सिल्क्यारा बचाव अभियान ने मुझे बदल दिया :बचाव अभियान के अगुवा अर्नोल्ड डिक्स ने सालभर बाद कहा
राजकुमार नरेश
- 29 Nov 2024, 04:30 PM
- Updated: 04:30 PM
नयी दिल्ली, 29 नवंबर (भाषा) सिल्क्यारा सुरंग प्रकरण में बचाव अभियान के अगुवा अर्नोल्ड डिक्स याद करते हैं,‘‘सब ठीक हो जाएगा। किसी को तो यह कहना ही था।’’ और उन्होंने ऐसा किया।
उम्मीद का यह संदेश उस दिन बहुत ज़रूरी था जब पिछले नवंबर में वह उत्तराखंड के सिल्कयारा पहुंचे थे, जहां 41 मज़दूर एक हफ्ते से सुरंग में फंसे हुए थे।
उम्मीद की डोरी बहुत नाजुक थी। लेकिन उन्होंने जो साहसिक वादा किया था कि निर्माणाधीन सिल्कयारा बेंड-बरकोट सुरंग के अंदर से लोगों को क्रिसमस तक सुरक्षित बचा लिया जाएगा, उसने उन कठिन दिनों में श्रमिकों, उनके परिवारों और लगभग हर भारतीय में आशा की किरण जगा दी थी।
पिछले साल 12 नवंबर को पहाड़ सचमुच उन पर टूट पड़ा था और लगभग 17 दिनों की कड़ी मशक्कत के बाद 28 नवंबर को उन्हें बाहर निकाला गया। जब पूरा देश सांस थामे यह सब देख रहा था तब डिक्स उम्मीद की रौशनी बनकर सामने आए।
‘इंटरनेशनल टनलिंग एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन’ के अध्यक्ष ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘सिल्कयारा में किसी को तो यह कहना था, ‘सब ठीक हो जाएगा।’ किसी को सभी को यह विश्वास दिलाना था कि हम यह कर सकते हैं, क्योंकि अन्यथा यह हमेशा की तरह ही समाप्त हो जाएगा। वे मर ही चुके होते।’’
डिक्स ने कहा, ‘‘आमतौर पर, मैं शवों को बाहर निकालने और जो कुछ गलत हुआ है उससे सबक सीखने में शामिल रहता हूं। सिल्कयारा अलग था, किसी तरह मैं महसूस कर सकता था कि यह अलग था और हम इसे कर सकते थे ।’’
बचाव अभियान के आस्ट्रेलियाई नायक डिक्स इस चमत्कारी उपलब्धि के एक वर्ष बाद मिशन की पहली वर्षगांठ मनाने के लिए भारत में हैं। उन्होंने माना कि उनका आश्वासन उनकी तकनीकी विशेषज्ञता से अधिक विश्वास पर आधारित था।
जब भारतीय अधिकारियों ने 60 वर्षीय आस्ट्रेलियाई नागरिक डिक्स को फोनकर बताया था कि उत्तराखंड में निर्माणाधीन 4.5 किलोमीटर लंबी सिल्कयारा बेंड-बरकोट सुरंग का एक हिस्सा ढह गया है और उसमें 41 श्रमिक फंस गए हैं, तब वह यूरोप में थे।
दुनिया में भूमिगत सुरंग विषयों के जाने-माने विशेषज्ञ समझे जाने वाले डिक्स बिना देरी किये स्लोवेनिया की राजधानी ल्युब्लियाना से 6400 किलोमीटर से भी अधिक दूर मुंबई के लिए चल पड़े थे। वहां से वह दिल्ली और फिर देहरादून पहुंचे थे। देहरादून में एक हेलीकॉप्टर उनका इंतजार कर रहा था जो उन्हें उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में घटनास्थल पर ले गया।
जब वह 19 नवंबर को वहां पहुंचे, तब तक वहां फंसे हुए मजदूर एक सप्ताह से अभाव और भय की स्थिति में थे। उन्हें पता था कि पहाड़ कभी भी ढह सकता है।
डिक्स ने सुरंग का निरीक्षण किया और मलबे के बीच से चुनौतियों से निपटने के लिए तकनीकी समाधान सुझाते हुए विभिन्न एजेंसियों के साथ समन्वय किया।
शुरू से ही उनका नजरिया स्पष्ट था: ‘‘ यह 'मनुष्य बनाम पहाड़' का एक क्लासिक मामला था, वास्तविकता अपेक्षा से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण थी।’’
विभिन्न एजेंसियों के नेतृत्व वाले बचाव अभियान की मूल रणनीति डिक्स की सहायता से श्रमिकों को निकालने के लिए क्षैतिज खुदाई (ड्रिलिंग) का उपयोग करना था। हालांकि, जब अभियान अपने समापन के करीब पहुंचा, तो पहले से प्रतिबंधित ‘रैट-होल’ खनन पद्धति का उपयोग किया गया।
भाषा राजकुमार