उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में अपशिष्ट बहाये जाने से जल की गुणवत्ता हो रही खराब: एनजीटी
अमित माधव
- 09 Nov 2024, 05:51 PM
- Updated: 05:51 PM
नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने कहा है कि अपशिष्ट या दूषित पानी बहाये जाने के कारण उत्तर प्रदेश में गंगा नदी में जल की गुणवत्ता खराब हो रही है।
इससे पहले, गंगा में प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण पर विचार करते हुए, हरित अधिकरण ने उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से अनुपालन रिपोर्ट मांगी थी।
छह नवंबर के आदेश में, एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज जिले में मलजल शोधन में 128 एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) का अंतर है।
पीठ ने कहा कि इसके अलावा, 25 नालों से जिले में गंगा नदी में बिना शोधित मलजल गिरता है तथा 15 नालों से बिना शोधित मलजल यमुना नदी में बहता है। पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए सेंथिल वेल भी शामिल हैं।
अधिकरण ने कहा, ‘‘हमने पाया है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 22 अक्टूबर की रिपोर्ट में बताए गए 326 नालों में से 247 नाले (राज्य में) बिना शोधित हैं और उनसे 3,513.16 एमएलडी मलजल गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में गिर रहा है।’’
एनजीटी ने असंतोष जताते हुए राज्य के मुख्य सचिव को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें विभिन्न जिलों में प्रत्येक नाले, उनसे उत्पन्न सीवेज, उस सीवेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) के बारे में जानकारी हो, जिनसे उन्हें जोड़ने का प्रस्ताव किया गया था और उसमें एसटीपी को क्रियाशील बनाने की समयसीमा बताई गई हो।
पीठ ने कहा, ‘‘हलफनामे में उन अल्पकालिक उपायों का भी उल्लेख किया जाए जो एसटीपी के पूरी तरह कार्यात्मक होने और 100 प्रतिशत घरेलू कनेक्टिविटी हासिल होने तक प्रत्येक जिले और नाले के संबंध में नदी में बिना शोधित सीवेज बहाने से रोकने के लिए अपनाए जाएंगे।’’
इसने सीपीसीबी की रिपोर्ट पर भी संज्ञान लिया, जिसमें गंगा किनारे के 16 शहरों में 41 एसटीपी की स्थिति का उल्लेख किया गया था। इसमें कहा गया था कि छह संयंत्र गैर-परिचालित हैं और 35 परिचालित एसटीपी में से केवल एक के मामले में नियमों का अनुपालन किया गया है।
अधिकरण ने कहा, ‘‘हमने यह भी पाया कि 41 स्थानों पर पानी की गुणवत्ता की निगरानी से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि मलीय कोलीफॉर्म (एफसी) 16 स्थानों पर 500/100 मिलीलीटर की सबसे संभावित संख्या (एमपीएन) से अधिक है और 17 स्थानों पर 2,500 एमपीएन/100 मिलीलीटर से अधिक है। इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से इस तथ्य का खुलासा करता है कि गंगा नदी में सीवेज या मलमल छोड़े जाने के कारण पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है।’’
सीपीसीबी के अनुसार, मलीय कोलीफॉर्म का वांछनीय स्तर एमपीएन 500/100 मिलीलीटर है। मलीय कोलीफॉर्म मनुष्यों और जानवरों के मल से निकलने वाले सूक्ष्मजीव होते हैं।
अधिकरण ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को एसटीपी को क्रियाशील बनाने के लिए उठाए गए या प्रस्तावित कदमों की जानकारी देने और यह सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया कि सभी संयंत्र निर्दिष्ट मानदंडों का अनुपालन करें। उसने कहा कि हलफनामा चार सप्ताह के भीतर दाखिल करना होगा।
अधिकरण ने मामले की अगली सुनवायी की तिथि 20 जनवरी निर्धारित की।
भाषा
अमित