जरूरतमंदों की सेवा करने से बड़ा कोई एहसास नहीं : प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़
देवेंद्र अविनाश
- 08 Nov 2024, 07:28 PM
- Updated: 07:28 PM
(तस्वीरों के साथ)
नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने भारतीय न्यायपालिका के 50वें प्रमुख के रूप में शुक्रवार को अपने अंतिम कार्य दिवस पर कहा कि जरूरतमंदों और उन लोगों की सेवा करने से बड़ा कोई एहसास नहीं है, जिन्हें वह नहीं जानते थे या जिनसे कभी नहीं मिले थे।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने चार न्यायाधीशों की रस्मी पीठ की अध्यक्षता की। इस पीठ में मनोनीत प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और मनोज मिश्रा भी शामिल थे। यह पीठ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को विदाई देने के लिए बैठी थी।
प्रधान न्यायाधीश ने न केवल अपने कार्य बल्कि देश की सेवा करने का मौका मिलने के लिए भी संतुष्टि व्यक्त की।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के पिता वाई वी चंद्रचूड़ लंबे समय तक (1978 से 1985) प्रधान न्यायाधीश रहे थे।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ नौ नवंबर, 2022 को प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किये गए थे। वह 10 नवंबर (रविवार) को पदमुक्त हो जायेंगे।
भारत के न्यायिक इतिहास के इस महत्वपूर्ण मौके पर मनोनीत प्रधान न्यायाधीश खन्ना और अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल, ‘सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन’ (एससीबीए) के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के योगदान की सराहना की।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इस मौके पर कहा, ‘‘आपने मुझसे पूछा कि मुझे कौन सी बात आगे बढ़ाती है। यह अदालत ही है जिसने मुझे आगे बढ़ाया है, क्योंकि ऐसा एक भी दिन नहीं है जब आपको यह लगा कि आपने कुछ नहीं सीखा है या आपको समाज की सेवा करने का मौका नहीं मिला है।’’
भावुक प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जरूरतमंदों और उन लोगों की सेवा करने से बड़ा कोई एहसास नहीं है, जिनसे आप कभी नहीं मिल पाएंगे, जिन्हें आप संभवतः जानते भी नहीं हैं।’’
अपने संबोधन में प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने एक युवा विधि छात्र के रूप में न्यायालय की अंतिम पंक्ति में बैठने से लेकर शीर्ष न्यायालय के गलियारों तक के अपने सफर के बारे में बताया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं हमेशा इस न्यायालय के महान लोगों की प्रभावशाली मौजूदगी और इस पद पर बैठने के साथ आने वाली जिम्मेदारी से अवगत था। लेकिन दिन के अंत में, यह किसी व्यक्ति के बारे में नहीं है, यह संस्था और न्याय के उद्देश्य के बारे में है जिसे हम यहां बनाए रखते हैं।’’
उन्होंने अपने सहयोगियों की प्रशंसा की, विशेष रूप से न्यायमूर्ति पारदीवाला और न्यायमूर्ति मिश्रा के साथ पीठ में बिताए गए समय पर प्रकाश डाला।
प्रधान न्यायाधीश ने न्यायालय के भविष्य के प्रति भी अपना विश्वास व्यक्त किया तथा विधिक समुदाय को आश्वस्त किया कि उनके उत्तराधिकारी न्यायमूर्ति खन्ना इसी समान समर्पण और दूरदर्शिता के साथ न्यायालय का नेतृत्व करेंगे।
उन्होंने न्यायमूर्ति खन्ना को ‘‘सम्मानित और न्याय के प्रति प्रतिबद्ध" बताया।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उनकी इस यात्रा में योगदान देने वाले सभी लोगों, वरिष्ठ अधिवक्ताओं, कनिष्ठों, अधिकारियों और कर्मचारियों के प्रति आभार व्यक्त किया और स्वीकार किया कि उनमें से प्रत्येक ने कानून और जीवन के बारे में उनकी समझ को आकार देने में भूमिका निभाई।
उन्होंने अनजाने में हुई किसी भी गलती या गलतफहमी के लिए माफी मांगते हुए कहा, ‘‘यदि मैंने कभी किसी को ठेस पहुंचाई हो तो मैं आपसे क्षमा चाहता हूं।’’
न्यायमूर्ति खन्ना ने प्रधान न्यायाधीश को शुभकामनाएं देते हुए कहा, ‘‘उन्होंने मेरा काम आसान और कठिन दोनों बना दिया है। आसान इसलिए क्योंकि क्रांतियां शुरू हो गई हैं और कठिन इसलिए क्योंकि मैं उनके पास नहीं जा सकता। उनकी कमी बहुत खलेगी।’’
सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश को ‘‘एक अद्भुत पिता का अद्भुत पुत्र’’ बताया।
एससीबीए अध्यक्ष ने कहा, ‘‘मैंने इस न्यायालय में 52 वर्षों तक वकालत की है और अपने जीवन में मैंने कभी भी ऐसा असीम धैर्य वाला न्यायाधीश नहीं देखा, जैसा आप में है। डॉ. चंद्रचूड़ हमेशा मुस्कुराते रहने वाले व्यक्ति हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक इंसान और एक न्यायाधीश के तौर पर मैं आपके बारे में क्या कह सकता हूं? एक न्यायाधीश के तौर पर आपका आचरण अनुकरणीय है। कोई भी इसकी बराबरी नहीं कर सकता। आप इस देश के उन समुदायों तक पहुंचे, जिन्हें पहले कभी नहीं सुना गया था, जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया था। आप उन्हें अपने सामने लाए और दिखाया कि उनके लिए सम्मान और गरिमा का क्या मतलब है।’’
पूर्व अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने अपना अनुभव बताते हुए कहा, ‘‘जब आपके पिता ने मुझसे पूछा कि क्या मैं उन्हें (न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को) वकील बने रहने या न्यायाधीश बनने की सलाह दूं, तो मैंने कहा कि वह एक महान वकील हैं और उन्हें उसी पेशे में बने रहने दिया जाना चाहिए। लेकिन ईश्वर का शुक्र है कि आपने न्यायाधीश का पद संभाला। अगर आपने मेरी बात सुनी होती तो हम एक महान न्यायाधीश से वंचित रह जाते।’’
ग्यारह नवंबर, 1959 को जन्मे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का न्यायपालिका में विशिष्ट करियर रहा है।
चंद्रचूड़ क्रिकेट के प्रति अपने प्रेम के लिए भी जाने जाते हैं। बताया जाता है कि वह लुटियंस दिल्ली में अपने पिता को आवंटित बंगले के पीछे खेला करते थे।
उन्हें जून 1998 में बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था और 29 मार्च 2000 को बम्बई उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने से पहले उन्होंने अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में कार्य किया था। बाद में वह 31 अक्टूबर 2013 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने थे।
भाषा
देवेंद्र