परिसीमन व असमानता: विशेषज्ञों का जनसंख्या संबंधी बहस पर मंथन, दीर्घकालिक नीतिगत परिवर्तन का सुझाव
संतोष अविनाश
- 24 Oct 2024, 09:05 PM
- Updated: 09:05 PM
नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर (भाषा) आंध्र प्रदेश के लोगों से अधिक बच्चे पैदा करने के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के अनुरोध के कुछ दिनों बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के समान आग्रह से दक्षिण भारत में जनसंख्या नियंत्रण से जुड़ी चिंताएं एक बार फिर उजागर हो गई हैं।
विशेषज्ञों ने इस तरह के बयान के लिए परिसीमन प्रक्रिया में दक्षिणी राज्यों के बीच अविश्वास और उनकी इस धारणा को जिम्मेदार ठहराया कि सफल परिवार नियोजन के लिए उन्हें दंडित किया जा रहा है।
विशेषज्ञों ने आगाह किया कि इससे जनसंख्या नियंत्रण में कई दशकों में हासिल की गई प्रगति पर असर पड़ सकता है और उन्होंने दीर्घकालिक नीतिगत परिवर्तन का सुझाव दिया।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त और ‘द पॉपुलेशन मिथ’ नामक पुस्तक के लेखक एस वाई कुरैशी के मुताबिक, 1971 में परिसीमन अधिनियम पारित होने के बाद से जनसंख्या के आधार पर परिसीमन के परिणाम दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंता का विषय रहे हैं।
कुरैशी ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘दक्षिण भारतीय राज्यों ने विरोध करते हुए कहा है कि क्योंकि उनकी जनसंख्या में गिरावट आई है, तो आप लोकसभा में सीट संख्या कम कर देंगे। तो यह भेदभाव है... एक सफल परिवार नियोजन कार्यक्रम के लिए पुरस्कृत करने के बजाय, आप हमें दंडित कर रहे हैं।’’
स्टालिन ने सोमवार को चेन्नई में एक सामूहिक विवाह कार्यक्रम में कहा कि संसदीय परिसीमन प्रक्रिया दंपति को कई बच्चों को जन्म देने और छोटे परिवार का विचार छोड़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है।
स्टालिन के बयान से दो दिन पहले नायडू ने कहा था, ‘‘वर्ष 2047 तक, हमारे यहां जनसांख्यिकीय लाभांश की स्थिति होगी, यानी अधिक युवा होंगे। वर्ष 2047 के बाद, अधिक बूढ़े लोग होंगे... यदि दो से कम बच्चे (प्रति महिला) जन्म देंगे, तो जनसंख्या कम हो जाएगी। यदि आप दो से अधिक बच्चों को जन्म देंगी तो जनसंख्या बढ़ जायेगी।’’
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने बताया कि उनके राज्य में जनसंख्या वृद्धि दर 2021 में राष्ट्रीय औसत 2.1 प्रतिशत की तुलना में गिरकर 1.6 प्रतिशत रह गई, जबकि राज्य की बुजुर्ग आबादी 2021 में बढ़कर 12.4 प्रतिशत हो गई जो राष्ट्रीय औसत 10.5 प्रतिशत से अधिक है।
‘पॉपुलेशन फर्स्ट’ संगठन के कार्यक्रम निदेशक योगेश पवार ने बताया कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम- 1951 (जो जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीट का आवंटन करता है) उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे अत्यधिक आबादी वाले राज्यों को अधिक राजनीतिक ताकत देता है।
पवार ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘उदाहरण के लिए, राष्ट्रीय खजाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले महाराष्ट्र को केंद्र को भेजे गए प्रत्येक रुपये के लिए केवल तीन पैसे मिलते हैं, जबकि उत्तर प्रदेश और बिहार को बदले में 14 रुपये मिलते हैं।’’
आगामी जनगणना को लेकर चिंता जताई जा रही है कि लोकसभा सीट का परिसीमन और केंद्रीय धन का वितरण जनसंख्या के आधार पर किए जाने से दक्षिणी राज्यों को उत्तरी राज्यों की तुलना में अनुचित रूप से नुकसान उठाना पड़ सकता है।
‘पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ की कार्यकारी निदेशक पूनम मुतरेजा ने इस नतीजे के प्रति आगाह किया और कहा कि परिसीमन के परिणामस्वरूप इन राज्यों के लिए वित्तीय आवंटन में कमी आ सकती है।
उन्होंने कहा, ‘‘यह महत्वपूर्ण है कि हमें सबको लाभ पहुंचाने वाली स्थिति की तलाश करनी है जो प्रभावी परिवार नियोजन वाले राज्यों को दंडित करने के बजाय उनका समर्थन करे।’’
हालांकि, समाधान अधिक बच्चों को जन्म देने में नहीं है बल्कि नीतिगत परिवर्तन में नीहित है जो युवाओं को सशक्त बनाते हुए बुजुर्ग आबादी का समर्थन करे।
कुरैशी ने कहा, “हमें वरिष्ठ नागरिकों के लिए नीतियां बनानी होंगी। उदाहरण के लिए, यदि हम सेवानिवृत्ति की उम्र 60 से बढ़ाकर 65 या 70 कर देते हैं, तो उनकी उत्पादकता बढ़ जाएगी। इससे समस्या 10 साल तक टल जाएगी। दूसरे, हमें दीर्घकालिक कल्याणकारी उपाय करने होंगे ताकि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहें।’’
उन्होंने कहा कि युवा पीढ़ी ऐसी योजनाओं में निवेश कर सकती है जिससे सेवानिवृत्ति के बाद उसे किसी पर निर्भर नहीं रहना पड़े।
भाषा संतोष