सौ साल पुरानी विवादित संपत्ति पर जबरन कब्ज़ा करने के लिए अदालत ने रक्षा मंत्रालय को फटकार लगाई
नोमान सुरेश
- 15 May 2025, 09:25 PM
- Updated: 09:25 PM
इंदौर, 15 मई (भाषा) मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने दो बुजुर्ग बहनों से 132 साल पुरानी विवादित संपत्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए जबरन अपने कब्जे में लेने के “पूरी तरह से अवैध” कृत्य के लिए रक्षा मंत्रालय की आलोचना की है।
न्यायमूर्ति प्रणय वर्मा की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने 13 मई के आदेश में कहा कि जिस तरह से रक्षा संपदा अधिकारी ने इंदौर के महू में स्थित लगभग 1.8 एकड़ की संपत्ति को जब्त किया, वह “कानून के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।”
यह आदेश 84-वर्षीय एन चंदिरामणी और 79-वर्षीय अरुणा रोड्रिग्स की अपील पर आया। उन्होंने अपीलीय अदालत के अप्रैल 2024 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें बेदखली के खिलाफ दायर उनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया था।
याचिका के अनुसार, साल 2022 में एक दीवानी अदालत ने उनकी उस अर्जी को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने विवादित संपत्ति पर अपना मालिकाना हक घोषित करने की मांग की थी। साथ ही उन्होंने यह भी आग्रह किया था कि उन्हें बेदखल करने के लिए रक्षा संपदा अधिकारी द्वारा भेजे गये ‘कारण बताओ नोटिस’ को अमान्य घोषित किया जाए।
हालांकि दीवानी अदालत ने यह बात स्वीकार की कि बहनें संपत्ति पर अपना मालिकाना हक साबित करने में नाकाम रही हैं, लेकिन संपत्ति पर उनके कब्जे तथा उस पर उनके अधिकार को मान्यता दी।
बहनों ने आरोप लगाया कि दीवानी अदालत द्वारा उनका आवेदन खारिज किए जाने के एक दिन बाद, रक्षा संपदा अधिकारी ने कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना तथा अदालत या प्राधिकारी के बेदखली के आदेश के बिना ही संपत्ति पर कब्जा कर लिया।
उच्च न्यायालय के निर्णय में "जबरन कब्जे" की घटना को संज्ञान में लिया गया, जो दीवानी अदालत के फैसले के मात्र 24 घंटे के भीतर हुआ।
उच्च न्यायालय ने कहा, "यह स्पष्ट है कि प्रतिवादियों (रक्षा कर्मियों) ने वादी (बहनों) को अपीलीय अदालत में जाने और अपने पक्ष में अंतरिम आदेश प्राप्त करने के लिए 24 घंटे का भी समय नहीं दिया।"
पीठ ने संपत्ति विवाद की दीर्घकालिक प्रकृति पर प्रकाश डाला, जो लगभग 30 वर्षों से चल रहा है, तथा कहा कि यदि बहनों को कानूनी सहायता लेने के लिए उचित समय दिया गया होता, तो "आसमान नहीं टूट पड़ता।"
उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की, "जिस तरह से प्रतिवादियों ने विवादित संपत्ति पर कब्जा किया है, वह पूरी तरह से अवैध है और कानून के सभी सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।"
न्यायमूर्ति वर्मा ने कहा कि यह स्पष्ट है कि संपदा अधिकारी ने बहनों को निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करने से वंचित करने के लिए "पूर्व-योजना" बनाई थी।
उच्च न्यायालय ने कहा, "प्रतिवादियों का ऐसा रवैया बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।"
पीठ ने रक्षा संपदा अधिकारी को यथास्थिति बहाल करने और विवादित संपत्ति का कब्जा बहनों को सौंपने तथा उसके बाद उसमें हस्तक्षेप न करने या किसी तीसरे पक्ष को खड़ा न करने का निर्देश दिया।
अपनी याचिका में बहनों ने दावा किया कि यह संपत्ति उनके पूर्वजों ने नवंबर 1892 में खरीदी थी।
जुलाई 1995 में रक्षा मंत्रालय ने सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत बहनों को नोटिस जारी कर विवादित संपत्ति के स्वामित्व के दस्तावेज मांगे।
भाषा नोमान