कानूनी पेशे को बदनाम करती है हड़ताल की संस्कृति : इलाहाबाद उच्च न्यायालय
राजेंद्र धीरज
- 30 Sep 2024, 11:09 PM
- Updated: 11:09 PM
प्रयागराज, 30 सितंबर (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने जनपद न्यायालयों में वकीलों के बार-बार हड़ताल पर जाने को लेकर कहा है कि ऐसी कार्य संस्कृति, कानूनी पेशे को बदनाम करती है।
अदालत ने प्रदेश के सभी जिला न्यायाधीशों को निर्देश दिया है कि वे संबंधित जिलों के बार एसोसिएशन द्वारा पारित हड़ताल के किसी भी आह्वान को प्रसारित ना करें।
न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की पीठ ने यह आदेश तब पारित किया जब अदालत के संज्ञान में यह बात लाई गई कि बार एसोसिएशन के सदस्य नियमित तौर पर हड़ताल का प्रस्ताव करते हैं जिसके बाद संबंधित जिला न्यायाधीश सभी न्यायाधीशों को इसकी सूचना देते हैं जिससे ज्यादातर अदालतों में सुनवाई स्थगित हो जाती हैं और वादकारी सोचते हैं कि यह क्या हो रहा है।
अदालत ने यह उम्मीद भी जताई कि जनपद न्यायालयों में अधिवक्ता दोपहर साढ़े तीन बजे शोक सभा करने के राज्य विधिज्ञ परिषद (बार काउंसिल) के प्रस्ताव का अनुपालन करेंगे ताकि पूरे दिन का काम बाधित ना हो।
अदालत ने कहा, “हमें यह समझ में नहीं आता कि क्यों केवल उत्तर प्रदेश में अधिवक्ताओं को सुबह 10 बजे शोक सभा करनी पड़ती है जिससे अदालत में पूरे दिन का काम बाधित होता है। न्यायालय में पहले से भी भारी तादाद में मामले लंबित हैं।”
उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता के.आर. चित्रा ने अदालत को बताया कि गौतम बुद्ध नगर में अक्सर जब वह पेश होती हैं तो अधिवक्ताओं द्वारा बार-बार हड़ताल किए जाने से उन्हें परेशानी होती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि दुर्भाग्य से कुछ अधिवक्ता उन गतिविधियों में लिप्त रहते हैं जिनकी उम्मीद उनसे नहीं की जाती। इसके परिणाम स्वरूप कानूनी पेशे की प्रतिष्ठा धूमिल होती है।
केआर चित्रा के इस कथन पर अदालत ने चिंता व्यक्त करते हुए दोहराया कि यह अधिवक्ताओं के लिए आत्मनिरीक्षण करने और आम नागरिकों का विश्वास और इस नेक पेशे की चमक फिर से बहाल करने का समय है।
अदालत ने 25 सितंबर के अपने आदेश में कहा, “हमें इस बात की जानकारी है कि ज्यादातर अधिवक्ता हड़ताल के विचार का विरोध कर रहे हैं और मुट्ठीभर अधिवक्ता ही हड़ताल पर उतारू होते हैं। अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई की तिथि 22 अक्टूबर तय की।”
भाषा राजेंद्र