रातोंरात बुलडोजर लाकर मकान नहीं गिरा सकते: शीर्ष अदालत ने उप्र सरकार से नाखुशी जताई
वैभव नरेश
- 06 Nov 2024, 05:40 PM
- Updated: 05:40 PM
नयी दिल्ली, छह नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को 2019 में अवैध तरीके से ढांचों को गिराने को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार से नाखुशी जताई और सड़कें चौड़ी करने एवं अतिक्रमण हटाने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश जारी किए।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने उत्तर प्रदेश को निर्देश दिया कि उस व्यक्ति को 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए जिसका घर 2019 में सड़क चौड़ी करने की एक परियोजना के लिए गिरा दिया गया था।
पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार के वकील से कहा, ‘‘आप ऐसा नहीं कर सकते कि बुलडोजर लेकर आएं और रातों रात भवनों को गिरा दें। आप परिवार को घर खाली करने के लिए समय नहीं देते। घर में रखे घरेलू सामान का क्या?’’
शीर्ष अदालत की पीठ ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव से कहा कि महाराजगंज जिले में मकान गिराने से संबंधित मामले में जांच कराई जाए और उचित कार्रवाई की जाए।
पीठ ने उन कदमों के बारे में भी विस्तार से बात की जो किसी राज्य को सड़क चौड़ी करने की परियोजना के संदर्भ में कार्रवाई से पहले उठाने चाहिए।
तदनुसार, शीर्ष अदालत ने राज्यों से कहा कि वे अभिलेखों या मानचित्रों के आधार पर सड़क की मौजूदा चौड़ाई का पता लगाएं तथा सर्वेक्षण करें, जिससे सड़क पर यदि कोई अतिक्रमण है तो उसका पता चल सके।
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि सड़क पर अतिक्रमण का पता चलता है तो राज्य को इसे हटाने से पहले अतिक्रमण करने वाले को नोटिस जारी करना होगा और यदि नोटिस की सत्यता और वैधता पर आपत्ति जताई जाती है तो राज्य प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए ‘स्पीकिंग ऑर्डर’ (कारण सहित आदेश) जारी करेगा।
पीठ ने कहा कि यदि आपत्ति को खारिज कर दिया जाता है तो संबंधित व्यक्ति को अतिक्रमण हटाने के लिए एक तर्कसंगत नोटिस दिया जाएगा।
पीठ ने कहा कि यदि संबंधित व्यक्ति इसका अनुपालन नहीं करता, तो सक्षम प्राधिकारी अतिक्रमण हटाने के लिए कदम उठाएंगे, जब तक कि सक्षम प्राधिकारी या अदालत के आदेश से रोक न लगाई जाए।
पीठ ने कहा कि ऐसे मामले में जहां सड़क की मौजूदा चौड़ाई, जिसमें उससे सटी राज्य की भूमि भी शामिल है, सड़क चौड़ीकरण के लिए पर्याप्त नहीं है, तो राज्य इस कार्रवाई को शुरू करने से पहले कानून के अनुसार अपनी भूमि का अधिग्रहण करने के लिए कदम उठाएगा।
इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर और अधिवक्ता शुभम कुलश्रेष्ठ पक्ष रख रहे थे। अदालत ने उनका पक्ष सुनते हुए कहा, ‘‘यह स्पष्ट है कि मकान गिराने की प्रक्रिया पूरी तरह मनमानी थी और कानून का पालन किए बिना इसे अंजाम दिया गया।’’
सुनवाई के दौरान पीठ को संबंधित क्षेत्र में 123 ढांचों को गिराए जाने के बारे में सूचित किया गया।
पीठ ने कहा कि अदालत के रिकॉर्ड के अनुसार मकान को गिराने से पहले कोई नोटिस जारी नहीं किया गया। पीठ ने कहा, ‘‘आप कह रहे हैं कि आपने केवल मुनादी की थी।’’
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के वकील से यह भी पूछा कि किस आधार पर निर्माण कार्य को अनधिकृत बताया गया है।
जब राज्य के वकील ने पीठ को सड़क चौड़ी करने की परियोजना के बारे में बताया तो उन्होंने कहा, ‘‘सड़क चौड़ी करना बस एक बहाना है। यह पूरी कवायद के लिए उचित कारण नहीं लगता।’’
पीठ ने निर्देश दिया, ‘‘उत्तर प्रदेश राज्य याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देगा।’’
पीठ ने रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश दिया कि वह उसके आदेश की एक प्रति सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजें ताकि सड़क चौड़ीकरण के उद्देश्य से प्रक्रिया पर जारी निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
भाषा वैभव