दक्षिण दिल्ली में आर्द्र भूमि के क्षेत्रफल में 30 साल में 97 प्रतिशत की कमी आई : अध्ययन
अविनाश
- 29 Oct 2025, 08:27 PM
- Updated: 08:27 PM
(वर्षा सागी)
नयी दिल्ली, 29 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) द्वारा किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि निर्माण और जनसंख्या वृद्धि के कारण पिछले तीन दशकों में दिल्ली में आर्द्र भूमि में नौ प्रतिशत की कमी आई है।
डीयू ने यह अध्ययन एचसीएल टेक और टेर्ना ग्लोबल बिजनेस स्कूल के साथ मिलकर किया है।
अध्ययन के मुताबिक दक्षिणी दिल्ली सहित कुछ जिलों में आर्द्रभूमि क्षेत्र में लगभग 97 प्रतिशत की कमी आई है।
‘रिसर्च इन इकोलॉजी’ नामक पत्रिका में जून 2025 में प्रकाशित इस शोध पत्र में 1991, 2001, 2011 और 2021 के उपग्रह आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है ताकि यह पता लगाया जा सके कि समय के साथ दिल्ली के जल निकायों में कैसे बदलाव आया है।
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी में 2000 में कुल आर्द्रभूमि क्षेत्र 32.9 वर्ग किलोमीटर था जो 2022 में लगभग नौ प्रतिशत घटकर 30.2 वर्ग किलोमीटर रह गया।
अध्ययन के मुताबिक इसी अवधि के दौरान, शहर का ढांचा-निर्मित क्षेत्रफल 485.6 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 825.6 वर्ग किलोमीटर हो गया, जो 70 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्शाता है।
शोध पत्र में कहा गया है कि आवासीय कॉलोनियों, सड़कों और उद्योगों के विस्तार के कारण प्राकृतिक जलाशय लगातार समाप्त हो रहे हैं। आर्द्रभूमि, जो कभी भूजल पुनर्भरण और वर्षा जल संचयन में सहायक थीं, अब प्रदूषित हो रही हैं।
अध्ययन के मुताबिक दक्षिणी दिल्ली के आर्द्र भूमि क्षेत्र में सबसे अधिक कमी आई है। इस जिले में 1991 में आर्द्रभूमि का क्षेत्रफल 0.8 प्रतिशत था, जो 2021 में घटकर मात्र 0.025 प्रतिशत रह गया।
पूर्वी दिल्ली में भी बड़ी गिरावट दर्ज की गई, जहां आर्द्रभूमि की कुल जिले में हिस्सेदारी 0.39 प्रतिशत से घटकर 0.016 प्रतिशत रह गई, जबकि उत्तरी दिल्ली में यह 0.27 प्रतिशत से घटकर 0.001 प्रतिशत हो गई।
अध्ययन के मुताबिक मध्य दिल्ली अपने अधिकांश जल निकायों को बरकरार रखने में कामयाब रही। इस जिले में आर्द्र भूमि क्षेत्र में मामूली कमी आई है।वर्ष 2000 में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 3.72 प्रतिशत थी जो घटकर 3.26 प्रतिशत रह गई। उत्तर पूर्वी दिल्ली भी अपने बाढ़ के मैदानों और संरक्षण कार्यों के कारण बेहतर स्थिति में रहा।
अध्ययन में पाया गया कि दक्षिण पश्चिम दिल्ली जिसमें नजफगढ़ आर्द्रभूमि प्रणाली भी है, ने 2001 से 2021 के बीच अपने आर्द्रभूमि क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खो दिया है। केवल नयी दिल्ली में ही कुछ सुधार हुआ, जहां यह 2011 के 0.012 प्रतिशत से बढ़कर 2021 में 0.49 प्रतिशत हो गया।
अध्ययन में कहा गया है, ‘‘आर्द्रभूमि के निरंतर नुकसान से भूजल पुनर्भरण, बाढ़ नियंत्रण और जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।’’ इसके मुताबिक आर्द्रभूमि क्षेत्र में थोड़ी सी भी कमी दिल्ली के जल संतुलन को बिगाड़ सकती है और शहर को बाढ़ के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि दिल्ली की जनसंख्या 1951 में 14.7 लाख से बढ़कर 2023 में लगभग 3.3 करोड़ हो गई है, जबकि इसका भौगोलिक क्षेत्रफल 201 वर्ग किलोमीटर से बढ़कर 1,467 वर्ग किलोमीटर हो गया है। उन्होंने कहा कि इस वृद्धि ने प्राकृतिक जल प्रणालियों पर भारी दबाव डाला है।
उपग्रह से प्राप्त चित्रों से पता चला है कि यमुना नदी, जो कभी चौड़ी थी, पिछले कुछ वर्षों में संकरी हो गई है। नजफगढ़ झील, भलस्वा और हौज खास जैसी आर्द्रभूमि सिकुड़ गई हैं, जबकि संजय झील अब घने निर्माण कार्यों से घिर गई है, जिससे एक प्राकृतिक जलाशय के रूप में इसका महत्व कम हो गया है।
अध्ययन के मुताबिक 2000 से 2022 के बीच शहर के वनस्पति कवर में लगभग 30 प्रतिशत, वन क्षेत्र में 35 प्रतिशत और खुली भूमि में 50 प्रतिशत से अधिक कमी आई है, जिससे दिल्ली की वर्षा जल को अवशोषित करने और तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता कम हो गई है।
भाषा धीरज