आंबेडकर ने संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल करने का विरोध किया था : हिमंत
पारुल दिलीप
- 26 Nov 2024, 10:27 PM
- Updated: 10:27 PM
गुवाहाटी, 26 नवंबर (भाषा) असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने मंगलवार को दावा किया कि डॉ. बीआर आंबेडकर ने संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द शामिल करने का विरोध किया था, क्योंकि भारत में पहले से ही धर्मनिरपेक्षता की 5,000 साल लंबी परंपरा थी।
शर्मा ने गुवाहाटी में असम सरकार के संसदीय कार्य विभाग की ओर से आयोजित 75वें संविधान दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा, “संविधान सभा ने हमारे संविधान में भारतीय सभ्यता के सार को प्रतिबिंबित किया था और उन मूल्यों पर आधारित समाज के निर्माण की नींव रखी थी।”
उन्होंने कहा कि भारत में धर्म के आधार पर संविधान का मसौदा तैयार करने का अवसर होने के बावजूद संविधान निर्माता इसे धर्मनिरपेक्ष बनाने में सफल रहे और यह असाधारण कार्य भारतीय सभ्यता की ताकत के कारण संभव हो सका।
शर्मा ने दावा किया, “आंबेडकर ने संविधान में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द को शामिल करने का विरोध किया था, क्योंकि उनका मानना था कि इस शब्द को जोड़ने से यह धारणा बनेगी कि भारत 1949 में ही धर्मनिरपेक्ष बना था।”
उन्होंने कहा, ‘‘संविधान सभा ने विचार किया था कि हमारी सभ्यता स्वाभाविक रूप से धर्मनिरपेक्ष है और खुद को स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्ष घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है।’’
शर्मा ने कहा, “इसलिए, यह हमेशा स्पष्ट होना चाहिए कि भारत की धर्मनिरपेक्षता कोई पश्चिमी अवधारणा नहीं है, बल्कि भारत की 5000 साल पुरानी सभ्यता और संस्कृति के सार से ली गई है और आंतरिक रूप से हमारी विरासत में निहित है।”
उन्होंने कहा कि अगर कोई उन देशों के इतिहास का अध्ययन करता है, जहां संविधान का मसौदा तैयार किया गया था, तो वह पाएगा कि उन संबंधित देशों में प्रमुख धर्म ने उनके संविधान का आधार बनाया।
शर्मा ने भारत को इस मामले में अपवाद बताया। उन्होंने कहा कि देश में 90 फीसदी से अधिक लोग एक विशेष धर्म के हैं, इसके बावजूद संविधान सभा ने साहसपूर्वक एक ऐसे संविधान का मसौदा तैयार किया, जो धर्मनिरपेक्ष है।
भाषा पारुल