भारत में 2023 में उत्सर्जन 6.1 प्रतिशत बढ़ा लेकिन ऐतिहासिक योगदान मात्र तीन प्रतिशत है: संरा
सिम्मी मनीषा नरेश
- 25 Oct 2024, 01:25 PM
- Updated: 01:25 PM
नयी दिल्ली, 25 अक्टूबर (भाषा) भारत में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 2023 में 6.1 प्रतिशत बढ़कर कुल वैश्विक उत्सर्जन का आठ प्रतिशत हो गया लेकिन वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड (सीओटू) उत्सर्जन में देश का ऐतिहासिक योगदान मात्र तीन प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र की एक नयी रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा जारी ‘उत्सर्जन अंतराल रिपोर्ट 2024 - कृपया, अब और गर्म हवा नहीं...’’ में जलवायु संकट की निराशाजनक तस्वीर पेश की गई है तथा जलवायु परिवर्तन ने निपटने संबंधी संकल्पों और वास्तविक परिणामों के बीच के अंतर को पाटने के लिए तत्काल वैश्विक कार्रवाई किए जाने का आह्वान किया गया है।
भारत में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन 2.9 टन कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य (टीसीओटूई) पर बना हुआ है, जो वैश्विक औसत 6.6 टीसीओटूई से काफी कम है लेकिन इसका समग्र योगदान विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश की बढ़ती ऊर्जा मांग को दर्शाता है।
रिपोर्ट में कार्बन उत्सर्जन में वैश्विक असमानताओं पर प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट के अनुसार, जी20 राष्ट्र (अफ्रीकी संघ को छोड़कर) सामूहिक रूप से वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन के 77 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार हैं।
इन सदस्यों में से सात देश - चीन, भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण कोरिया और तुर्की - अपने उत्सर्जन के चरम पर अभी तक नहीं पहुंचे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन देशों के चरम पर पहुंचने के बाद उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने के उनके प्रयास दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक होंगे।
रिपोर्ट में साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, 2023 में भारत का ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 6.1 प्रतिशत बढ़ा, जो वैश्विक कुल उत्सर्जन का आठ प्रतिशत है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत का उत्सर्जन बढ़ रहा है लेकिन वैश्विक सीओटू उत्सर्जन में इसका ऐतिहासिक योगदान केवल तीन प्रतिशत है, जबकि अमेरिका का योगदान 20 प्रतिशत है।
इसमें बताया गया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में पिछले वर्ष की तुलना में 1.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिससे विश्व अपने जलवायु लक्ष्यों से और दूर हो गया है।
रिपोर्ट से "जलवायु संबंधी बयानबाजी" और वास्तविकता के बीच स्पष्ट और बढ़ते हुए अंतर का पता चलता है।
दुनियाभर के देश ब्राजील में होने वाले सीओपी30 से पहले राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अपना अगला योगदान पेश करने की तैयारी कर रहे हैं और वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की समयसीमा निकट आ रही है।
रिपोर्ट के अनुसार, इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन में 42 प्रतिशत की अभूतपूर्व कमी की आवश्यकता होगी। यहां तक कि तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने का कम महत्वाकांक्षी लक्ष्य भी पहुंच से बाहर होता जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि दो डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य हासिल करने के लिए 2030 तक उत्सर्जन में 28 प्रतिशत की कमी की आवश्यकता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि ‘‘तत्काल बड़ी’’ कार्रवाई नहीं की गई तो 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य कुछ वर्षों में असाध्य हो जाएगा और दो डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य भी हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।
भाषा
सिम्मी मनीषा