, 63 देश अपनी जनसंख्या के चरम अवस्था पर पहुंच चुके हैं और 48 और देशों के 30 वर्षों के भीतर इस स्थिति में पहुंचने की आशंका है। वैश्विक स्तर पर भी जनसंख्या में गिरावट की आशंका जताई जा रही है।
अनुमान है कि वैश्विक जनसंख्या 2060 के दशक के मध्य से 2100 के बीच अपने चरम पर होगी, जो वर्तमान 8.2 अरब से बढ़कर 10.2 अरब पर जाकर स्थिर हो जाएगी।
राजनीतिक वैज्ञानिक डेरेल ब्रिकर और राजनीतिक टिप्पणीकार जॉन इब्बिटसन ने अपनी पुस्तक ‘एम्प्टी प्लैनेट’ में चेतावनी दी है कि जनसंख्या वृद्धि की दर शून्य के करीब तेजी से पहुंचेगी। उनकी दलील है कि जब किसी देश में प्रजनन दर प्रतिस्थापन (प्रति महिला 2.1 बच्चे) से कम हो जाती है, तो बढ़ते शहरीकरण के सामाजिक सुदृढ़ीकरण, बच्चों के पालन-पोषण की लागत और परिवार नियोजन की दिशा में सशक्त कदम उठाये जाने के कारण जन्म दर को बढ़ाना लगभग असंभव हो जाता है।
अत्यधिक समृद्ध देशों की जनसंख्या में वृद्धों का अनुपात बढ़ने के साथ प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद घट रहा है। हालांकि, कम समृद्ध देशों को जोड़ने पर यह पैटर्न नहीं दिखता है, लेकिन यह आंकड़ा वृद्ध आबादी से जूझ रहे देशों के लिए ठोस आर्थिक प्रभावों को दर्शाता है।
एक साथ जनसंख्या विस्फोट और गिरावट
जनसंख्या गिरावट का सामना कर रहे समृद्ध राष्ट्र आर्थिक अस्थिरता पर इस प्रकार कदम उठा सकते हैं, जो वैश्विक आर्थिक और पर्यावरणीय स्थिरता के प्रतिकूल हो सकता है।
अतीत में, समृद्ध राष्ट्र हरित प्रौद्योगिकी के नेतृत्वकर्ता थे। हालांकि, जनसंख्या में गिरावट से होने वाली आर्थिक अस्थिरता वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय क्षति को कम करने के लिए महत्वपूर्ण हरित प्रौद्योगिकी में निवेश करने, अपनाने और साझा करने में अनिच्छा पैदा कर सकती है।
यह समस्या इस तथ्य से और भी जटिल हो जाती है कि कई देश इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि जनसंख्या वृद्धि में उनकी अपनी गिरावट किस तरह से आर्थिक अस्थिरता में योगदान करती है। इसके बजाय वे अपनी आर्थिक स्थिति के अल्पकालिक समाधानों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जिसमें संसाधनों का असंवहनीय उपयोग शामिल हो सकता है।
अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो जनसंख्या में गिरावट का वास्तविक मुद्दा अनसुलझा रह जाएगा, जिससे आप्रवासन और वैश्विक व्यापार के खिलाफ सामाजिक चिंताएं बढ़ेंगी। इससे समस्या और गंभीर हो सकती है, जिससे प्रौद्योगिकी साझाकरण रुक सकता है, आर्थिक विकास धीमा हो सकता है और आर्थिक असमानता और पर्यावरण को नुकसान बढ़ सकता है।
(द कन्वरसेशन) धीरज