कानून का शासन सरकार की शक्ति के खिलाफ नागरिकों की सुरक्षा के लिए व्यापक अवधारणा: न्यायालय
सुभाष अविनाश
- 13 Nov 2024, 09:24 PM
- Updated: 09:24 PM
नयी दिल्ली, 13 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि सरकार की शक्ति के खिलाफ नागरिकों की सुरक्षा के लिए ‘‘कानून का शासन’’ एक व्यापक अवधारणा है और यह लोकतंत्र एवं सुशासन के लिए आवश्यक है।
संपत्तियों को ढहाने पर देशभर के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करते हुए न्यायालय ने कहा कि कानून का शासन यह सुनिश्चित करता है कि सरकार और उसके प्राधिकारियों की कार्रवाई मनमाने विवेक के बजाय स्थापित कानूनी सिद्धांतों के अनुरूप हो।
न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन की पीठ ने अपने 95 पन्नों के फैसले में कहा, ‘‘संवैधानिक लोकतंत्र की रक्षा के लिए कानून के शासन के सिद्धांत का संरक्षण और नागरिक अधिकारों और नागरिकों की स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है।’’
पीठ ने कहा कि कानून न्यायसंगत और निष्पक्ष होना चाहिए तथा समाज के सभी सदस्यों के मानवाधिकारों और सम्मान की रक्षा होनी चाहिए।
न्यायालय ने कहा, ‘‘साथ ही, कानून के शासन का अनिवार्य उद्देश्य सरकार की शक्तियों के दुरुपयोग को रोकना है। कानून का शासन नागरिकों को सरकार की शक्ति से बचाने के लिए एक व्यापक अवधारणा है। यह लोकतंत्र और सुशासन का अभिन्न हिस्सा है तथा उनके लिए आवश्यक है।’’
न्यायालय ने कहा कि यह स्थापित तथ्य है कि कानून के शासन को सरकार की शक्ति के मनमाने इस्तेमाल के खिलाफ सुरक्षा के रूप में वर्णित किया गया है।
पीठ ने कहा, ‘‘जब भी नागरिकों ने, तोड़फोड़ करने या खतरा उत्पन्न करने के लिए कानून को तोड़ा है, न्यायालय ने सरकार पर इन हमलों को रोकने का दायित्व डाला है।’’
पीठ ने कहा कि यह दायित्व कानून व्यवस्था बनाए रखने तथा नागरिकों को गैरकानूनी कार्रवाइयों से संरक्षित करने की सरकार की जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इन दायित्वों को निभाने में विफलता न्याय प्रणाली में जनता के विश्वास को खत्म कर सकती है, जिससे ऐसा माहौल बन सकता है, जहां कानून के शासन से समझौता करके अराजकता पैदा की जा सकती है।’’
पीठ ने कहा कि संवैधानिक कानून, आपराधिक कानून और प्रक्रियाएं कानून के शासन के पहलू हैं तथा इस प्रकार, शासन द्वारा शक्तियों के प्रयोग को विनियमित करने का काम करती हैं।
शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती। उसने कहा कि यदि प्राधिकारी न्यायाधीश के रूप में काम करते हैं और किसी नागरिक के आरोपी होने के आधार पर उसका घर ढहाते हैं तो यह ‘‘शक्तियों के पृथक्करण’’ के सिद्धांत का उल्लंघन है।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि ऐसे मामलों में कानून को अपने हाथ में लेने वाले सरकारी अधिकारियों को इस तरह की दमनात्मक कार्रवाइयों के लिए जवाबदेह बनाया जाना चाहिए।’’
न्यायालय ने संविधान के तहत, आरोपी के अधिकारों का भी उल्लेख किया।
पीठ ने कहा कि यहां तक कि आरोपी या दोषी को भी संवैधानिक प्रावधानों और आपराधिक कानून के तहत कुछ अधिकार व सुरक्षा प्राप्त हैं।
इसने कहा कि सरकार और उसके अधिकारी कानून की वाजिब प्रक्रिया का पालन किये बिना आरोपी या यहां तक कि दोषियों के खिलाफ मनमाना और कठोर कार्रवाई नहीं कर सकते।
पीठ ने कहा, ‘‘इसके साथ ही, यदि सरकार के किसी भी अधिकारी ने अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है या पूरी तरह से मनमाने या दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्रवाई की है, तो उसे शक्तियों के ऐसे अवैध, मनमाने, दुर्भावनापूर्ण प्रयोग के लिए बख्शा नहीं जा सकता।’’
भाषा सुभाष