तेजी से बढ़ती डिजिटल दुनिया में युवाओं का वास्तविक खेल मैदानों से दूर होना चिंताजनक: उपराष्ट्रपति
आनन्द सुधीर
- 19 Nov 2024, 10:22 PM
- Updated: 10:22 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को कहा कि तेजी से बढ़ती डिजिटल दुनिया युवाओं को शारीरिक खेलों से दूर डिजिटल खेल के मैदानों की ओर धकेल रही है जो कि चिंताजनक है।
उपराष्ट्रपति ने यहां विशेष ओलंपिक एशिया पैसिफिक बोशे और बॉलिंग प्रतियोगिता के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए दिव्यांग खिलाड़ियों के सामने आने वाली चुनौतियों का जिक्र किया।
धनखड़ ने कहा, ‘‘आप न केवल मैदान पर बल्कि जीवन के खेल में भी चैंपियन हैं जहां आप उन चुनौतियों के खिलाफ जीत हासिल करते हैं जिनकी हममें से कई लोग केवल कल्पना कर सकते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ ये खिलाड़ी चौबीसों घंटे चुनौतियों का सामना करते हैं फिर भी उनके जोश, ऊर्जा और उत्साह में कोई कमी नहीं है।’’
उपराष्ट्रपति ने देश के युवाओं के बीच डिजिटल दुनिया के प्रति बढ़ते जुनून को ‘एक गंभीर चिंता’ बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘यह गंभीर रूप से चिंताजनक होता जा रहा है। आज की तेजी से बढ़ती डिजिटल दुनिया में हमारे युवा और बच्चे तेजी से छोटी प्लास्टिक स्क्रीन (मोबाइल) का उपभोग कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ उन्हें वास्तविक खेल के मैदानों से दूर डिजिटल खेल के मैदानों में धकेला जा रहा है मैं विशेष रूप से प्रत्येक माता-पिता से यह सुनिश्चित करने के लिए कहूंगा कि इस छोटी प्लास्टिक स्क्रीन के कारण बच्चे वास्तविक खेल के मैदानों से वंचित न रहें। आइए सुनिश्चित करें कि यह डिजिटल जुनून बच्चों को वास्तविक खेल के मैदान के रोमांच, भावना और ज्ञान से वंचित न कर दे।’’
धनखड़ ने जीवन में खेल के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि खेल बोली और शब्दकोश से परे एक भाषा है।
उन्होंने कहा कि खेल एक सार्वभौमिक भाषा है जिसके पास सभी तरह की बाधाओं को तोड़ने की क्षमता है।
उन्होंने कहा, ‘‘मानवता द्वारा परिभाषित सभी सीमाएं, संकीर्ण सोच वाले स्थान खेल से दूर हो जाते हैं। खेल विशिष्ट रूप से मानव मन को शक्ति प्रदान करते हैं और जब बात विशेष रूप से सक्षम बच्चों, लड़कों और लड़कियों और बुजुर्ग लोगों से संबंधित खेल की होती है तो यह आशा की एक नयी रोशनी पैदा करती है।’’
उन्होंने कहा कि खेल को अब पढाई से अलग गतिविधि के रूप में नहीं देखा जाता है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह शिक्षा और जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है, चरित्र निर्माण का माध्यम है, एकता को बढ़ावा देता है और हमें राष्ट्रीय गौरव से भर देता है।’’
भाषा आनन्द