अनुसूचित जनजातियों का सर्वांगीण विकास ही बिरसा मुंडा को राष्ट्र की सच्ची श्रद्धांजलि होगी : राष्ट्रपति
आशीष रंजन
- 15 Nov 2024, 09:27 PM
- Updated: 09:27 PM
नयी दिल्ली, 15 नवंबर (भाषा) बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती को ‘‘जनजातीय गौरव दिवस’’ के रूप में मनाये जाने के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के सर्वांगीण विकास के लिए अथक प्रयास करना ही राष्ट्र की ओर से इस आदिवासी नायक और जनजातीय क्षेत्रों के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि है।
इस अवसर पर मुर्मू ने एक लेख भी लिखा, जिसमें उन्होंने इतिहास के ‘‘गुमनाम नायकों’’ को श्रद्धांजलि दी।
संसद परिसर में बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि अनुसूचित जनजाति समुदायों के सर्वांगीण विकास के लिए अथक प्रयास करना ही राष्ट्र की ओर से भगवान बिरसा मुंडा और आदिवासी क्षेत्रों के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को दी जाने वाली सच्ची श्रद्धांजलि है।’’
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यह मेरे लिए अत्यंत संतोष की बात है कि राष्ट्रपति भवन ने भी अनुसूचित जनजाति समुदायों तक पहुंच बनाने के लिए नयी पहल की है।’’
राष्ट्रपति कार्यालय द्वारा ‘एक्स’ पर साझा किए गए ‘‘भगवान बिरसा मुंडा 150 वर्ष: जनजातीय गौरव की भावना का जश्न’’ शीर्षक वाले लेख में मुर्मू ने कहा कि एक समय था जब बिरसा मुंडा और अन्य का नाम इतिहास के ‘‘गुमनाम नायकों’’ में लिया जाता था।
उन्होंने कहा कि हालांकि हालिया समय में बिरसा मुंडा की वीरता और बलिदान को सही मायनों में सराहा जाने लगा है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान, हमने भारत की संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास का जश्न मनाया, जिससे लोगों, विशेषकर युवाओं को महान देशभक्तों के वीरतापूर्ण योगदान के बारे में अधिक जानने में मदद मिली, जिनके बारे में पहले कम ही लोग जानते थे।’’
उन्होंने कहा कि इतिहास के साथ इस नए जुड़ाव को तब बल मिला जब सरकार ने 2021 में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को याद करने के लिए 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि बिरसा मुंडा की विरासत का स्मरण करने से लंबे समय से उपेक्षित जनजातीय विमर्श देश के इतिहास के केंद्र में आ गया है।
उन्होंने कहा कि यह आज और भी अधिक प्रासंगिक है, क्योंकि यह आधुनिक विश्व को प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने और पारिस्थितिकी को संरक्षित करने का महत्वपूर्ण सबक सिखाता है।
मुर्मू ने कहा, ‘‘जब मैं बच्ची थी, तो मैं अपने पिता को ईंधन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सूखी लकड़ियों को काटने के लिए भी माफी मांगते हुए देखती थी। आम तौर पर, आदिवासी समाज संतुष्ट रहता है, क्योंकि वे व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं की तुलना में सामूहिक भलाई को अधिक महत्व देते हैं।’’
राष्ट्रपति ने कहा कि मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए आदिवासी समाज की इस विशिष्ट विशेषता को पोषित किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने में आदिवासी समुदायों के महत्व को उचित मान्यता देने के लिए पिछले दशक के दौरान शुरू किए गए सरकार के व्यापक प्रयास के पीछे यही सटीक कारण है। सरकार ने कल्याण को नारों से आगे ले जाने के उद्देश्य से कई कार्यक्रमों और योजनाओं की घोषणा की है।’’
उन्होंने कहा कि आदिवासी कल्याण के लिए अधिक समग्र दृष्टिकोण के संबंध में, लगभग 63,000 आदिवासी गांवों में सामाजिक बुनियादी ढांचे की कमी को पूरा करने के लिए पिछले महीने धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान शुरू किया गया।
मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में 75 विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों (पीवीटीजी) के प्रतिनिधियों के साथ अपनी व्यापक बातचीत को ‘‘शानदार अनुभव’’ के रूप में याद किया।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘उन्होंने मेरे साथ अपने सुख-दुख साझा किए। यदि कोई एक उपलब्धि है जिस पर मुझे गर्व है, तो वह यह है कि हमारे आदिवासी भाई-बहन मुझे सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन होते हुए देख रहे हैं, जो हम सभी के लिए एक अभूतपूर्व मान्यता है।’’
राष्ट्रपति ने यह भी याद किया कि कैसे बचपन में भगवान बिरसा मुंडा की गाथा सुनकर उन्हें और उनके दोस्तों को अपनी विरासत पर गर्व महसूस होता था।
उन्होंने कहा, ‘‘केवल 25 साल के छोटे से जीवन में, आज के झारखंड के उलीहातु का यह लड़का औपनिवेशिक शोषण के खिलाफ लोगों के प्रतिरोध का नायक बन गया।’’
मुर्मू ने कहा कि धरती आबा के रूप में जाने जाने वाले बिरसा मुंडा ने 1890 के दशक के अंत में ब्रिटिश उत्पीड़न के खिलाफ ‘‘उलगुलान’’ या मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया था।
उन्होंने कहा कि उलगुलान एक विद्रोह से कहीं अधिक था। राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘यह न्याय और सांस्कृतिक पहचान दोनों के लिए लड़ाई थी। बिरसा मुंडा की सूक्ष्म समझ ने एक ओर आदिवासी लोगों को बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी भूमि पर स्वामित्व और खेती करने के अधिकार को एक साथ लाया, तो दूसरी ओर आदिवासी रीति-रिवाजों और सामाजिक मूल्यों के महत्व को भी सामने रखा। महात्मा गांधी की तरह, उनका संघर्ष न्याय और सत्य की खोज से प्रेरित था।’’
उन्होंने कहा कि बिरसा मुंडा के बलिदान की गाथा भारत के आदिवासी समुदायों से उत्पन्न महान क्रांतिकारियों के इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी है।
भाषा आशीष