झारखंड विधानसभा में नियुक्तियों में कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच के आदेश पर न्यायालय ने रोक लगाई
संतोष रंजन
- 14 Nov 2024, 07:04 PM
- Updated: 07:04 PM
नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राज्य विधानसभा में की गई नियुक्तियों और पदोन्नति में कथित अनियमितताओं की सीबीआई जांच कराने के झारखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी।
न्यायमूर्ति बी आर गवई एवं न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ शीर्ष अदालत के 23 सितंबर के फैसले को चुनौती देने वाली झारखंड विधानसभा और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गई।
अधिवक्ता तूलिका मुखर्जी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को किसी आपराधिक या संज्ञेय अपराध के अभाव में इस मुद्दे की जांच करने का निर्देश देकर गलती की है।
इसमें कहा गया, ‘‘इस बात के बिना किसी ठोस और विश्वसनीय कारण के कि राज्य-जांच एजेंसी कथित अनियमितता या अवैधता की जांच करने के लिए उपयुक्त नहीं है, उच्च न्यायालय ने सीबीआई को पहली जांच एजेंसी के रूप में जांच करने का निर्देश देकर गलती की।’’
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा मामले में कोई प्राथमिकी या कोई संज्ञेय अपराध नहीं है, जिसके आधार पर मामला बनाया जा सके।
इसमें दावा किया गया कि ‘‘पैसे के आदान-प्रदान का कोई सबूत नहीं है, पैसे के लेन-देन का कोई साक्ष्य नहीं है, धोखाधड़ी का कोई सबूत नहीं है और कोई आपराधिक मामला नहीं बनाया जा सकता है।’’
याचिका में कहा गया है कि झारखंड विधानसभा सचिवालय (भर्ती एवं सेवा शर्तें नियम, 2003) 10 मार्च 2003 को अस्तित्व में आया।
इसमें कहा गया कि विधानसभा सचिवालय और विधानसभा समितियों के काम को पूरा करने के लिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई।
इसमें यह भी कहा गया है कि समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करने, प्रवेश पत्र जारी करने, परीक्षा और साक्षात्कार आयोजित करने (जहां भी आवश्यक हो) सहित अन्य उचित कदम उठाए गए और उसके बाद ही कर्मचारियों की भर्ती की गई।
याचिका में कहा गया, ‘‘ तदनुसार वर्ष 2003-2007 में नियुक्तियां और पदोन्नतियां की गईं। भर्ती प्रक्रिया पूरी होने के बाद कुछ लोगों ने कथित तौर पर कुछ लोगों को नियुक्ति प्रक्रिया में हुई अनियमितताओं के बारे में बात करते हुए रिकॉर्ड किया। इस असत्यापित ‘आवाज की रिकॉर्डिंग’ को एक कॉम्पैक्ट डिस्क में बदल दिया गया और झारखंड विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
इसमें कहा गया है कि अक्टूबर 2007 में असत्यापित ‘आवाज की रिकॉर्डिंग’ से उत्पन्न मामले की जांच के लिए पांच सदस्यों वाली एक समिति गठित की गई थी।
याचिका में कहा गया है कि समिति की सिफारिश अगस्त 2008 में झारखंड विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष पेश की गई थी, जिसका समिति के ही दो सदस्यों ने विरोध किया था।
बाद में कहा गया, कैबिनेट सचिवालय और सतर्कता विभाग (संसदीय मामले) ने जुलाई 2014 में एक अधिसूचना जारी की और झारखंड विधानसभा में कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए झारखंड उच्च न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त किया।
इसमें कहा गया है कि पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले आयोग द्वारा 12 जुलाई, 2018 को तत्कालीन राज्यपाल के समक्ष एक रिपोर्ट प्रस्तुत की गई थी जिसमें 30 संदर्भ बिंदुओं पर सिफारिशें की गई थीं।
याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय इस बात को समझने में विफल रहा कि आयोग की रिपोर्ट राज्य सरकार को कभी नहीं बताई गई, जैसा कि जांच आयोग अधिनियम, 1952 के तहत अपेक्षित है।
भाषा संतोष