न्याय की देवी मूर्ति के कई हाथ होने चाहिए थे और उनमें हथियार होने चाहिए थे: मीनाक्षी लेखी
राजकुमार रंजन
- 25 Oct 2024, 10:26 PM
- Updated: 10:26 PM
(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर (भाषा) पूर्व केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने कुछ शक्तियों द्वारा देश को अस्थिर करने के लिए जाति और धर्म को हथियार बनाये जाने पर शुक्रवार को चिंता जताई और कहा कि वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए उच्चतम न्यायालय में ‘न्याय की देवी’ की नई मूर्ति के कई हाथ होने चाहिए थे और उन हाथों में हथियार होने चाहिए थे।
लेखी की यह टिप्पणी उच्चतम न्यायालय में नयी ‘न्याय की मूर्ति’ लगाये जाने के कुछ दिनों बाद आई है। न्यायाधीशों के पुस्तकालय में छह फुट ऊंची यह नयी मूर्ति लगायी है जिसके एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में संविधान है। उसके हाथ में तलवार नही है।
पारंपरिक सफेद पोशाक पहनी इस नयी ‘न्याय की देवी’ की आंखों पर से पट्टी हटा दी गयी है और उसके हाथों में तलवार भी नहीं है। उसके सिर पर एक मुकुट है।
यहां चाणक्य रक्षा संवाद 2024 को संबोधित करते हुये लेखी ने कहा, ‘‘नई मूर्ति को लेकर विवाद चल रहा है। कुछ लोग कह रहे हैं कि यह एकतरफा फैसला था। मैं इसे पूरी तरह से व्याख्या कहूंगी।’’
पेशे से वकील लेखी ने यह भी कहा कि पुरानी मूर्ति भारतीय परिप्रेक्ष्य से न्याय की देवी या न्याय की अवधारणा को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, कोई यह कह सकता है कि नवीनतम घटनाक्रम सकारात्मक है। मैं यहां तक कहूंगी कि इसे बदलने के बजाय, हम इसकी एक आंख पर पट्टी बांध सकते थे... हम तलवार भी रख सकते थे।’’
लेखी ने कहा, ‘‘हम देवी को कई भुजाओं के साथ देखने के आदी हैं। इसलिए, हम नई मूर्ति को कई भुजाएं दे सकते थे और समाज की वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए उसे और अधिक हथियारबंद कर सकते थे।’’
उन्होंने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, ‘‘हम उसे इससे निपटने के लिए एक मोबाइल फोन और इंटरनेट भी दे सकते थे।’’
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने खालिस्तानी चरमपंथियों को मौन समर्थन देने के लिए कनाडा पर भी परोक्ष हमला किया और कहा कि अगर किसी देश की धरती का इस्तेमाल दूसरे देश में आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए किया जाता है, तो इसे ‘‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद’’ कहा जाता है।
भारत के सामने मौजूद आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों पर लेखी ने कहा, ‘‘जाति, धर्म, रंग या लिंग, आप जो भी सोचते हैं, उसे हथियार बनाया जा सकता है, और यही वह चीज है जिससे कानून प्रवर्तन एजेंसियां जूझ रही हैं।’’
उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं हो रहा है, बल्कि सामाजिक व्यवस्था के भीतर भी हो रहा है जिसका उद्देश्य ‘अंतिम नियंत्रण’ है।
भाषा राजकुमार