बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हिंसा के खिलाफ मार्च में बांसुरी स्वराज, जेएनयू की कुलपति ने हिस्सा लिया
देवेंद्र पवनेश
- 16 Aug 2024, 10:17 PM
- Updated: 10:17 PM
(फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 16 अगस्त (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सांसद बांसुरी स्वराज और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री डी पंडित ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ कथित अत्याचार के विरोध में शुक्रवार को यहां निकाले गये मार्च में हिस्सा लिया।
सैकड़ों महिलाओं ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े नारी शक्ति फोरम द्वारा आयोजित इस मार्च में हिस्सा लिया। यह मार्च मंडी हाउस से शुरू होकर जंतर-मंतर पर समाप्त हुआ। भाजपा की निलंबित नेता नूपुर शर्मा ने भी इसमें हिस्सा लिया।
धार्मिक झंडे और तख्तियां लिए प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा बंद होनी चाहिए। कुछ प्रदर्शनकारियों ने हाथों में काली पट्टी बांध रखी थी तो कुछ ने ऐसी ही काली पट्टियों से अपना मुंह ढंक रखा था।
बांग्लादेश में शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के पतन के बाद हिंदू समुदाय के सदस्यों के खिलाफ हिंसा बढ़ी है। हसीना नौकरियों में विवादित आरक्षण व्यवस्था को लेकर अपनी सरकार के खिलाफ हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोड़ पांच अगस्त को भारत आ गई थीं।
‘बांग्लादेश नेशनल हिंदू ग्रैंड अलायंस’ नामक एक गैर-राजनीतिक हिन्दू संगठन ने दावा किया है कि पांच अगस्त को शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के पतन के बाद से 48 जिलों में 278 स्थानों पर अल्पसंख्यक समुदाय को हमलों और धमकियों का सामना करना पड़ा है। संगठन ने इसे ‘हिंदू धर्म पर हमला’ करार दिया है।
जेएनयू की कुलपति पंडित ने कहा, ‘‘यहां आने का एक कारण मानवाधिकारों की लड़ाई है। मानवाधिकार केवल चुनिंदा समूहों के लिए नहीं हो सकते। मानवाधिकार सभी के लिए हैं। बांग्लादेश में सिर्फ हिंदुओं पर ही नहीं, बल्कि बौद्धों, ईसाइयों, दलितों पर भी हमले हो रहे हैं। उनके लिए बोलने वाला कोई नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि उन्होंने महिलाओं द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम को अपना समर्थन देने के लिए मार्च में हिस्सा लिया।
नारी शक्ति फोरम की सदस्य श्रेयोसी सिन्हा बसु ने कहा कि पड़ोसी देश में हिंदुओं और बौद्धों को निशाना बनाया जा रहा है।
कोलकाता की रहने वाली बसु ने बताया कि उनके कुछ पूर्वज नोआखली दंगों के बाद भारत आ गए थे। उनमें से कुछ 1971 में आए थे जबकि कुछ अभी भी बांग्लादेश में हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘मैं बांग्लादेश में कई लोगों के साथ लगातार संपर्क में हूं। वहां अल्पसंख्यकों की हालत बहुत खराब है। वीजा कार्यालय बंद है और दूतावास अनिश्चितकाल के लिए बंद कर दिया गया है।’’
बसु ने दावा किया, ‘‘भले ही मुहम्मद यूनुस सरकार सार्वजनिक रूप से कह रही है कि अल्पसंख्यकों की रक्षा की जाएगी, लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। खासकर, वहां हिंदुओं और बौद्धों को निशाना बनाया जा रहा है।’’
दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर नेहा मिश्रा ने कहा, ‘‘हम सिर्फ हिंदुओं की बात नहीं कर रहे हैं। यह मानवाधिकार उल्लंघन का मामला है। दुनिया को इसे किसी खास धर्म के खिलाफ अत्याचार के तौर पर नहीं देखना चाहिए।’’
मार्च में बड़ी संख्या में पुरुषों ने भी हिस्सा लिया।
बुराड़ी निवासी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सदस्य सुरेन्द्र राणा ने कहा कि हिंदुओं और उनके मंदिरों पर हमले रोकने होंगे।
नारी शक्ति मंच ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर उनसे बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की है।
मार्च के कारण लुटियंस क्षेत्र में यातायात बाधित रहा। यातायात कर्मियों को कनॉट प्लेस के निकट जनपथ रोड, बाराखंभा रोड और कस्तूरबा गांधी मार्ग पर वाहनों की आवाजाही को नियंत्रित करते देखा गया।
फिरोज शाह रोड को कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया। मार्च के कारण बाराखंभा रोड और मंडी हाउस के बीच के हिस्से में भी यातायात जाम देखा गया। निर्माण भवन इलाके में भी भारी यातायात देखा गया।
भाषा
देवेंद्र