विशेष दर्जा बहाली प्रस्ताव पारित होने पर जम्मू-कश्मीर के लोगों को उनकी आवाज मिल गई: उमर अब्दुल्ला
सिम्मी पवनेश
- 08 Nov 2024, 07:24 PM
- Updated: 07:24 PM
श्रीनगर, आठ नवंबर (भाषा) जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को दावा किया कि पूर्ववर्ती राज्य के विशेष दर्जे की बहाली संबंधी प्रस्ताव पारित होने के बाद केंद्रशासित प्रदेश के लोगों को ‘‘उनकी आवाज मिल’’ गई है और ऐसा लगता है कि ‘‘उनके कंधों से बोझ उतर गया है।’’
अब्दुल्ला ने उपराज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पेश किए जाने के दौरान कहा, ‘‘नव निर्वाचित जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला सत्र अवधि के हिसाब से छोटा है, लेकिन एजेंडे के लिहाज से ऐतिहासिक है।’’
नयी विधानसभा का पहला सत्र सोमवार को शुरू हुआ था और उपराज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पारित होने के साथ ही सदन शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया। विधानसभा अध्यक्ष अब्दुल रहीम राठेर ने सदन को अनिश्चितकाल तक स्थगित किया।
बुधवार से ही विधानसभा में अराजक दृश्य देखने को मिले, जिससे सदन की कार्यवाही बाधित हुई।
अब्दुल्ला ने कहा कि जब वह पिछली बार सदन में बोले थे तब जम्मू-कश्मीर एक राज्य था और देश में इसका विशेष स्थान एवं दर्जा था।
उन्होंने पांच अगस्त 2019 के घटनाक्रम का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, ‘‘यह सब छीन लिया गया है।’’
अनुच्छेद 370 के तहत दिया गया विशेष दर्जा पांच अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया गया था और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों - जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया गया था।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा का पहला सत्र ’’अवधि की दृष्टि से छोटा लेकिन एजेंडे के लिहाज से ऐतिहासिक है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सदन में इस तरह बोलने का मौका लंबे समय बाद मिला है। मैंने मार्च 2014 में मुख्यमंत्री के तौर पर राज्यपाल के अभिभाषण पर और 2018 में विपक्ष के तौर पर बात की थी। तब से अब तक बहुत कुछ बदल गया है और हमने बहुत कुछ खो दिया है।’’
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘जब मैं इस बारे में सोचता हूं तो मुझे यकीन नहीं होता।’’
पूर्ववर्ती राज्य का विशेष दर्जा बहाल करने के लिए संवैधानिक तंत्र तैयार करने की केंद्र से मांग करने वाले प्रस्ताव के पारित होने का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘मुझे खुशी है कि इसके पारित होने के बाद लोगों को उनकी आवाज मिल गई है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमें घुटन महसूस हो रही थी और हमें लग रहा था कि हम अपनी बात नहीं रख पाएंगे। ऐसा लगता है कि लोगों के कंधों से बोझ उतर गया है। मैंने ऐसे लोगों को देखा है जो अपनी कलम और कीबोर्ड भूल गए थे, लेकिन अब उनमें फिर से विश्वास लौट रहा है। वे अपनी बात कहने के लिए स्वतंत्र महसूस कर रहे हैं।’’
अब्दुल्ला ने कहा, ‘‘हमने जो खोया है, उसका मुझे अफसोस तो रहेगा, लेकिन मुझे खुशी है कि मुझमें यह उत्साह है कि अल्लाह ने मेरे लिए जो भी समय तय किया है, मैं उसका एक दिन भी बर्बाद नहीं करूंगा। मैं लोगों की सेवा करूंगा।’’
भाषा सिम्मी