मोदी सरकार ने सांसदों के वेतन में संशोधन को सुव्यवस्थित किया, कई राज्यों में मनमानी प्रथा :अधिकारी
अविनाश पवनेश
- 25 Mar 2025, 09:20 PM
- Updated: 09:20 PM
नयी दिल्ली, 25 मार्च (भाषा) अधिकारियों ने मंगलवार को कहा कि सात साल की अवधि के बाद सांसदों के वेतन में हाल ही में की गई 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी लगभग 3.1 प्रतिशत प्रति वर्ष है, जो विगत में सांसदों द्वारा खुद की जाने वाली बढ़ोतरी से बहुत कम है।
आधिकारिक सूत्रों ने उल्लेख किया कि कई राज्य अब भी विधायकों के वेतन में बढ़ोतरी के लिए ‘‘मनमाने और तदर्थ’’ तंत्र का पालन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने 2018 में सांसदों के वेतन में वृद्धि को लागत मुद्रास्फीति सूचकांक से जोड़ दिया था ताकि आलोचना को रोका जा सके कि सांसद खुद अपना वेतन तय कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दृढ़ विचार था कि सांसदों को अपने वेतन का फैसला नहीं करना चाहिए और यह निर्णय या तो वेतन आयोग के समान किसी निकाय द्वारा लिया जाना चाहिए या इसे समय-समय पर कुछ पदों को दी जाने वाली बढ़ोतरी से जोड़ा जाना चाहिए।
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘2018 में शुरू की गई व्यवस्था वेतन संशोधन के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी दृष्टिकोण सुनिश्चित करती है, यह मनमाने ढंग से वेतन वृद्धि को रोकती है और वित्तीय विवेक सुनिश्चित करती है।’’
अधिकारियों ने कहा कि इस संशोधन से पहले, वेतन संशोधन ‘तदर्थ’ आधार पर किए जाते थे और हर बार संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती थी। उन्होंने कहा कि नए तंत्र ने प्रक्रिया को गैर-राजनीतिक बना दिया और वेतन समायोजन के लिए एक व्यवस्थित तंत्र पेश किया।
उन्होंने कहा कि 2018 के संशोधन से पहले अंतिम संशोधन 2010 में हुआ था, जब संसद ने सांसदों के मासिक वेतन को 16,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये करने का विधेयक पारित किया था। उन्होंने कहा कि इसकी सार्वजनिक आलोचना हुई।
वर्ष 2018 में मूल वेतन एक लाख रुपये प्रति माह निर्धारित किया गया था। इसके साथ अतिरिक्त भत्ते भी थे जिनमें 70,000 रुपये का निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और 2,000 रुपये का दैनिक भत्ता, मुफ्त आवास, यात्रा आदि शामिल थे।
अधिकारियों ने उल्लेख किया कि कोविड महामारी के दौरान विशेष कदम के तौर पर, सरकार ने अप्रैल 2020 में एक साल के लिए सांसदों और मंत्रियों के वेतन में 30 प्रतिशत की कटौती लागू की।
उन्होंने कहा कि कई राज्य सरकारें अब भी विधायकों के वेतन तय करने के लिए मनमाने और तदर्थ तंत्र का पालन कर रही हैं।।
हाल ही में पेश 2025 के बजट के दौरान, मुख्यमंत्री सिद्धरमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने विधायकों के वेतन में 100 प्रतिशत वृद्धि को मंजूरी दी।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री का वेतन 75,000 रुपये से बढ़कर 1.5 लाख रुपये प्रति माह हो गया, जबकि मंत्रियों का वेतन 60,000 रुपये से बढ़कर 1.25 लाख रुपये हो गया। विधायकों के वेतन में भी बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने कहा कि भत्तों को शामिल करने पर उनकी कुल मासिक आय तीन लाख रुपये से बढ़कर पांच लाख रुपये हो गई।
उन्होंने कहा कि जून 2024 में झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार ने मुख्यमंत्री, मंत्रियों और विधायकों के वेतन में 50 फीसदी तक की बढ़ोतरी की थी।
वर्ष 2023 में दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने मुख्यमंत्री के वेतन में 136 फीसदी वृद्धि को मंजूरी दी, जिससे उनका वेतन 1.7 लाख रुपये प्रति माह हो गया, जबकि विधायकों को 66 फीसदी की बढ़ोतरी मिली।
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने भी विधायकों के वेतन में इसी तरह तदर्थ तरीके से बढ़ोतरी की है।
भाषा अविनाश