बदलापुर यौन उत्पीड़न: उच्च न्यायालय ने कहा- त्रुटिहीन मामला बनाएं, जनता के दबाव में काम न करें
नोमान रंजन
- 03 Sep 2024, 07:04 PM
- Updated: 07:04 PM
मुंबई, तीन सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बदलापुर इलाके में एक स्कूल में दो बच्चियों के यौन उत्पीड़न के मामले की जांच कर रही पुलिस टीम से मंगलवार को कहा कि वह ‘त्रुटिहीन’ मामला तैयार करें और जन दबाव में आकर जल्दबाज़ी में आरोप पत्र दायर न करें।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ ने यह भी कहा कि लड़कों को भी संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति डेरे ने सरकार के नारे में बदलाव करते हुए कहा, “लड़कों की शिक्षा महत्वपूर्ण है। ‘बेटे को पढ़ाओ बेटी को बचाओ।’
पीठ ने पिछले महीने इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया था, जिसमें स्कूल के शौचालय में करीब चार साल की दो बच्चियों का एक पुरुष अटेंडेंट ने यौन उत्पीड़न किया था। आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने मंगलवार की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया कि जल्द ही आरोपपत्र दाखिल किया जाएगा।
पीठ ने कहा कि विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन इसलिए किया गया क्योंकि स्थानीय पुलिस ने मामले की ठीक से जांच नहीं की और “आम लोगों में काफी गुस्सा था।”
अदालत ने कहा, “यह एक बड़ा मुद्दा है। यह मामला भविष्य में ऐसे सभी मामलों के लिए मिसाल कायम करेगा। जनता देख रही है और हम जो संदेश दे रहे हैं वह अहम है।”
पीठ ने कहा, “ इसलिए जल्दबाजी में आरोपपत्र दाखिल न करें। अब भी समय है। जनता के दबाव में न आएं। आरोपपत्र दाखिल करने से पहले जांच ठीक से होनी चाहिए।”
उच्च न्यायालय ने कहा, “आरोपपत्र दाखिल करने से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि सब कुछ ठीक है। एक त्रुटिहीन मामला तैयार करें।”
अदालत ने केस डायरी को ठीक तरीके से तैयार नहीं करने के लिए एसआईटी की खिंचाई भी की।
उच्च न्यायालय ने पूछा, “ क्या केस डायरी इसी तरह लिखी जाती है?”
न्यायाधीशों ने कहा कि जांच के हर चरण का उल्लेख केस डायरी में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि डायरी में विवरण का उल्लेख नहीं किया गया है।
पीठ ने कहा, “प्रयासों को प्रतिबिंबित नहीं किया गया है....केस डायरी में रूढ़िवादी शब्दों का इस्तेमाल किया गया है। हम विवरण के संबंध में जांच के तरीके से संतुष्ट नहीं हैं। हमें कोई ठोस कदम नहीं दिखता है।”
इसने कहा कि इस तरह से केस डायरी लिखने का उद्देश्य ही विफल हो जाता है और यह वास्तव में इस मामले की घटिया जांच को दर्शाता है।
इस बीच, महाधिवक्ता सराफ ने उच्च न्यायालय को बताया कि सरकार ने स्कूलों में लड़कियों की सुरक्षा के पहलू पर विचार करने के लिए एक समिति गठित की है।
अदालत ने कहा कि उसे लड़कों की सुरक्षा की भी जांच करनी चाहिए।
पीठ ने कहा, “समिति स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा पर ध्यान देगी। हम इसे लैंगिक-तटस्थ रखेंगे। सिर्फ लड़कियां ही नहीं, लड़के भी। सिर्फ इसलिए कि वह लड़का है, इसका मतलब यह नहीं है कि कुछ भी अप्रिय नहीं होगा।”
उच्च न्यायालय ने सुझाव दिया कि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी मीरान बोरवणकर और उच्च न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश - साधना जाधव या शालिनी फनसालकर-जोशी - को समिति में शामिल किया जाना चाहिए।
अदालत मामले की सुनवाई एक अक्टूबर तक के लिए स्थगित कर दी।
भाषा नोमान