सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व सीएमडी को आरोपमुक्त करने के खिलाफ सीबीआई की याचिका खारिज
संतोष माधव
- 16 Oct 2024, 09:15 PM
- Updated: 09:15 PM
नयी दिल्ली, 16 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को 436.76 करोड़ रुपये के कर्ज धोखाधड़ी से संबंधित मामले में ‘सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया’ के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक (सीएमडी) को आरोपमुक्त करने के गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि आरोप-पत्र में ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है जिससे पता चले कि श्रीनिवास श्रीधर ने ‘स्टैंडबाय लेटर ऑफ क्रेडिट’ को मंजूरी देने में कोई भूमिका निभाई है।
‘स्टैंडबाय लेटर ऑफ क्रेडिट’ बैंक द्वारा उस स्थिति में किसी तीसरे पक्ष को भुगतान के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है जब बैंक ग्राहक किसी समझौते के पालन से चूकता है।
पूरी सामग्री को ध्यान से देखने और उसे सही मानने के बाद शायद एकमात्र ऐसी सामग्री जो संदेह पैदा करती है, वह है कंपनी के प्रस्ताव को मंजूरी देने की गति।
पीठ ने कहा, ‘‘जहां तक प्रतिवादी (श्रीधर) का सवाल है, कंपनी के ऋण प्रस्ताव को मंजूरी देने में उनकी स्थिति और उन्हें सौंपी गई भूमिका को देखते हुए, उनके खिलाफ केवल संदेह ही उनके खिलाफ आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि प्रस्ताव ऋण सलाहकार समिति से पारित हुआ था जिसने इसकी सिफारिश की थी और प्रस्ताव 10 अगस्त, 2010 को श्रीधर के समक्ष रखा गया था।
पीठ ने कहा, ‘‘चूंकि ऋण प्रस्ताव प्रतिवादी के मंजूरी देने के अधिकार से परे था, इसलिए इसे प्रबंधन समिति के समक्ष रखने का निर्देश दिया गया था। ऋण मंजूरी समिति के अलावा, प्रस्ताव को बैंक के मुख्य महाप्रबंधक (ऋण) द्वारा अनुमोदित किया गया था।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि श्रीधर की भूमिका मुख्य महाप्रबंधक (ऋण) और कार्यकारी निदेशक द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने से शुरू हुई।
श्रीधर सहित कुल सात लोगों पर 2014 में भ्रष्टाचार, आपराधिक साजिश और इलेक्ट्रोथर्म इंडिया लिमिटेड को तंजानिया में इस्पात संयंत्र लगाने के लिए भारी कर्ज देकर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया गया था।
कंपनी ने दावा किया कि उसे तंजानिया में इस्पात संयंत्र के निष्पादन/स्थापना के लिए कमल अलॉयज लिमिटेड, तंजानिया द्वारा एक अनुबंध मिला था।
बैंक ने वर्ष 2010-2011 के दौरान कंपनी को 50 करोड़ रुपये का अल्पकालिक ऋण, 100 करोड़ रुपये की सीमा वाला ऋण पत्र (लेटर ऑफ क्रेडिट) और 330 करोड़ रुपये की निर्यात पैकिंग ऋण (ईपीसी) सुविधा मंजूर की थी। बैंक ने विभिन्न तिथियों पर ईपीसी के तहत 247.5 करोड़ रुपये की राशि वितरित की।
आरोप यह है कि परियोजना के लिए कच्चा माल खरीदने के बजाय कंपनी ने 247.5 करोड़ रुपये की यह राशि अन्य बैंकों के अपने खातों तथा बिल्डरों के खातों में स्थानांतरित कर दी।
भाषा संतोष