न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त
आशीष नरेश
- 10 Nov 2024, 08:16 PM
- Updated: 08:16 PM
नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ का भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के रूप में कार्यकाल रविवार को पूरा हो गया। दो साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए और महत्वपूर्ण सुधार किए तथा भारतीय न्यायिक इतिहास में एक अनूठी विरासत स्थापित की।
उन्होंने अयोध्या भूमि विवाद, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और सहमति से बनाए गए समलैंगिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने जैसे कई ऐतिहासिक फैसले दिए जिन्होंने समाज और राजनीति को आकार दिया। वह उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में अपने आठ साल के कार्यकाल के दौरान 38 संविधान पीठों का हिस्सा रहे।
उच्चतम न्यायालय में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 500 से अधिक फैसले सुनाए, जिनमें से कुछ का समाज और कानूनी क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा। भारत के 50वें प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को कई सारगर्भित बयानों के लिए भी जाना जाता है।
न केवल न्यायिक पक्ष में बल्कि प्रशासनिक पक्ष में भी सीजेआई चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका में विभिन्न सुधारों का नेतृत्व करते हुए अपनी छाप छोड़ी। उन्होंने न्यायालयों को आम आदमी के लिए सुलभ और दिव्यांगों के अनुकूल बनाने को लेकर उच्चतम न्यायालय के सुगमता ऑडिट का आदेश दिया।
चंद्रचूड़ की विरासत का एक भौतिक स्वरूप भी है-एक नयी कल्पना के अनुरूप ‘न्याय की देवी’।
पहले, ‘न्याय की देवी’ यूनानी परिधान में हुआ करती थी, जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी थी। उसकी जगह छह फुट ऊंची नयी प्रतिमा स्थापित की गई, जिसके एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार की जगह संविधान है। साड़ी पहनी हुई ‘न्याय की देवी’ की नयी प्रतिमा के सिर पर मुकुट है और आंखों पर पट्टी नहीं बंधी हुई है।
उन्होंने न्यायालय के ग्रीष्मकालीन अवकाश को ‘‘आंशिक न्यायालय कार्य दिवस’’ के रूप में नया नाम दिया। ग्रीष्मकालीन अवकाश की इस बात को लेकर आलोचना की जा रही थी कि शीर्ष अदालत के न्यायाधीश लंबी छुट्टी पर रहते हैं।
निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश के पिता वाई वी चंद्रचूड़ भी प्रधान न्यायाधीश (1978 से 1985) रहे थे, जो इस पद पर सबसे लंबा कार्यकाल था। यह उच्चतम न्यायालय में सर्वोच्च पद पर पिता और पुत्र के आसीन रहने का एकमात्र उदाहरण है।
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज एवं दिल्ली विश्ववविद्यालय (डीयू) के कैंपस लॉ सेंटर से पढ़ाई करने वाले तथा फिर हार्वर्ड लॉ स्कूल से एलएलएम और डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले डी वाई चंद्रचूड़ नौ नवंबर 2022 को प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किये गए थे।
उनके द्वारा लिखे गए फैसलों की फेहरिस्त लंबी है और इसमें कानून के लगभग सभी पहलू शामिल हैं।
उनके द्वारा सुनाये गए फैसलों में व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा और न्याय प्रदान करने के लिए न्यायपालिका की प्रतिबद्धता स्थापित करना, निजता को शामिल करने के लिए मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार करना और चुनावी बॉण्ड योजना को अमान्य करना शामिल है।
वह पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा सुनाये गए उस ऐतिहासिक फैसले का हिस्सा थे, जिसने ‘पैसिव यूथेंसिया’ के लिए, असाध्य रोगों से पीड़ित मरीज द्वारा तैयार ‘लिविंग विल’ को मान्यता दी।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ कई संविधान पीठों का हिस्सा रहे और उन्होंने अयोध्या भूमि विवाद सहित कई ऐतिहासिक फैसले लिखे। उन्होंने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में, 2019 में आया सर्वसम्मति वाला फैसला लिखा था।
अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में (निवर्तमान) प्रधान न्यायाधीश ने एक सार्वजनिक समारोह में यह कहकर एक और विवाद खड़ा कर दिया कि वह ध्रुवीकरण विवाद के समाधान के लिए ‘‘देवता’’ से प्रार्थना करते हैं। उनकी इस टिप्पणी पर राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं सहित विभिन्न वर्गों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
चंद्रचूड़ हाल में उस वक्त भी चर्चा में आ गए जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उनके घर पर गणेश पूजा में शामिल हुए थे।
निवर्तमान प्रधान न्यायाधीश ने वह प्रमुख निर्णय भी लिखा था, जिसने सर्वसम्मति से 2019 में, अनुच्छेद 370 को हटाने को बरकरार रखा था। यह अनुच्छेद पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करता था।
इसके अलावा, वह उस पीठ का भी हिस्सा थे, जिसने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय दिया था और तथाकथित अप्राकृतिक यौन संबंधों (अप्राकृतिक शारीरिक संबंध) पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 को आंशिक रूप से निरस्त कर दिया था।
वह उच्चतम न्यायालय के नौ न्यायाधीशों की उस पीठ का भी हिस्सा थे और सर्वसम्मति से दिये गए फैसले के प्रमुख लेखक थे, जिसने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) के तहत निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया।
प्रधान न्यायाधीश ने महत्वपूर्ण प्रशासनिक सुधारों में अग्रणी भूमिका निभाई, जिनमें अदालती रिकॉर्ड का डिजिटाइजेशन भी शामिल है।
उन्होंने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम के दायरे और संबद्ध नियमों का भी विस्तार किया, जिसका उद्देश्य 20 से 24 हफ्तों के गर्भ को गिराने के लिए अविवाहित महिलाओं और यहां तक कि ट्रांसजेंडर को शामिल करना था।
तेरह मई 2016 को शीर्ष अदालत में पदोन्नत हुए चंद्रचूड़ का जन्म 11 नवंबर 1959 को हुआ था। वह 29 मार्च 2000 से 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश नियुक्त होने तक बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे।
इससे पहले, उन्हें जून 1998 में बंबई उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित किया गया था और न्यायाधीश के रूप में उनकी नियुक्ति होने तक उसी वर्ष अतिरिक्त महाधिवक्ता बने थे।
चंद्रचूड़ क्रिकेट के प्रति अपने प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं। बताया जाता है कि वह लुटियंस दिल्ली में अपने पिता को आवंटित बंगले के पीछे खेला करते थे।
भाषा आशीष