फर्जी विवाह प्रमाणपत्र से जुड़े मामलों की विस्तृत जांच करे पुलिस : इलाहाबाद उच्च न्यायालय
राजेंद्र पारुल
- 05 Nov 2024, 10:13 PM
- Updated: 10:13 PM
प्रयागराज, पांच नवंबर (भाषा) घर से भागे लड़के-लड़कियों के अदालत से सुरक्षा हासिल करने के लिए फर्जी विवाह प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल करने के मामलों को गंभीरता से लेते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुलिस अधिकारियों को इस गिरोह में शामिल संगठनों की भूमिका की विस्तृत जांच कर उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने संबंधित अधिकारियों को सुनवाई की अगली तारीख 18 नवंबर तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को कहा।
अदालत ने हापुड़ जिले के एक दंपति की ओर से दायर रिट याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। दंपति ने अपने परिवार की सहमति के बगैर शादी करने का हवाला देते हुए पुलिस सुरक्षा की मांग की है।
इस मामले में अदालत ने स्थानीय पुलिस से सत्यापन रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट पर गौर करने पर अदालत ने पाया कि याचिका के साथ संलग्न दस्तावेज जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड या अंक पत्र फर्जी हैं। इसके अलावा, विवाह प्रमाणपत्र भी फर्जी पाया गया।
अदालत ने पाया कि ये विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा-5 की आवश्यकताओं के अनुरूप संपन्न कराए जाते हैं और कई मामलों में लड़कियों की उम्र 12 से 15 साल के बीच पाई गई, जिन्होंने अपनी उम्र से दोगुनी उम्र के पुरुषों से फर्जी शादी की।
अदालत ने पाया कि घर से भागे लड़के-लड़कियां अदालत से संरक्षण का आदेश प्राप्त कर पाएं, इस बाबत दलाल और एजेंट ये फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराते हैं, जबकि वास्तव में कोई विवाह होता ही नहीं है और ट्रस्ट या सोसाइटी के रजिस्टर में आवश्यक विवरण जैसे गवाहों के बारे में सूचना, उनके मोबाइल नंबर आदि और उस सोसाइटी के पुरोहित, अध्यक्ष और सचिव आदि का विवरण नहीं होता।
इस संगठित अपराध को गंभीरता से लेते हुए अदालत ने कहा, “धार्मिक ट्रस्ट के नाम पर पिछले कुछ समय से जिला अदालतों के आसपास दलालों और एजेंट का एक संगठित गिरोह उभरा है और सबसे खराब बात यह है कि इसमें पुरोहित और दलालों के अलावा कानून के पेशे से जुड़े लोग भी शामिल हैं।”
अदालत ने 17 अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, “पुलिस अक्सर फर्जी विवाह प्रमाणपत्रों और अन्य फर्जी दस्तावेजों के स्रोत का पता लगाने में नाकाम रहती है, जिससे घर से भागे लड़के-लड़कियां इन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अदालत से सुरक्षा का आदेश प्राप्त कर लेते हैं।”
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