सोशल मीडिया से युवाओं को नुकसान पहुंचने के विश्वसनीय प्रमाण हैं- इस पर बहस का औचित्य नहीं
सिम्मी माधव
- 15 Nov 2024, 05:21 PM
- Updated: 05:21 PM
(डैनियल आइंस्टीन-एडजंक्ट फेलो, स्कूल ऑफ साइकोलॉजिकल साइंसेज, मैक्वेरी यूनिवर्सिटी)
सिडनी, 15 नवंबर (द कन्वरसेशन) ऑस्ट्रेलिया सरकार एक ऐसा कानून बना रही है जो 16 साल से कम उम्र के बच्चों द्वारा सोशल मीडिया इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाएगा। इस बात पर व्यापक पैमाने पर सार्वजनिक बहस जारी है कि क्या इस विनियमन को लागू करने के लिए सोशल मीडिया के नुकसान संबंधी पर्याप्त प्रत्यक्ष सबूत हैं।
इस बहस में शिक्षाविद, मानसिक स्वास्थ्य संगठन, समर्थन करने वाले समूह और डिजिटल शिक्षा प्रदाता शामिल हैं। आइए एक कदम पीछे हटकर पूरे शोध परिदृश्य पर नजर डालें।
सोशल मीडिया रोजमर्रा की जिंदगी का अभिन्न अंग बन गया है। बहुत से किशोर व्यापक शोध नहीं चाहते हैं इसलिए ये अध्ययन हस्तक्षेप करने वाले होते हैं, इनके लिए सहमति की आवश्यकता होती है और इनके निष्कर्ष सीमित होते हैं। नतीजतन, हम अक्सर सुनते हैं कि सोशल मीडिया के प्रभाव कम या अनिर्णायक हैं।
आम लोगों के लिए यह समझना बहुत जरूरी है कि सभी शोध अध्ययनों की अपनी सीमाएं होती हैं और उनकी उसी संदर्भ में व्याख्या की जानी चाहिए जिसमें डेटा एकत्र किया गया था। किसी भी रिपोर्ट को समझने के लिए हमें विवरणों की जांच करनी चाहिए।
कई तंत्र काम कर रहे हैं
हाल के वर्षों में, बच्चों और युवाओं में चिंता एवं घबराहट की समस्या बढ़ रही है। यह समझना आसान काम नहीं है कि युवा चिंतित या उदास क्यों है या वे खुद पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित क्यों करते हैं।
जब सोशल मीडिया के संभावित नकारात्मक प्रभाव की बात आती है, तो कई तंत्र काम कर रहे हैं। उन्हें समझने के लिए कई पहलुओं संबंधी डेटा की आवश्यकता होती है: ऑनलाइन रहते हुए मूड की समीक्षा करना, कई वर्षों तक मानसिक स्वास्थ्य की जांच करना, स्कूल के रिश्ते, यहां तक कि मस्तिष्क की जांच- कुछ पहलू हैं।
त्रुटि की कई गुंजाइशों के बावजूद यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि शोधकर्ताओं के बीच इस बात को लेकर जोरदार बहस जारी है कि सोशल मीडिया से कितना नुकसान हो रहा है। अध्ययन की सीमाएं होना तो आम बात हैं। इससे भी बुरी बात यह है कि शोधकर्ताओं को सोशल मीडिया कंपनियों के डेटा तक अक्सर पूरी पहुंच नहीं दी जाती।
इसलिए हमें प्रौद्योगिकी जगत के उन बड़े ‘व्हिस्लब्लोअर’ पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है, जिनकी पहुंच अंदर तक है।
इन प्रौद्योगिकी कंपनियों के पास डेटा तक पहुंच है। वे इसका इस्तेमाल मानव स्वभाव का शोषण करने के लिए करती हैं।
शोधकर्ताओं के बीच बहस पर ध्यान केंद्रित करने का कोई औचित्य नहीं है। यह प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग युवाओं के लिए हानिकारक हो सकता है।
साक्ष्य क्या दर्शाते हैं
एक तर्क आप अक्सर सुन सकते हैं कि यह स्पष्ट नहीं है कि अवसाद और चिंता के कारण लोग स्क्रीन पर अधिक समय बिताते हैं या स्क्रीन पर अधिक समय अवसाद और चिंता का कारण बनता है। किसी भी परिस्थिति में यह नुकसानदेह है इसलिए इन संभावित नुकसानों को नजरअंदाज करने का कोई कारण नहीं है।
सोशल मीडिया के उपयोग के नुकसान अध्ययनों में दिखाए गए हैं। सोशल मीडिया ईर्ष्या, तुलना और छूट जाने के डर या ‘फोमो’ को बढ़ाता है। कई किशोर सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए काम टालते हैं।
इन तंत्रों के माध्यम से ही अवसाद, चिंता, आत्मसम्मान में कमी के संबंध स्पष्ट होते हैं।
अंतत: 16 वर्ष की आयु तक सोशल मीडिया पर अधिक समय व्यतीत करना दिखावे और स्कूल के काम से कम संतुष्टि से जुड़ा है।
इस बात के भी विश्वसनीय प्रमाण हैं कि सोशल मीडिया के उपयोग को सीमित करने से 17-25 वर्ष के किशोरों एवं युवाओं में चिंता, अवसाद और ‘फोमो’ के स्तर में कमी आती है।
हम अपने जोखिम पर इस सबूत को अनदेखा करते हैं।
साक्ष्य पर्याप्त हैं
आधुनिक जीवन का हर पहलू मानसिक स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है, इसकी पेचीदगियों को समझने में लंबा समय लगेगा। यह काम मुश्किल है, खासकर तब जब स्क्रीन पर बिताए जाने वाले समय की जानकारी रखने वाली प्रौद्योगिकी कंपनियों से मिलने वाले विश्वसनीय डेटा की कमी हो।
इसके बावजूद पहले से ही पर्याप्त विश्वसनीय सबूत मौजूद हैं जो बताते हैं कि बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग को उनकी भलाई के लिए सीमित करना आवश्यक है।
शोध की बारीकियों और नुकसान के स्तरों पर बहस करने के बजाय, हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि युवाओं के लिए सोशल मीडिया का उपयोग उनके विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।
वास्तव में, बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर सरकार द्वारा प्रस्तावित प्रतिबंध स्कूल में फोन पर प्रतिबंध लगाने के समान है। कुछ आलोचकों ने 2018 में तर्क दिया था कि ‘‘स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाने से बच्चों को वह ज्ञान प्राप्त होना बंद हो जाएगा जो ऑनलाइन काम करते समय उनके लिए आवश्यक है।’’
लेकिन सबूत दिखाते हैं कि स्कूल में स्मार्टफोन पर प्रतिबंध लगाने से मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता कम हुई है और शैक्षणिक सुधार हुआ है।
अब इस बात पर सहमत होने का समय आ गया है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल हमारे समुदाय को नुकसान पहुंचा रहा है और हमें युवाओं द्वारा इसके उपयोग को लेकर सख्त एवं उचित विनियमन की आवश्यकता है।
द कन्वरसेशन
सिम्मी