महज दहेज के मामले में फंसाए जाने से व्यक्ति को सरकारी नियुक्ति से इनकार नहीं कर सकते: उच्च न्यायालय
राजेंद्र नोमान
- 25 Nov 2024, 11:34 PM
- Updated: 11:34 PM
प्रयागराज, 25 नवंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी अभ्यर्थी को सरकारी पद पर नियुक्ति देने से सिर्फ इसलिए इनकार नहीं किया जा सकता कि उसे दहेज के मामले में फंसाया गया है।
इस मामले में याचिकाकर्ता बाबा सिंह ने लघु सिंचाई विभाग में बोरिंग तकनीशियन पद के लिए आवेदन किया था। वह संबंधित परीक्षा में शामिल हुआ और परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उसे दस्तावेजों के सत्यापन के लिए बुलाया गया।
विभाग में पहुंचने पर उसे अधिकारियों द्वारा नियुक्ति पत्र जारी करने से इस आधार पर इनकार कर दिया गया कि उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498ए (दहेज के लिए महिला से क्रूरता) और 323 (जानबूझकर नुकसान पहुंचाना) और दहेज निरोधक कानून की धारा 4 के तहत एक आपराधिक मामला लंबित है।
इसके बाद याचिकाकर्ता ने चयन परिणाम के आधार पर नियुक्ति पर पुनर्विचार करने का प्रतिवादियों को निर्देश जारी करने का अनुरोध करते हुए एक रिट याचिका दायर की।
अदालत ने याचिका निस्तारित करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को नए सिरे से मुख्य अभियंता, लघु सिंचाई विभाग के समक्ष प्रत्यावेदन प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाए और मुख्य अभियंता कानून के मुताबिक उस पर निर्णय करें।
याचिकाकर्ता ने अपना प्रत्यावेद प्रस्तुत किया जिसे मुख्य अभियंता द्वारा 16 फरवरी, 2024 को खारिज कर दिया गया था। इससे पीड़ित याचिकाकर्ता ने मौजूदा रिट याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि जब उसने इस पद के लिए आवेदन किया था, उसे अपने खिलाफ दायर आपराधिक मामले की जानकारी नहीं थी। यह मामला उसकी भाभी द्वारा पूरे परिवार के खिलाफ दायर किया गया जिसके बाद समन आदेश जारी किया गया और इस आधार पर याचिकाकर्ता को नियुक्ति पत्र देने से इनकार किया गया।
न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने कहा कि एक आपराधिक मामले में महज फंसाया जाना उम्मीदवार को खारिज करने का आधार नहीं बन जाता। उन्होंने कहा कि इस मामले में जो व्यक्ति नियुक्ति की मांग कर रहा है, वह मुख्य आरोपी का भाई है और इसे दहेज के मामले में फंसाया गया है।
अदालत ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए 16 फरवरी 2024 को मुख्य अभियंता द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया और मुख्य अभियंता को याचिकाकर्ता के मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया।
यह निर्णय देते हुए अदालत ने कहा, “समाज में मौजूद सामाजिक स्थितियों को देखते हुए जहां महिलाएं अपने ससुराल में क्रूरता की शिकार बन जाती हैं, यह भी समान रूप से सत्य है कि क्रूरता के आरोप में पति के पूरे परिवार को अदालत में घसीट जाता है।”
अदालत ने कहा, “इस तरह के मामले में क्या सरकारी परीक्षा के जरिए अपने दम पर चयनित एक ऐसे उम्मीदवार को सरकारी नौकरी से वंचित किया जाना चाहिए जिसकी स्वच्छ छवि है और वह समाज की मुख्यधारा का हिस्सा है।”
अदालत में दलील दी गई थी कि याचिकाकर्ता द्वारा इस आपराधिक मामले को चुनौती दी गई है जहां अदालत ने शिकायतकर्ता को नोटिस जारी कर इस मामले में आगे सुनवाई पर रोक लगा दी है।
भाषा राजेंद्र